एसकेडीसी परियोजना के तहत पांच प्रमुख कॉरिडोर तैयार करने थे जो 11 जिलों और 20 प्रमुख शहरों सहित उच्च पथों, प्रमुख सडक़ों और रेल नेटवर्क को जोडऩे वाले थे। उद्योग मंत्री आरवी देशपांडे के मुताबिक इनमें से अधिकांश जमीन अप्रयुक्त है और बेकार पड़ी है। ये जमीनें ऐसी जगह है जहां औद्योगिक इकाइयां स्थापित नहीं की जा सकतीं। इसलिए उन जमीनों को वापस किया जाना सहज निर्णय है। उन जमीनों के लिए सिर्फ प्राथमिक अधिसूचना ही जारी की गई थी। इसे जल्द ही कैबिनेट के समक्ष लाया जाएगा।
भू-स्वामियों को लौटाई जाने वाली यह अप्रयुक्त औद्योगिक जमीनों की दूसरी खेप है। पिछले वर्ष सितंबर में राज्य सरकार ने 13,788 एकड़ जमीन आठ जिलों के भू-स्वामियों को लौटाई थी। इनमें से 4,478.34 एकड़ जमीन मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या के गृह जिले मैसूरु के किसानों को लौटाई गई।
एसकेडीसी के तहत 1.21 लाख एकड़ जमीन चिह्नित की गई थी। इन पर इस्पात, इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल, पार्क और टाउनशिप परियोजनाएं शुरू की जानी थीं। इसके लिए कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (कियाडबा) ने कियाडबा की धारा 28 (1) के तहत 8०,182.35 एकड़ भूमि अधिग्रहण के लिए प्राथमिक अधिसूचना जारी की थी। लेकिन, धारा 28 (4) के तहत केवल 40,924.13 एकड़ भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी हुई।
शेष 39,258 एकड़ जमीन धारा 28 (1) के तहत आरक्षित कर दी गई। इससे भू-स्वामियों जिसमें अधिकांश किसान है ना तो उसमें खेती कर सकते थे और ना ही उसपर ऋण ले सकते थे। कुल 1.21 लाख एकड़ में से बेलगावी में सबसे अधिक 12,973 एकड़, रामनगर में 12,205 एकड़ और बल्लारी में 11,245 एकड भूमि चिह्नित की गई थी।
हालांकि, विपक्ष में रहते हुए मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने वर्ष 2012 में एसकेडीसी परियोजना का विरोध किया था लेकिन उनके कार्यकाल में भी धारा 28 (1) के तहत प्राथमिक अधिसूचनाएं जारी होती रहीं और जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया चलती रही। जून 2013 तक 53 हजार 175 एकड़ के लिए प्राथमिक अधिसूचना जारी हो चुकी थी। वर्ष 2016 में वह बढक़र 8 0 हजार 18 2 एकड़ हो गई। उद्योग विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि भूमि बैंक की अवधारणा को इनवेस्ट कर्नाटक सम्मेलन से पहले वर्ष 2016 में रद्द कर दिया गया था।
सैद्धांतिक रूप से भूमि बैंक का विचार अच्छा है लेकिन इसमें बड़े पैमाने पर भूमि चिन्हित हो जाती है जिससे यह अव्यवहारिक हो जाता है। अब कियाडबा ने भू-स्थानिक सूचना (जीआईएस) आधारित पोर्टल शुरू किया है जिससे औद्योगिक भूमि की उपलब्धता का स्पष्ट पता चलता है। उत्तर कर्नाटक में अभी भी 4372 औद्योगिक प्लॉट खाली पड़े हैं।