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जनता मोदी सरकार से पूछे सवाल : चिदम्बरम

locationबैंगलोरPublished: Mar 12, 2018 01:04:51 am

गुजरात में लोगों ने सरकार से कुछ कठोर सवाल किए थे। अब ऐसा मौका कर्नाटक के पास है।

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बेंगलूरु. पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदम्बरम ने रविवार को पीएनबी बैंक घोटाले और रोजगार संकट को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा। चिदम्बरम ने कहा कि सरकार हालात की गंभीरता को समझने को तैयार नहीं है लिहाजा अब जनता को सरकार से कठोर सवाल पूछना चाहिए।
अपनी पुस्तक के विमोचन पर आयोजित कार्यक्रम में वरिष्ठ कांग्रेस नेता चिदम्बरम ने कहा कि हमें सरकार से कठोर सवाल पूछने चाहिए। जब तक हम अधिक से अधिक संख्या में सवाल नहीं पूछेंगे तब तक सरकार हर चीज को टालती रहेगी और जनता से दूरी बनाए रखेगी। चिदम्बरम ने गुजरात विधानसभा चुनाव का जिक्र करते हुए कहा कि वहां लोगों ने सरकार से कुछ कठोर सवाल किए थे। अब ऐसा मौका कर्नाटक के पास है।
नमक छिड़कर रही सरकार
चिदम्बरम ने रोजगार के घटते अवसर और सरकार के दावों पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार को अच्छी तरह से पता है कि देश में नौकरी की कमी है फिर वह भी पकौड़े बेचने को रोजगार बता रही है। भाजपा परोक्ष तौर पर युवाओं को रोजगार के लिए पकौड़े बेचने का सलाह दे रही है। यह घाव पर नमक छिड़कने जैसा है।
पीएनबी घोटाले में जताई साजिश की आशंका
केंद्रीय वित्त मंत्री रह चुके चिदम्बरम ने पीएनबी घोटाले को लेकर भी मोदी सरकार को घेरा। चिदम्बरम ने साजिश की आशंका जताते हुए कहा कि जिस तरह यह घोटाला हुआ है उससे इस बात को बल मिलता है कि कहीं से इन लोगों को मदद पहुंचाई गई होगी। उन्होंने कहा कि यह सब सिर्फ एक कारोबारी क्षेत्र-जेवरात में हो रहा है और इसके सभी प्रमुख आरोपी भी एक ही राज्य-गुजरात से हैं। बाकी कारोबारी क्षेत्रों या राज्यों में ऐसा नहीं हो रहा है। इससे लगता है कि कुछ लोगों ने इनकी कुछ हद तक मदद की होगी। हालांकि, चिदम्बरम ने कहा कि उनके पास इस बात कोई सबूत नहीं है कि किसने और कैसे इन लोगों की मदद की।
कारोबारी विफलता को दिया राजनीतिक रंग
चिदम्बरम ने कहा कि कारोबारी समस्या से जुड़े बैंकों की बढ़ती गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) के मामले बेवजह राजनीतिक रंग दे दिया गया। उन्होंने कहा कि सरकार के कारोबारी समस्या को सही तरीके से निपटने में सरकार की विफलता की कीमत आज देश को चुकानी पड़ रही है। चिदम्बरम ने कहा कि बिजली और दूरसंचार क्षेत्र में कारोबारी उथल-पुथल के कारण बढ़ते एनपीए में इन दोनों का योगदान सबसे ज्यादा रहा। पिछली सरकार ने इन दो क्षेत्रों के लिए जो नीतियां बनाई उनसे बाजार पर असर पड़ा और कंपनियां की माली हालात बिगड़ गई। उन्होंने कहा कि सबसे पहले जिन १२ कंपनियों को दिवालिया घोषित करने का प्रस्ताव संबंधित बोर्ड को भेजा गया था उनमें से छह बिजली क्षेत्र की कंपनियां थी। दूरसंचार क्षेत्र की कंपनियांं भी इस मामले में ज्यादा पीछे नहीं हैं। चिदम्बरम ने कहा कि हम इसे कारोबारी समस्या के तौर पर चिह्नित करने और उसका कारोबारी हल तलाशने में विफल रहे हैं जिसके कारण एनपीए की समस्या बढ़ रही है। चिदम्बरम ने कहा कि उच्चतम न्यायालय और नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) के दखल से भी इन क्षेत्रों की स्थितियां बिगड़ी। यूपीए सरकार के दौरान सामने आए २ जी घोटाले का जिक्र करते हुए चिदम्बरम ने कहा कि दूरसंचार क्षेत्र पर कैग की रिपोर्ट पूरी तरह से अतिशयोक्ति थी। कोयला क्षेत्र में कुछ मामलों के आधार पर २१२ खदानों के लाइसेंस अचानक रद्द कर दिए गए। चिदम्बरम ने कहा कि कारोबारी समस्या को कुछ दलों के लिए इन कारोबारी समस्याओं को राजनीतिक रंग देना आसान था लेकिन आज वह देश पर भारी पड़ रहा है।

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