मठों के अधिग्रहण पर पीछे हटी सरकार, सीएम ने की परिपत्र वापस लेने की घोषणा
बैंगलोरPublished: Feb 09, 2018 12:34:24 am
विप से विपक्ष का बहिर्गमन …सिद्धू बोले, हिंदू धार्मिक स्थलों के अधिग्रहण का इरादा नहीं
बेंगलूरु. दो महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हिंदू मठों और मंदिरों के अधिग्रहण की कोशिश की लेकर उपजे विवाद और मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के आक्रामक रूख के कारण सिद्धरामय्या सरकार को इस मसले पर पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। चुनाव से पहले विधानमंडल के आखिरी अधिवेशन में इस मसले के उठने के एक दिन बाद सरकार ने साफ किया कि उसका देवस्थानम विभाग के अधीन नहीं आने वाले हिंदू धार्मिक स्थलों को अधिग्रहित करने का कोई इरादा नहीं है। विपक्ष के बहिर्गमन के बीच मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने विधान परिषद में इस बारे में देवस्थानम विभाग की ओर से जारी सार्वजनिक परामर्श परिपत्र को वापस लेने की घोषणा की।
गुरुवार को परिषद में विपक्ष के नेता के. एस. ईश्वरप्पा ने विभाग के परिपत्र का मसला उठाते हुए विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव पेश करने की अनुमति मांगी। सरकार के जवाब से असंतुष्ट भाजपा और जनता दल(ध) के सदस्यों ने विधान परिर्षद से बहिर्गमन किया।
गौरतलब है कि हिंदू मठों, मंदिरों और धार्मिक संगठनों को देवस्थानम विभाग के अधीन लाने के लिए कानून बदलाव पर लोगों की राय जानने के लिए 28 जनवरी को सार्वजनिक परामर्श परिपत्र जारी किया था। विपक्ष ने इस मसले को लेकर सरकार को घेरा था। बताया जाता है कि चुनाव से पहले भाजपा के इस मसले भुनाने और कांग्रेस सरकार को हिंदू विरोधी बताने की भाजपा की कोशिश से नाराज मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने बुधवार शाम विभागीय मंत्री रुद्रप्पा लमाणी और अधिकारियों की खिंचाई की थी।
अदालत के आदेश का पालन
सिद्धरामय्या ने सदन को बताया कि उन्होंने विभाग को तत्काल परिपत्र को वापस लेने के लिए कहा है। मुख्यमंत्री ने सदन में कहा कि विभान ने 18 साल पुराने कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक फैसले के आधार पर यह परामर्श परिपत्र जारी किया था। वर्ष 2000 के इस फैसले में अदालत ने सरकार से धार्मिक आयोग अथवा कोई ऐसा निकाय बनाने के लिए कहा था जो धार्मिक मठों, मंदिरों, न्यासों और अन्य संगठनों के कामकाज की निगरानी करे। सिद्धरामय्या ने कहा कि जनविरोध को देखते हुए सरकार ने इस परिपत्र को वापस लेने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री ने फिर दोहराया कि सरकार धार्मिक संस्थानों को नियंत्रण में नहीं लेना चाहती है और ना ही उसका ऐसा कोई इरादा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि चंूकि यह अदालत का आदेश था इसीलिए सरकार ने विधि विभाग से परामर्श के बाद लोगों की राय जानने के लिए परिपत्र जारी किया था कि उसे अदालत का आदेश लागू करने के लिए आगे कदम बढ़ाना चाहिए या नहीं। इसके लिए सरकार की मंशा समुदाय के नेताओं और धर्मगुरुओं की छवि को ठेस पहुंचाना नहीं था।
सीएम ने खुद संभाला मोर्चा
