बैंगलोर

इसरो का तीसरा रॉकेट भी हुआ ऑपरेशनल , जीएसएलवी मार्क-3 की दूसरी उड़ान रही सफल

16.43 मिनट बाद कक्षा में स्थापित हुआ जीसैट-29

बैंगलोरNov 14, 2018 / 05:41 pm

Rajeev Mishra

जीसैट-29 के साथ जीएसएलवी मार्क-3 ने भरी उड़ान

बेंगलूरु. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का तीसरी पीढ़ी का भू-स्थैतिक प्रक्षेपण (जीएसएलवी मार्क-3) भी बुधवार को ऑपरेशनल हो गया। इसे दो सफल उड़ानों के बाद ऑपरेशनल घोषित किया गया। इससे पहले इसरो ने जीएसएलवी मार्क-3-डी-02 से अत्याधुनिक स्वदेशी संचार उपग्रह जीसैट-29 का प्रक्षेपण किया।
इसरो अध्यक्ष के. शिवन ने सफल प्रक्षेपण के बाद जीएसएलवी मार्क-3 के ऑपरेशनल होने की घोषणा की। नव विकसित क्रायोजेनिक इंजन सी-25 से लैस जीएसएलवी मार्क-3 की यह दूसरी विकासात्मक उड़ान थी। इससे चंद्रयान-2 मिशन लांच करने का रास्ता भी साफ हो गया।
इससे पहले आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लांच पैड से इसरो ने लगभग 26 घंटे की उलटी गिनती के बाद बुधवार शाम 5.08 बजे जीसैट-29 का प्रक्षेपण जीएसएलवी मार्क-3 से किया। प्रक्षेपण पूरी तरह सामान्य रहा। चक्रवाती तूफान गाजा का कोई असर नहीं था। आसमान साफ होने से प्रक्षेपण का नजारा काफी देर तक देखा जा सका। लगभग 1.15 मिनट तक रॉकेट आसामन को चीरता और अपने पीछे धुंआ का गुब्बार छोड़ता हुए अपने निर्दिष्ट पथ पर अग्रसर होता नजर आया। यह एक अद्भुत नजारा था जो संभवत: लंबे अंतराल के बाद इतनी देर तक देखा गया।
उलटी गिनती के दौरान प्रक्षेपण से पांच घंटे पहले तरण ऑक्सीजन और तीन घंटे तरल हाइड्रोजन क्रायोजनिक चरण में भरा गया। यह एक कठिन और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया होती है क्योंकि तरल ऑक्सीजन को माइनस 195 डिग्री और तरल हाइड्रोजन को माइनस 253 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर भंडारित करना होता है। यह प्रक्रिया बिल्कुल सामान्य रही। दिन में प्रक्षेपण से पहले हल्के बादल आसमान में थे लेकिन शाम के समय आसमान साफ था।
16.43 बाद कक्षा में हुआ स्थापित
प्रक्षेपण के लगभग 16 मिनट 43 सेकेंड बाद रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 डी-2 उपग्रह जीसैट-29 उपग्रह को 190 किमी (पेरिगी) गुणा 35,975 किमी (एपोगी) वाली अंडाकार भू-स्थैतिक अंतरण कक्षा (जीटीओ) में स्थापित कर दिया। इसरो की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार जीटीओ में स्थापित किए जाने के बाद चरणबद्ध तरीके से तरल एपोगी मोटर फायर कर जीसैट-29 उपग्रह को स्थायी रूप से 55 डिग्री पूर्वी देशांतर में 36 हजार किमी गुणा 36 किमी (लगभग) वाली भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित कर दिया जाएगा जहां यह उपग्रह ऑपरेशनल होगा और 10 वर्षों तक देश को सेवाएं प्रदान करेगा।
चंद्रयान-२ का प्रक्षेपण जीएसएलवी मार्क-3 से
दरअसल, चंद्रयान-2 मिशन पहले जीएसएलवी मार्क-2 से लांच करने की योजना थी जो ऑपरेशनल हो चुका है। लेकिन, नई योजना के मुताबिक चंद्र मिशन जीएसएलवी मार्क-3 से लांच किया जाएगा क्योंकि उसका वजन लगभग 600 किलोग्राम तक बढ़ चुका है। जीएसएलवी मार्क-3 की यह दूसरी विकासात्मक उड़ान है। पहली उड़ान में इस रॉकेट ने 3136 किलोग्राम वजनी संचार उपग्रह जीसैट-19 को कक्षा में सफलता पूर्वक स्थापित किया था।
इसरो का बाहुबली रॉकेट
नई पीढ़ी के इस रॉकेट का वजन 640 टन है और यह 4 टन वजनी संचार उपग्रहों को पृथ्वी की भू-अंतरण कक्षा (जीटीओ) और 10 टन वजनी उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा (लोअर अर्थ आर्बिट या एलईओ) में स्थापित करने की क्षमता रखता है जिसमें मानव युक्त अभियान भेजे जाते हैं। लेकिन, मानव मिशन लांच करने की क्षमता हासिल करने के लिए इस रॉकेट को कम से कम 10 लगातार सफल उड़ानें भरना जरूरी है। जीएसएलवी मार्क-3 इसरो द्वारा विकसित अन्य दो रॉकेटों पीएसएलवी और जीएसएलवी मार्क-2 की तुलना में सबसे छोटा मगर सबसे भारी है। इसकी ऊंचाई 43.49 मीटर है जबकि पीएसएलवी की ऊंचाई 44 मीटर और जीएसएलवी मार्क-2 की ऊंचाई 49 मीटर है। लेकिन, यह तीनों में सबसे अधिक वजनी रॉकेट है। जहां पीएसएलवी (एक्सएल) का वजन 320 टन है वहीं जीएसएलवी मार्क-2 का वजन 414 टन है। इसरो का पहला रॉकेट एसएलवी-3 का वजन 17 टन था और वह 22.7 मीटर ऊंचा था जबकि एएसएलवी की ऊंचाई 23.5 मीटर और वजन 39 टन था।
 

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