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तेल का ‘खेल’ बदल सकता है ग्रीन हाइड्रोजन, बस किफायती बनाने की चुनौती

locationबैंगलोरPublished: Dec 16, 2021 07:09:06 pm

Submitted by:

Jeevendra Jha

– सस्ती तकनीक का विकास जरूरी, कई कंपनियों ने दिखाई निवेश में रूचि

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– कुमार जीवेंद्र झा

बेंगलूरु. परंपरागत ईंधनों की बढ़ती कीमत के बीच नए विकल्पों की तलाश की जा रही है। ग्रीन हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन माना जा रहा है। अमरीका, ब्रिटेन, यूएई सहित कई देशों में इस पर काम चल रहा है। देश में भी डीजल-पेट्रोल की जगह ग्रीन हाइड्रोजन के ईंधन के तौर पर उपयोग और इससे वाहन चलाने को लेकर कवायद जारी है। लेकिन, इसे वैकल्पिक ईंधन बनाने में चुनौतियां भी कम नहीं हैं। स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की थी। इसके बाद विपुल संभावनाओं को देखते हुए देश के प्रमुख औद्योगिक समूहों ने भी पिछले कुछ महीनों के दौरान ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के क्षेत्र में निवेश की घोषणा की है। सरकारी क्षेत्र की कई कंपनियां भी इस दिशा में काम कर रही हैं। किफायती बनाने की गुत्थी सुलझ जाने पर तेल के ‘खेलÓ को ग्रीन हाइड्रोजन बदल सकता है।
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अधिक लगात, सीमित संसाधन बड़ी चुनौती
देश में ग्रीन हाइड्रोजन का बाजार अभी शैशवास्था में है। चुनिंदा भारतीय कंपनियां ही इलेक्ट्रोलाइजर बनाती हैं जिसका उपयोग ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए किया जाता है। बड़े इलेक्ट्रोलाइजर प्लांट अभी आयात ही किए जाते हैं। सरकार देश में इसके उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन योजना पर विचार कर रही है। एक अनुमान के मुताबिक देश में 60 लाख टन ग्रे हाइड्रोजन का सालाना उत्पादन औद्योगिक उपयोग के लिए होता है। अभी ग्रे हाइड्रोजन की तुलना में ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन दो-तीन गुणा महंगा है।
द एनर्जी एंड रिर्सोज इंस्टीट्यूट (टीइआरआइ) की रिपोर्ट के मुताबिक अभी ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत 5-6 अमरीकी डॉलर प्रति किलोग्राम है, जिसके कारण इसका व्यवसायिक उपयोग महंगा है। विशेषज्ञों का कहना है कि उद्योगों अथवा परिवहन में इसका उपयोग बढ़ाने के लिए कीमत २ डॉलर प्रति किलोग्राम तक लाना होगा। बड़े औद्योगिक घरानों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण इसकी संभावना भी बढ़ी है। लेकिन, सबसे बड़ी चुनौती है अगले एक दशक में ग्रीन हाइड्रोजन का दाम एक डॉलर किलोग्राम तक लाने का लक्ष्य।
सीवेज के पानी का हो सकेगा उपयोग
उधर, केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग को बढ़ावा देने की बात कह चुके हैं। गडकरी चाहते हैं कि कार, बस, ट्रक आदि ग्रीन हाइड्रोजन से चले। इसके लिए ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन सीवेज के पानी से किया जाएगा। दरअसल, नागपुर नगर निगम पिछले सात साल से सीवेज का परिष्कृत पानी राज्य सरकार को बेचता है जिससे बिजली बनाई जाती है। इससे निगम को हर साल ३२५ करोड़ रुपए की आमदनी होती है। गडकरी ने एक प्रायोगिक परियोजना के तहत एक कार खरीदी है जो ग्रीन हाइड्रोजन से चल सकती है। अभी इस पर काम चल रहा है।
घट सकता है कच्चे तेल के आयात का बिल
अभी डीजल, पेट्रोल की मांग को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर कच्चे तेल का आयात करना पड़ता है। ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग परिवहन ईंधन के तौर पर होने से कच्चे तेल के आयात पर होने वाला खर्च घट सकता है जिससे देश पर वित्तीय बोझ घटेगा।

अनुसंधान व विकास को बढ़ावा देगी सरकार
इलेक्ट्रोलाइजर के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार जल्द ही एक योजना लांच करेगी। नई तकनीकों को विकास देने की योजना है ताकि इलेक्ट्रोलाइजर का उत्पादन सस्ता हो सके। सरकार देश को आने वाले समय में ग्रीन हाइड्रोजन का बड़ा वैश्विक हब बनाना चाहती है।
-भगवंत खुबा, केंद्रीय राज्य मंत्री, नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा
असीमित संभावनाओं से भरा क्षेत्र
हाइड्रोजन उन चुनिंदा क्षेत्रों में जहां असीमित संभावनाएं हैं। भारत उन देशों में है, जिन्होंने इसके लिए राष्ट्रीय मिशन की घोषणा की है। ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने में इस क्षेत्र की बड़ी भूमिका होगी। लेकिन, परिवहन जैसे क्षेत्रों में उपयोग के लिए इसे किफायती बनना होगा।
एनएस रमेश, ऊर्जा विशेषज्ञ
क्या है ग्रीन हाइड्रोजन
यह एक हाइड्रोजन है जिसका उत्पादन अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों का उपयोग कर इलेक्ट्रोलिसिस के जरिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में पानी में मौजूद ऑक्सीजन से हाइड्रोजन को अलग करने के लिए विद्युत प्रवाह का उपयोग किया जाता है। यदि इलेक्ट्रोलिसिस के लिए आवश्यक बिजली का उत्पादन सौर या पवन ऊर्जा जैसे अक्षय स्रोतों से होता है, तो हाइड्रोजन उत्पादन की इस प्रक्रिया में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं होता है, जिसके कारण इसे ‘ग्रीनÓ हाइड्रोजन कहा जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बाकी ईंधनों की तरह ग्रीन हाइड्रोजन के दहन से भी ऊर्जा उत्पन्न होती है। लेकिन, अन्य ईंधनों के विपरीत इस का उपोत्पाद पानी है, जो इसे पर्यावरण के अधिक अनुकूल बनाता है।
हाइड्रोजन का वर्गीकरण
हाइड्रोजन निकालने की प्रक्रिया के आधार पर उसका वर्गीकरण ग्रे, ब्लू, या फिर ग्रीन हाइड्रोजन के तौर पर होता है। परंपरागत जीवाश्म ईंधन से निकाले जाने वाला हाइड्रोजन ग्रे कहलाता है। यह सस्ती प्रक्रिया है मगर इसमें काफी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है, जिसके कारण इसे ग्रे कहा जाता है। ग्रे हाइड्रोजन के उत्पादन प्रक्रिया में एक विशेष प्रक्रिया से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम कर दिया जाए तो वह ब्लू हाइड्रोजन कहलाता है। ग्रीन हाइड्रोजन स्वच्छ ऊर्जा स्त्रोतो से उत्पादित किया जाता है मगर यह लंबी प्रक्रिया है, इसमें कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं होता है।
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