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हे राम! मैं तुम्हे भूलूं नहीं…

locationबैंगलोरPublished: Sep 10, 2018 01:48:07 am

Submitted by:

Rajendra Vyas

गुरु स्मृति कार्यक्रम

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हे राम! मैं तुम्हे भूलूं नहीं…

बेंगलूरु. सीरवी समाज कर्नाटक ट्रस्ट की ओर से बलेपेट स्थित सीरवी समाज भवन में संत अचलाराम के चातुर्मास कार्यक्रम के तहत शनिवार को गुरु स्मृति कार्यक्रम संपन्न हुआ।
समाज की आराध्य आईमाता के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन और स्तुति के साथ विशेष पूजा की गई। अध्यक्ष हेमाराम पंवार ने स्वागत किया। संत अचलाराम ने हे ! राम मैं तुम्हे भूलूं नहीं…की सुंदर स्तुति व प्रार्थना का संगीतमय वर्णन कराया। उन्होंने कहा कि हमारे भारत देश की संस्कृति अति उत्कृष्ट संकृति है। यहां छोटे बड़ों का आदर व सम्मान करते हैं। भजन मंडलियों ने भजन प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम में वीरमराम सोलंकी, हिम्मताराम पंवार, कालूराम, वालाराम काग, जगदीश मुलेवा, तेजाराम राठौड़ सहित अनेक गणमान्य मौजूद रहे। पुजारी अन्नाराम महाराज ने स्तुति प्रस्तुत की। समाज के सचिव ओमप्रकाश बर्फा ने बताया कि 11 सितम्बर को फ्रीडर्म पार्क में 39वां वार्षिक सम्मेलन होगा।
कत्र्तव्य समझकर करें सहायता
चामराजनगर. गुंडलपेट स्थानक में साध्वी साक्षी ज्योति ने कहा कि उपकारी को कुछ देना कृतज्ञता होती है, लेकिन जिसके साथ किसी भी प्रकार का संबंध नहीं है उसकी सहायता करना साधर्मिकता होती है। उन्होंने कहा कि किसी के ऊपर उपकार जताने के लिए कभी किसी की सहायता नहीं करनी चाहिए। सहायता तो जीवन का कत्र्तव्य समझकर करनी चाहिए। दान देना भी एक प्रकार की साधर्मिक भक्ति है। साधर्मिक भक्ति का धर्म उत्तम है। साधर्मिक भक्ति करने से दो हृदय निकट आते हैं और दोनों में धर्म के प्रति सद्भाव बढ़ता है। मंजू दक का मासखमण गतिमान है। कल्पसूत्र का वाचन किया गया।
दान देने से बढ़ती है लक्ष्मी
मैसूरु. वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, सिद्धार्थनगर सीआइटीबी परिसर में श्रुत मुनि ने कहा कि जो धन मनुष्य ने पुरुषार्थ से, पुण्य से, पूर्वजन्म के सद्कार्यों से एवं वर्तमान में अनेक कर्मों का बंध करते हुए झूठ से संचित किया जाता है उस धन का मृत्यु के बाद क्या होगा यह हमें चिंतन करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि संचित धन का सदुपयोग करने के लिए धर्म में लगाना चाहिए। अर्थात् धन का सदुपयोग दान में या संघ में, गौशाला, धर्मस्थान निर्माण, स्वधर्मी सेवा, जन उपयोगी संस्था, हॉस्पिटल में करना चाहिए। संचित धन की लूटमार एवं विनाश परिवार जनों द्वारा निश्चित है। अत: हमें अपने हाथों से अपने धन का सदुपयोग करते हुए पुण्यों का संचय करना चाहिए। दान देने से लक्ष्मी बढ़ती है। अक्षर मुनि ने तपश्वियों को प्रत्याख्यान दिलाए एवं गीतिका प्रस्तुत की।
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