इससे पहले ईश्वरप्पा ने कार्यस्थगन नोटिस पेश करते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार हिन्दू संगठनों को लक्ष्य बना रही है। उन्होंने कहा कि विभिन्न मठों के धार्मिक नेताओं ने भी इस परिपत्र पर निराशा जताई है और इसे समाज के हितों के प्रतिकूल करार दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि पारदर्शी तरीके से चल रहे हिन्दू धार्मिक संगठनों को सरकार अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश कर रही है। यह बहुसंख्यकों की धार्मिक भावनाओं पर हमला है। ईश्वरप्पा ने कहा कि एक तरफ सरकार बहुसंख्यकों के धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण की कोशिश कर रही है तो दूसरी तरफ तुष्टीकरण करते हुए अल्पसंख्यकों के खिलाफ मामले वापस ले रही है। ईश्वरप्पा ने इसे सरकार का हिंदू विरोधी कदम करार दिया। ईश्वरप्पा के इस बयान के बाद सदन में सिद्धरामय्या ने खुद सरकार के बचाव में मोर्चा संभाला। हालांकि, सदन में विभागीय मंत्री लमाणी भी मौजूद थे।
भाजपा-जद (ध) सरकार ने भी जारी किया था परिपत्र
अपनी सरकार के फैसले का बचाव करते हुए सिद्धरामय्या ने कहा कि भाजपा-जद (ध) की पिछली गठबंधन सरकार ने भी अदालत के आदेश के बाद धार्मिक संस्थानों को नियंत्रण में लेने के लिए शब्दश: ऐसा ही आदेश जारी किया था। गठबंधन सरकार की ओर से गठित न्यायाधीश रामा जोइस समिति की ओर से जारी परिपत्र की प्रति भी सदन में दिखाई। अदालत के फैसले के अध्ययन के गठित इस समिति ने सरकार को रिपोर्ट भी सौंपी थी। विपक्षी की ओर मुखातिब होकर सिद्धरामय्या ने कहा कि क्या अब आप हमें यह कह रहे हैं कि भाजपा भी हिंदू विरोधी है? सिद्धरामय्या ने कहा कि इस परिपत्र में कुछ भी हिंदू विरोधी नहीं है और ना ही सरकार कई सालों से सेवाएं दे रहे हिन्दू धार्मिक मठों का अधिग्रहण करने का कोई इरादा नहीं है। मठ प्रमुखों को चिंतित नहीं होना चाहिए। ऐसा केवल कुछ गलतफहमी की वजह से हुआ है। सिद्धरामय्या ने सदन में दुहराया कि वे भी हिंदू हैं और हिंदू धार्मिक स्थलों, मठों और मंदिरों के प्रति उनके मन में भी श्रद्धा है। इसी दौरान भाजपा के रामचन्द्र गौड़ा ने कहा कि सरकार ने लंबे समय तक चुप्पी क्यों साधे रखी और अब यह विवादास्पद परिपत्र क्यों जारी किया गया? सभापति डी.एच. शंकरमूर्ति ने विपक्षी के सदस्यों को शांत करने का प्रयास करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने परिपत्र वापस लेने की बात कही लिहाजा अब इस पर ज्यादा बहस नहीं होनी चाहिए। मुख्यमंत्री के जवाब से असंतुष्ट विपक्षी सदस्य सदन से बहिर्गमन कर गए, जिसके बाद दुबारा कार्यवाही शुरु हो सकी।
एक पखवाड़े में दूसरा मौका
पिछले एक पखवाड़े के दौरान यह दूसरा मौका है जब सरकार को विपक्ष के विरोध के कारण पीछे हटना पड़ा है। पिछले महीने के अंतिम सप्ताह में भी सरकार एक परिपत्र को लेकर विवादों में घिर गई थी। उस वक्त सरकार ने पिछले पांच साल के दौरान अल्पसंख्यकों के खिलाफ दायर मामलों को वापस लेने के लिए पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिए थे। बाद में हंगामा बढऩे पर सरकार ने परिपत्र में बदलाव कर सभी समुदायों के निर्दोष लोगों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने की बात कही थी। बुधवार को भी यह मसला विधानमंडल में उठा था और सरकार ने परिपत्र में बदलाव की बात कही थी।