दूसरी खुराक के नौ माह पूरा होते ही कई लोगों के मोबाइल पर इस तरह के सरकारी संदेश आ रहे हैं। लेकिन, टीकाकरण के लिए निजी अस्पताल पहुंचने वाले ज्यादातर लोग निराश होकर लौटने पर मजबूर हो गए हैं। टीके की कीमत और सेवा शुल्क के भुगतान के बावजूद कई लोग टीका नहीं लगवा पा रहे हैं। एक ऐसा
मामला भी सामने आया है जिसमें तीसरी खुराक लिए बिना ही, इसका प्रमाणपत्र भी मिल चुका है। कभी नहीं लिया बूस्टर डोज
इस चौंकाने वाले मामले में शहर के एक नर्सिंग कॉलेज (Nursing College) की व्याख्याता के मोबाइल पर मैसेज आया कि उन्होंने तीसरी खुराक ले ली है और वे टीकाकरण प्रमाणपत्र डाउनलोड कर सकती हैं। लेकिन, व्याख्याता का कहना है कि उन्होंने तीसरी खुराक ली ही नहीं है। टीकाकरण के बिना ही उनके पास इसका प्रमाण पत्र है।
इस चौंकाने वाले मामले में शहर के एक नर्सिंग कॉलेज (Nursing College) की व्याख्याता के मोबाइल पर मैसेज आया कि उन्होंने तीसरी खुराक ले ली है और वे टीकाकरण प्रमाणपत्र डाउनलोड कर सकती हैं। लेकिन, व्याख्याता का कहना है कि उन्होंने तीसरी खुराक ली ही नहीं है। टीकाकरण के बिना ही उनके पास इसका प्रमाण पत्र है।
अधिकारियों ने चुप्पी साधी
पत्रिका (Patrika) संवाददाता ने स्वास्थ्य विभाग के कई उच्च अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा पर किसी ने जवाब तक देना जरूरी नहीं समझा। कोविड वॉर रूम के एक अधिकारी ने स्वास्थ्य विभाग से संपर्क करने की सलाह दी।
पत्रिका (Patrika) संवाददाता ने स्वास्थ्य विभाग के कई उच्च अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा पर किसी ने जवाब तक देना जरूरी नहीं समझा। कोविड वॉर रूम के एक अधिकारी ने स्वास्थ्य विभाग से संपर्क करने की सलाह दी।
10 लोग नहीं तो टीका नहीं
यशवंतपुर निवासी निमेश ने बताया कि दूसरी खुराक लिए 11 माह बीत चुके हैं। बूस्टर डोज के लिए करीब 10 दिन से प्रयास कर रहे हैं। दो निजी अस्पतालों में घंटों इंतजार के बावजूद टीकाकरण नहीं हुआ। जब तक टीकाकरण कराने वालों की संख्या 10 नहीं हो जाए तब तक अस्पताल वायल नहीं खोलते हैं। इसके कारण भी लोगों को लौटाया जा रहा है।
यशवंतपुर निवासी निमेश ने बताया कि दूसरी खुराक लिए 11 माह बीत चुके हैं। बूस्टर डोज के लिए करीब 10 दिन से प्रयास कर रहे हैं। दो निजी अस्पतालों में घंटों इंतजार के बावजूद टीकाकरण नहीं हुआ। जब तक टीकाकरण कराने वालों की संख्या 10 नहीं हो जाए तब तक अस्पताल वायल नहीं खोलते हैं। इसके कारण भी लोगों को लौटाया जा रहा है।
मांग के अनुसार तय करेंगे रणनीति
इस समस्या की पुष्टि करते हुए एक निजी अस्पताल के प्रबंधक ने बताया कि बूस्टर डोज की मांग कम है। वे बची हुई वायल का उपयोग कर रहे हैं। वायल के समाप्त होने के बाद मांग के अनुसार नए वायल मंगाएंगे। ज्यादातर लोग सरकार के बूस्टर डोज नि:शुल्क करने के इंतजार में हैं। सरकार भी इस पर विचार कर रही है। दिल्ली, बिहार और हरियाणा सरकार ने तीसरी खुराक नि:शुल्क कर रखी है। ऐसे में निजी अस्पताल वैक्सीन स्टॉक कर नुकसान नहीं उठाना चाहते हैं। शहर के कई बड़े और कॉर्पोरेट अस्पतालों में टीकाकरण जारी है। लेकिन, छोटे व मध्यम अस्पताल ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। खामियाजा, बूस्टर डोज के इच्छुक लोगों को उठाना पड़ रहा है।
