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प्रचार सामग्री पर धन खर्च करने में हिचकिचाहट

locationबैंगलोरPublished: Mar 25, 2019 01:33:13 am

चुनाव आयोग द्वारा चुनाव प्रचार सामग्रियों के उपयोग को लेकर सख्त दिशा निर्देश जारी करने के कारण राज्य में करोड़ों रुपए का प्रचार सामग्री उद्योग का धंधा मंदा पड़ा है।

प्रचार सामग्री पर धन खर्च करने में हिचकिचाहट

प्रचार सामग्री पर धन खर्च करने में हिचकिचाहट

मैसूरु. चुनाव आयोग द्वारा चुनाव प्रचार सामग्रियों के उपयोग को लेकर सख्त दिशा निर्देश जारी करने के कारण राज्य में करोड़ों रुपए का प्रचार सामग्री उद्योग का धंधा मंदा पड़ा है। उम्मीदवारों को फ्लेक्स, बैनर, बंटिग, पोस्टर आदि के उपयोग के पहले चुनाव अधिकारियों से अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य है।

प्रचार सामग्री के उपयोग का व्यय भी उम्मीदवार के चुनावी खर्चे में जुटता है। प्रचार सामग्री के उपयोग को लेकर कई प्रकार के दिशा-निर्देश होने के कारण उम्मीदवारों द्वारा सीमित संख्या में प्रचार सामग्री का उपयोग किया जा रहा है। इसका सीधा असर उद्योग के व्यवसाय पर हो रहा है। वहीं, विधानसभा चुनाव २०१८ में ही आयोग द्वारा चुनाव सामग्री के उपयोग में प्लास्टिक के बैनर पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस कारण फ्लैक्स का इस्तेमाल भी नहीं हो रहा है।


राजनीतिक दलों के नेताओं के अनुसार प्रचार सामग्री उपयोग की अनुमति प्राप्ति भी आसान नहीं है। अगर कोई बिना अनुमति के किसी प्रकार की प्रचार सामग्री का उपयोग करते है तो चुनाव आयोग और पुलिस द्वारा मामला भी दर्ज किया जाता है। इसलिए राजनीतिक दलों का चुनाव प्रचार अब बेहद सीमित प्रचार सामग्री के साथ हो रहा है।


प्रचार सामग्री उद्योग के जानकारों का कहना है कि मांग में आई कमी के कारण राज्य में इस उद्योग से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों को करीब ३०० करोड़ रुपए का नुकसान होगा, जबकि हजारों लोग और उनके परिवार के सदस्यों की आजीविका प्रभावित होगी। प्रतिबंधों ने उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के बीच चिंता पैदा कर दी है, और वे प्रचार सामग्री में खर्च करने में संकोच कर रहे हैं।


एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ बेंगलूरु में करीब ३०० डिजिटल प्रिंटिंग इकाइयां हैं, जबकि राज्य में १००० से ज्यादा हैं। प्रिटिंग इकाइयों को चुनाव के समय व्यवसाय बढऩे की उम्मीद रहती है, लेकिन आयोग की सख्ती ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। प्रचार सामग्री निर्माण में दर्जी, बढ़ई आदि भी बड़ी संख्या में सीधे जुड़े रहते हैं, लेकिन मंाग में कमी से इन पेशों से जुड़े लोगों का व्यवसाय भी प्रभावित हुआ है। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार लोकसभा चुनाव को देखते हुए कई डिजिटल प्रिंटिंग इकाइयों ने नई मशीनों की खरीद पर भारी निवेश किया था। इसके लिए बैंकों से ऋण लिए गए थे, लेकिन अब मांग में कमी ने उनके निवेश को झटका दिया है।


विज्ञापन और पेड न्यूज पर नजर
चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के मीडिया विज्ञापनों पर भी सख्ती दिखाई है। विज्ञापन निगरानी के लिए सूचना और प्रचार विभाग के तहत जिला स्तरीय समितियों का गठन किया गया है। जो भी उम्मीदवार या राजनीतिक दल विज्ञापन बनाना चाहते थे, उन्हें समिति से अनुमति लेनी होती है। यह समिति ‘पेड न्यूज’ पर भी ध्यान देती है जो समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिखाई देती है। विज्ञापन सख्ती के कारण मीडिया उद्योग का राजस्व भी प्रभावित हुआ है।

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