लॉकडाउन में साकार हुई संयुक्त परिवार की अवधारणा
बैंगलोरPublished: May 26, 2020 03:12:37 pm
धर्म, ध्यान में बढ़ी रुचिखर्च पर पूरी तरह शिकंजा
लॉकडाउन में साकार हुई संयुक्त परिवार की अवधारणा
बेंगलूरु. कोरोना महामारी के दौरान देशभर में किए गए लॉकडाउन ने एक बार फिर से संयुक्त परिवारों की अवधारणा को बल दिया है। लोग समझ गए हैं कि संयुक्त परिवारों में परेशानियों को घर के सदस्य आपस में बांट लेते हैं जबकि एकल परिवार में घर के मुखिया को ही परेशानियों का सामना करना पड़ता है। महिलाओं की मानें तो संयुक्त परिवारों ने लॉकडाउन का भरपूर आनन्द परिवार के साथ लिया। इस दौरान जहां बच्चों ने धर्म ध्यान में रुचि दिखाई वहीं अपनी संस्कृति से रूबरू भी हो रहे हैं।
शंकरपुरम निवासी शोभा भंडारी ने कहा कि लॉकडाउन में बहुत सीखने को मिला है। सुबह की शुरुआत जो की भाग दौड़ भरी होती थी। अब व्यायाम घर पर पूजा पाठ, बच्चों को पढ़ाना बुजुर्गों का ध्यान रखने में व्यतीत हो रहा है। परिवार में बेहतर तालमेल स्थापित कर एक दूसरे को समझने मे सहयोग मिला। जहां घर में नौकर काम करता था, अब घर के सदस्य मिलजुलकर घर के काम करते हैं। वर्कफ्रॉम होम कर बच्चों के साथ उनकी पढ़ाई, खेल चित्रकला एवं इनडोर गेम्स में समय देते हुए घर पर सुरक्षित रखते हुए उनका ख्याल रखा। पोषटिकता को महत्व देते हुए सात्विक आहार का सेवन कर स्वास्थ्य का खयाल रखते हुए गर्म पानी पीना, सुबह आंवला पुदीने का ज्यूस, हल्दी दूध एवं काढ़ा को दिनचर्या मे शामिल किया।
हेब्बाल निवासी मीना गांधी ने कहा कि लॉकडाउन में अपने बच्चों के साथ रहकर एन्जॉय किया। लम्बे समय से बच्चे ऑफिस का या बाहर का खाना खाने को मजबूर थे। कई तरह के व्यंजन बना कर खिलाए भी और अपनी बेटियों को सिखाए। लॉकडाउन में समय, अनुशासन, सामायिक, शरीर के प्रति सजगता, मिलन सारिता सफाई आदि विषयों को भली-भांति समझने का अवसर मिला। कोरोना जैसे जानलेवा रोग से बचने के लिए सिर्फ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले आहार का ही चयन किया। आज बाजार के भोज्य पदार्थ सिर्फ उदरपूर्ति करते है जिंदगी को निरोगी रखने के लिए घर का खाना ही विश्वसनीय है। आने वाले समय में और भी ज्यादा कोरोना जैसे वायरस जन्म लेते रहेंगे।
खत्रीगुप्पे निवासी मीनू सोनी ने बताया कि लॉकडाउन का यह समय मेरे लिए एक नया अनुभव लेकर आया है। इस दौरान मैने नए व्यंजन भी बनाए तो, परिवारवाले जो की दूसरे शहरों में हंै, उनके साथ ऑनलाइन चैलेंज और टास्क भी पूरे किए। इसी दौरान किसी का भी जन्मदिन आया तो वह भी हमने वीडियो कॉल करके मनाया। लॉकडॉउन के समय ने सोई हुई प्रतिभा को निखारने का मौका दिया। शादी के पहले मैं पेंटिंग किया करती थी, जो कि शादी के बाद पारिवारिक व्यस्तता के कारण,जैसे भूल ही चुकी थी। मुझे लगा कि इस समय को कुछ यादगार बनाया जाए, तो मैने बहुत सी पैंटिग्स बनाई जिसे मेरे परिवार वालों और मित्रों ने बहुत पसंद किया और मेरा उत्साह भी बढ़ाया। मेरे लिए यह लोकडाउन का समय बहुत ही कलात्मक रहा है।
