बेंगलूरु. कोविड-19 की शुरुआत में रेलवे द्वारा आइसोलेशन कोच के तौर पर तैयार किए गए आधे कोच का इस्तेमाल दक्षिण पश्चिम रेलवे श्रमिक स्पेशल ट्रेन में कर रहा है। रेलवे ने इन कोच को आइसोलेशन वार्ड के तौर पर तैयार किया था। पूरे राज्य में कोविड-१९ की भयावहता को देखते हुए कोरोना रोगियों को बिस्तर उपलब्ध कराने के लिए दक्षिण पश्चिम रेलवे ने लक्ष्य के विरुद्ध ३२० कोच को आइसोलेशन में बदल दिया था। मंगलवार शाम तक राज्य के ५.१ प्रतिशत अस्पताल ही कोविड-१९ के मरीजों के लिए आरक्षित थे। स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, कि विक्टोरिया अस्पताल में, 374 बेड खाली हैं और केवल 126 पर मरीज हैं। उन्होंने कहा कि हमने 900 बिस्तरों में से 500 बेड की पहचान की है। आईसीयू में 50 बेड में से केवल छह पर मरीज हैं और 44 खाली हैं। उन्होंने कहा कि 50 वेंटिलेटर में से एक पर भी मरीज नहीं था। इस बीच, बॉरिंग और लेडी कर्जन अस्पताल में उपलब्ध 240 में से 10 बेड पर ही मरीज हैं। इसमें 24 आईसीयू के बेड शामिल हैं। अस्पताल में चार वेंटिलेटर हैं जिनका कोई उपयोग नहीं हो रहा है। इसलिए रेलवे ने परिवर्तित किए गए 320 आइसोलेशन कोच में से आधे कोच का इस्तेमाल श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में किया है। दपरे की मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी ई. विजया ने कहा कि आइसोलेशन कोच में रखे “डस्टबिन, बाल्टी, मग, स्क्रीन और होल्डर जैसी वस्तुओं को रेलवे इन्वेंट्री में वापस इस्तेमाल के लिए रखा जाएगा। रेलवे के कर्मचारियों ने सवारी गाड़ी के डिब्बों को आइसोलेशन कोच में परिवर्तित किया है, इसलिए लेबर का कोई नुकसान नहीं हुआ है। रेलवे ने प्रत्येक कोच को परिवर्तित करने पर करीब 30,000 रुपए खर्च किए। रेलवे को पुन: परिवर्तन पर करीब 10,000 रुपए का नुकसान हो सकता है। विजया ने कहा कि आइसोलेशन कोचों का उपयोग केवल तब ही किया जा सकता है जब राज्य उनसे अनुरोध करे और स्वास्थ्य कर्मियों को नियुक्त करने को तैयार हो।