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अब गुरुवार को विश्वास मत का सामना करने जा रही कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के पास सीमित विकल्प रह गए हैं और यथास्थिति बरकरार रही तो सरकार गिरना तय है। दरअसल, 16 विधायकों के इस्तीफे और 2 निर्दलियों के समर्थन वापस लेने के बाद अल्पमत में आई गठबंधन सरकार को उम्मीद थी कि बेंगलूरु से बाहर गए 15 विधायकों में से कुछ टूटकर वापस आ जाएंगे। अब अगर ये 15 विधायक गुरुवार को बहुमत परीक्षण के दौरान नहीं आते हैं (जिसकी संभावना अधिक है) तो 224 सदस्यीय विधानसभा में सदस्यों की संख्या गिरकर 209 रह जाएगी। ऐसी सूरत में सरकार बचाने के लिए सत्ता पक्ष को कम से कम 105 विधायकों का समर्थन होना चाहिए। लेकिन, सत्तारूढ़ गठबंधन के पास केवल 101 विधायक (कांग्रेस 6 6 , जद-एस 34 और बसपा 01) रहेंगे। दूसरी ओर भाजपा के खेमे में 105 विधायकों होंगे। इसके अलावा उन्हें दो निर्दलियों का भी समर्थन प्राप्त होगा और उनकी संख्या 107 होगी। इस हालात में सरकार का विश्वास मत गिर जाएगा और मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ेगा।https://www.patrika.com/bangalore-news/this-congress-leader-is-doing-double-role-4844952/
तब येड्डियूरप्पा नहीं साबित कर पाए बहुमतइससे पहले कांग्रेस-जद-एस गठबंधन सरकार भी सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले के बाद बनी थी। पिछले वर्ष मई महीने में जब विधानसभा चुनावों के परिणाम आए तो भाजपा 104, कांग्रेस 8 0, जद-एस 37, बसपा 01 और दो सीटों पर निर्दलीय चुनाव जीतकर आए। हालांकि, कांग्रेस और जद-एस ने गठबंधन कर सरकार बनाने का दावा पेश किया लेकिन राज्यपाल ने सबसे बड़ी पार्टी के तौर उभरी भाजपा को सरकार बनाने का न्यौता दिया। राज्यपाल ने भाजपा को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का वक्त भी दिया। लेकिन, कांग्रेस ने रातों-रात सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और शीर्ष अदालत ने येड्डियूरप्पा के नेतृत्व में बनी भाजपा सरकार को सिर्फ 24 घंटे के भीतर बहुमत साबित करने का आदेश दिया। येड्डियूरप्पा बहुमत साबित नहीं कर पाए और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद राज्य में कांग्रेस-जद-एस गठबंधन सरकार अस्तित्व में आई।
बुधवार को फिर एक बार सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया जिससे सरकार का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। शीर्ष अदालत ने 15 निर्दलीय विधायकों के संदर्भ में कहा ‘हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि अगले आदेश तक विधानसभा के 15 सदस्यों को सत्र की चल रही कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा और उन्हें एक विकल्प दिया जाना चाहिए कि वे कार्यवाही में शामिल होना चाहते हैं या इससे अलग रहना चाहते हैं।’ कोर्ट के इस फैसले की व्याख्या करते हुए बागियों की ओर से पेश होने वाले जाने-माने अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि ‘अब इस्तीफा देेने वाले 15 विधायक जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की उन पर सदन में उपस्थित होने के लिए कांग्रेस-जद-एस की ओर से जारी व्हिप ऑपरेटिव नहीं होगा।’