बसवेश्वर नगर निवासी माया श्रीवास्तव ने कहा कि लॉकडाउन का समय हमने घर में रह कर पूरे परिवार के साथ साकारत्मक पहलू से जिया। हमारा परिवार 5 सदस्यों का एक छोटा सा कुनबा है, बेटा-बहू नौकरी मे हैं और पोती स्कूल जाती है। काम वाली बाई को छुट्टी दे दी थी। हिदायत के साथ की वह भी इस कोरोना काल में घर पर रहे और अपने परिवार का ख्याल रखे। क्योंकि सभी को इस समय पूरे समाज का ध्यान रखना है, चाहे छोटा या बड़ा। अभी हम सब घर पर रह कर एक दूसरे के मनोरंजन का ख्याल रखते हैं तथा घर के काम में सभी सहयोग करते हैं। स्वस्थ्य के लिहाज से हमने भोजन घर पर ही बनाने तथा गरम ब्यंजनों को तवज्जो दी है। अत: मेरी महिलाओं/गृहणियों को सलाह है कि लॉक डाउन को सहजता से लें।
एन.आर कॉलोनी निवासी सुनीता गुलेच्छा ने बताया कि लॉकडाउन में बाहरी चीज पर बिलकुल रोक लगा दी थी। सभी ने बाहर जाने पर पूरी रोक लगा दी। सामान्य तौर पर भी हम बाहरी खाना पसंद नहीं करते हैं। लॉकडाउन में तो इस पर पूरी तरह से रोक ही लगा दी। घर में ही हमने नई-नई रेसेपी बनाई और बच्चों को भी सिखाई जो जीवनभर उनके काम आएगी। इस दौरान मेरी बड़ी बेटी ने तो इस दौरान इंटरनेट के माध्यम से ब्राइडल मेकअप के आर्ट सीखे और आगे वह दूसरों को सिखाने के लिए कोचिंग भी शुरू करने पर विचार कर रही है। हमने फ्री टाइम में अपने दूर-दूर के रिश्तेदारों से भी फोन पर बातचीत की और हमारी भूली बिसरी यादों को भी प्रगाढ़ किया। परिवार के लोग हर कार्य में स्वास्थ्य की सुरक्षा का पूरा ध्यान रख रहे हैं।
रांका पार्क निवासी विनीता बलदोटा का कहना है कि कोरोना महामारी से हमें बहुत कुछ सीखने को मिला है। इस महामारी ने हमें स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने के लिए प्रतिबद्ध रहना सिखा दिया है। लॉकडाउन में मैं प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर योग एवं प्राणायाम करती हूं और सभी सदस्यों को भी सिखाती हूं। साथ ही अपनी सासू मां के साथ भोजन की राजस्थानी आइटम्स की पूरी जानकारी ले रही हूं और हर दिन कुछ अलग ही अंदाज का खाना बन रहा है जो सभी को आनंदित कर रहा है। दाल-बाटी, चूरमा का सभी ने भर पूर स्वाद लिया।ं मूंगदाल का हलवा भी मैंने बनाया, जिसे सभी ने सराहा। फुर्सत के क्षणों में मैं अपने विचारों को लिखकर अपनी लेखन कला को भी निखार रही हूं।