इस समस्या की पुष्टि करते हुए एक निजी अस्पताल के प्रबंधक ने बताया कि बूस्टर डोज की मांग कम है। वे बची हुई वायल का उपयोग कर रहे हैं। वायल के समाप्त होने के बाद मांग के अनुसार नए वायल मंगाएंगे। ज्यादातर लोग सरकार के बूस्टर डोज नि:शुल्क करने के इंतजार में हैं। सरकार भी इस पर विचार कर रही है। दिल्ली, बिहार और हरियाणा सरकार ने तीसरी खुराक नि:शुल्क कर रखी है। ऐसे में निजी अस्पताल वैक्सीन स्टॉक कर नुकसान नहीं उठाना चाहते हैं। शहर के कई बड़े और कॉर्पोरेट अस्पतालों में टीकाकरण जारी है। लेकिन, छोटे व मध्यम अस्पताल ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। खामियाजा, बूस्टर डोज के इच्छुक लोगों को उठाना पड़ रहा है।
नुकसान का सौदा
कोविशील्ड या कोवैक्सीन (covishield or Covaxin), अधिकतम 150 रुपए की सेवा शुल्क के साथ बूस्टर खुराक की कुल कीमत करीब 386 रुपए हैं। निजी अस्पतालों का कहना है कि पैसे देकर टीकाकरण कराने वालों की संख्या अपेक्षा अनुसार कम है। 150 रुपए के सेवा शुल्क के बावजूद टीकाकरण उनके लिए नुकसान का सौदा है। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक निजी अस्पताल के अध्यक्ष ने कहा कि सेवा शुल्क उनके लिए अपने परिचालन खर्चों को कवर करने और कोल्ड चेन बनाए रखने के लिए बहुत कम है।
कोविशील्ड या कोवैक्सीन (covishield or Covaxin), अधिकतम 150 रुपए की सेवा शुल्क के साथ बूस्टर खुराक की कुल कीमत करीब 386 रुपए हैं। निजी अस्पतालों का कहना है कि पैसे देकर टीकाकरण कराने वालों की संख्या अपेक्षा अनुसार कम है। 150 रुपए के सेवा शुल्क के बावजूद टीकाकरण उनके लिए नुकसान का सौदा है। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक निजी अस्पताल के अध्यक्ष ने कहा कि सेवा शुल्क उनके लिए अपने परिचालन खर्चों को कवर करने और कोल्ड चेन बनाए रखने के लिए बहुत कम है।
बची हुई खुराक सबसे बड़ी चिंता
प्राइवेट हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स एसोसिएशन (पीएचएएनए) के अंतर्गत राज्य के करीब 6000 अस्पताल आते हैं। करीब 500 सदस्य अस्पताल बेंगलूरु में हैं। टीके की बची हुई खुराकों की जानकारी जुटा रहे हैं। अभी तक करीब 150 अस्पताल प्रबंधकों ने ही जानकारी भेजी है। मार्च के अंत तक अस्पतालों के पास टीके की करीब दो लाख खुराकें बची हुई थीं। मणिपाल, स्पर्श, अपोलो और नारायण हेल्थ सिटी के पास सबसे ज्यादा शेष खुराकें थीं।
- डॉ. एच. एम. प्रसन्ना, अध्यक्ष, पीएचएएनए
प्राइवेट हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स एसोसिएशन (पीएचएएनए) के अंतर्गत राज्य के करीब 6000 अस्पताल आते हैं। करीब 500 सदस्य अस्पताल बेंगलूरु में हैं। टीके की बची हुई खुराकों की जानकारी जुटा रहे हैं। अभी तक करीब 150 अस्पताल प्रबंधकों ने ही जानकारी भेजी है। मार्च के अंत तक अस्पतालों के पास टीके की करीब दो लाख खुराकें बची हुई थीं। मणिपाल, स्पर्श, अपोलो और नारायण हेल्थ सिटी के पास सबसे ज्यादा शेष खुराकें थीं।
- डॉ. एच. एम. प्रसन्ना, अध्यक्ष, पीएचएएनए
डोज इतनों ने ली
पहली - 5,39,28,140
दूसरी - 5,02,55,473
तीसरी - 16,85,293