आचार्य ने कहा कि हमारी संस्कृति विश्व को एक परिवार की तरह मानती है। गीता के श्लोकों से निकले संदेश सर्वव्यापी सार्वकालिक और सार्वभौमिक हैं। सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्यों के निर्वाह की सीख लेने की जरूरत है। एक-एक सूत्र जीवन सुधार के लिए नई व्यवस्था देते हैं।
लोगों के जीवन को सरल बनाने के लिए अध्यात्मवाद की प्रेरणा अनुकरणीय है। इसलिए हमें धर्म, यानी धारणा की नीति पर चलते हुए काम करने की जरूरत है। सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखकर समाज का नवनिर्माण करना हमारी संस्कृति और सभ्यता में निहित है, और यह हमें हमारे ऋषि, मुनियों, संतों और महात्माओं की देन भी है।