हनुमंतनगर निवासी प्रमिला मेहता ने महिला का महत्व कुछ इस प्रकार समझाया। म-मजबूत आत्मबल से, हि-हिम्मत के साथ तथा ला-लॉकडाउन की पालना। उन्होंने कहा कि सीमित संसाधनों के साथ लॉकडाउन का पालन करनेे में महिला का कोई सानी नहीं। धर्म, स्वाध्याय और कर्म की अपनी महत्ता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि हमें अपने किए कर्मों का फल भोगना ही है। महिला ऐसी विषम परिस्थितियों में ना केवल स्वयं सम्भली, बल्कि परिवार को संभाले रखा। परिवारजनों का ध्यान रखते हुए व्यक्तिगत इम्युनिटी को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया। देव-गुरु-धर्म की कृपा से कोरोना महामारी के प्रकोप का खात्मा हो तथा जनजीवन पटरी पर आकर स्वाभाविक रफ्तार पकड़े, यही शुभेच्छा हैं।
हनुमंतनगर निवासी दीपिका रूणवाल का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान अपने घरों में रहने से हमें प्रतिबिंबित होने का समय मिला है। कोरोनो जैसी महामारी ने परिवारों में एक जुड़ाव पैदा कर दिया और बचपन के उन दिनों को फिर से याद करना शुरू कर दिया। कुछ माता-पिता खुशी और खुशी के अपने क्षणों को जारी करके छोटे बन गए। हमने अपने रिश्तों को फिर से जोड़ा और जो हमारे लिए महत्वपूर्ण है। कोरोना छूटने के बाद मास्क पहनना और सामाजिक दूरी करना तय किया है। लॉकडाउन ने हमें सुरक्षा और सुरक्षा का एक तत्व दिया, फिर भी हम सीधे उन भावनात्मक संबंधों में फंस गए और हमें इस संकट से गुजरना पड़ा। सुरक्षित रहें और स्वस्थ रहें। सही कहा जाए तो कोरोना ने परिवारों को जोडऩे में अहम भूूमिका अदा की है।
टी.दासरहल्ली निवासी नीता पोखरना का कहना है कि यह लॉकडाउन हमेशा यादगार रहेगा। इस लॉकडाउन में बहुत कुछ नया सीखने को मिला। सम्पूर्ण लॉकडाउन का पालन करते हुए सर्वप्रथम जरूरतमंदों को भोजन पहुंचाने मे मदद करना, बच्चों द्वारा नए-नए स्वादिष्ट व्यंजन का स्वाद, परिवार सहित धर्म ध्यान समायिक आदि करना, पुराने कपड़े और अनेक पुरानी वस्तुओं से कुछ नया बनाना सीखना इत्यादि करने में समय ऐसा निकला पता ही नहीं चला। बच्चो एवं परिवार के साथ दूरदर्शन टीवी पर रामायण, महाभारत और अनेक पुराने सीरियल देखकर वह पुराने सुनहरे पल याद आ गए। बच्चों को जो हम इतने सालों से सिखा नहीं पाए वे इस लॉकडाउन मेें बच्चंो ने अपनी जिम्मेदारियां स्वयं सीख लीं। लॉकडाउन में इतना नया सीखने को मिला वह जिंदंगी भर याद रहेगा।
बनशंकरी तृतीय स्टेज निवासी इन्दु व्यास का कहना है कि लॉकडाउन कई परिवारों के लिए प्रशिक्षण काल रहा। इस दौरान हमें परिवार के साथ रहने का मौका मिला। परिवार के साथ सामंंजस्य बढ़ाने का सुअवसर मिला। बच्चों व बहुओं का धर्म कर्म में रुझान बढ़ा। सुबह पूजा अर्चना कर अपने आस पास के माहौल को प्रदूषण मुक्त किया साथ ही बच्चों का धर्म की ओर रुझान बढऩे से संस्कार परिवर्तन हुए। उन्होंने कहा कि दो माह के दौरान अनावश्यक खर्चों पर रोक रही। इससे अनुभव किया कि कम खर्च में भी घर को आसानी से चलाया जा सकता है। कोरोना से बचने के लिए घर के मुख्य द्वार पर सैनेटाइजर की बोतल रख दी। बाहर से आने वाले परिजनों को सैनेटाइजर से हाथ धोने के बाद सीधे बाथरूम का रास्ता दिखाया ताकि सभी स्वस्थ रहें।