वन्य जीव : इंसानों और हाथियों के बीच दिनों-दिन बढ़ते जा रहे संघर्ष पर प्रभावी नियंत्रण की कवायद, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से मांगी इजाजत
बेंगलूरु . प्रदेश में हाथियों की बढ़ती आबादी और मानव-हाथी संघर्ष पर प्रभावी नियंत्रण के लिए वन विभाग एक अनूठा प्रयोग करना चाहता है जिसके लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति मांगी गई है। वन विभाग का इरादा मादा हाथियों का गर्भ निरोधक ऑपरेशन करने की है ताकि उनकी बढ़ती आबादी पर रोक लगाई जा सके। हालांकि, अभी तक वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से इसकी अनुमति नहीं मिली है।
दरअसल, हाथियों की आबादी के मामले में प्रदेश का स्थान देश में नंबर वन है। यहां हाथियों की संख्या 8976 है। एक तरफ ये हाथी राज्य को एक विशिष्ट पहचान दिलाते हैं तो दूसरी तरफ इनकी अधिकता अधिकारियों के लिए चिंता का विषय बनी है क्योंकि उन्हें संभालना मुश्किल हो रहा है। हाथियों और मानव के बीच बढ़ता संघर्ष सबसे अधिक परेशानी का सबब बन गया है। इससे निपटने के लिए पिछले वर्ष अगस्त में ही वन विभाग ने वन एवं पर्यावण मंत्रालय को एक पत्र लिखकर विभिन्न शिविरों में अड्डा जमाए हाथियों की नसबंदी करने की इजाजत मांगी थी। इसके अलावा इस योजना को जंगली हाथियों पर भी लागू करने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव डाला था।
वन विभाग ने राज्य के सकलेशपुर और हासन जिले के कुछ इलाकों में हुए मानव-हाथी संघर्ष का उदाहरण देते हुए इसे आवश्यक बताया। केवल सकलेशपुर में ही वन विभाग के कर्मचारियों ने 45 हाथियों को नसबंदी के लिए चिह्नित किया है। वन विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि हाथी बेहद प्रभावी ढंग से अड्डा जमाते हैं। अगर उन्हें कितनी बार भी जंगलों में खदेड़ दिया जाए कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे फिर लौटकर अपने अड्डे पर आ जाते हैं। पिछले एक साल में ही इन हाथियों के झुंड में छह हाथी के बच्चे और जुड़ गए हैं।
दीर्घकालिक प्रभाव को लेकर मंत्रालय चिंतितहालांकि, केंद्र सरकार की ओर से कोई इसका कोई जवाब नहीं मिला है। अब वन विभाग ने फिर एक बार दस्तावेज तैयार किया है जिसमें हाथियों के खतरे को संख्यात्मक और मात्रात्मक दृष्टिकोण से समझाया गया है। वन विभाग के अधिकारी ने कहा कि ‘हम केवल मादा हाथियों की नसबंदी तीन साल तक करने की अनुमति मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि विभाग की योजना शिविरों में रह रहे 200 हाथियों के प्रतिरक्षा गर्भनिरोधक ऑपरेशन करने की है जिसकी सफलता के आधार पर बाद में जंगली हाथियों को उसमें जोड़ा जा सकता है। लेकिन, मंत्रालय हाथियों के जीवन और ऑपरेशन के दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर चिंतित है।
विस्तृत अध्ययन की आवश्यकतामंत्रालय सूत्रों के अनुसार एक मानक संचालन प्रक्रिया विकसित कर कर्नाटक को नसबंदी कार्यक्रम चलाने की अनुमति दी जा सकती है। मंत्रालय का मानना है कि अधिकांश हाथियों का व्यवहार और पद्धति आनुवांशिक होता है। यहां तक की उनमें प्रवास या स्थानांतरण की प्रक्रिया भी आनुवांशिक होती है। उनके इस प्राकृतिक चक्र को नहीं छेड़ा जा सकता क्योंकि हाथियों का शरीर क्रिया विज्ञान एवं
जीव विज्ञान बेहद जटिल होता है। वन मंत्री बी.रामनाथ रई ने कहा कि उन्हें जो राय मिली है वह नसबंदी कार्यक्रम के विरोध में है। फिर भी विभाग इसके लिए दबाव डाल रहा है। इस पर विस्तृत अध्ययन की जरुरत है।
नसबंदी नहीं, अलग कॉरिडोर बनेहालांकि, भारतीय विज्ञान संस्थान ने नसबंदी कार्यक्रम का समर्थन किया है फिर भी पर्यावरणवादी इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। एक पर्यावणविद् ने कहा कि ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जब तेंदुओं और बाघों के अनुचित तरीके से किए गए ऑपरेशन के कारण उनकी मौत हो गई।
उन्होंने कहा कि हाल ही में कर्नाटक पर्यावरण विभाग ने अपने लोगो में हाथियों को रखा। प्रदेश को हाथियों पर गर्व है। सरकार को हाथियों के लिए अलग कोरिडोर बनाया चाहिए और उन्हें उचित स्थान देने का प्रयास करना चाहिए न कि उनकी आबादी घटाने की कोशिश हो।