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मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर महज 6100 रुपए मुआवजा!

locationबैंगलोरPublished: Aug 11, 2020 09:52:16 pm

Submitted by:

Rajeev Mishra

हाइ कोर्ट ने सरकार को मुआवजे की राशि पर पुनर्विचार का दिया निर्देश

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बेंगलूरु.
कर्नाटक हाइ कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह कोरोना लॉकडाउन के दौरान कुछ उपद्रवियों द्वारा प्रवासी श्रमिकों की झोपडिय़ां जलाए जाने के एवज में केवल 6100 रुपए का मुआवजा देने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करे।
मामले की सुनवाई करते हुए हाइ कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस अशोक एस.किनगी की खंडपीठ ने मुआवजे की राशि पर अत्यंत क्षोभ व्यक्त किया। पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर (जिसके परिणामस्वरूप गरीब लोगों के घरों को नष्ट कर दिया गया) मात्र 6100 रुपए का मुआवजा अनुचित और अत्यंत कम है। राज्य सरकार को केवल 6100 रुपये का भुगतान करने के अपने फैसले पर अवश्य पुनर्विचार करना चाहिए। पीठ ने राज्य सरकार को इसपर विचार करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह राशि जल्द से जल्द प्रभावित परिवारों के बीच वितरित हो जाए ताकि महामारी से प्रभावित इन दिनों में उन्हें कुछ राहत मिल सके। सरकार की ओर से पेश हुए अधिवक्ता विक्रम हुइगोल की ओर से मुआवजे की राशि का खुलासा किए जाने के बाद अदालत ने कहा कि कुछ लोगों ने कानून अपने हाथ में लेकर गरीबों के घर उजाड़ दिए और सरकार उन्हें सिर्फ 6100 रुपए मुआवजा दे रही है? हुइगोल ने कहा कि हर्जाने से संबंधित सटीक राशि निर्धारित करना लगभग असंभव कार्य है क्योंकि कई प्रवासी जो वापस आ गए थे, उन्होंने पहले ही अपने घरों का पुनर्निर्माण कर लिया था। अदालत ने कहा कि सरकारी मशीनरी की विफलता के कारण कई लोगों ने अपना आश्रय खो दिया और यह संविधान के अनुच्छेद 21 का हनन है।

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