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किस करवट बैठेगा भाजपा का ‘बल्लारी’ दांव

locationबैंगलोरPublished: Apr 18, 2018 01:11:44 am

राजनीति में रेड्डी परिवार की वापसी …

जनार्दन रेडडी
बेंगलूरु. बल्लारी एक बार फिर से चुनावी केंद्र बिंदु बन गया है। पिछले चुनाव में भी बल्लारी केंंद्र बिंदु था और राज्य में राजनीतिक बदलाव का कारक भी। विपुल खनिज संपदा से समृद्ध बल्लारी एक बार फिर चुनावी बिसात को बदलने वाला साबित हो सकता है। करीब पांच साल से सियासी वनवास में रहे रेड्डी परिवार की चुनावी राजनीति में वापसी हुई है। भाजपा की दूसरी सूची में पूर्व मंत्री जी. जनार्दन रेड्डी के सबसे छोटे भाई सोमशेखर रेड्डी का नाम शामिल है। रेड्डी की वापसी के साथ ही बल्लारी के खनन घोटाले का मामला भी एक बार से चर्चाओं में है। १९९९ के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और भाजपा नेता सुषमा स्वराज के बीच मुकाबले के समय से ही बल्लारी और रेड्डी बंंधु भी चर्चा में रहे हैं। हालांकि, पिछले पांच साल में बल्लारी का राजनीतिक परिदृश्य काफी बदल चुका है।
महीने भर पहले तक रेड्डी बंधुओं का राजनीतिक भविष्य अधर में था और विधानसभा चुनाव में रेड्डी या उनके करीबी नेताओं को टिकट देने को लेकर भाजपा आलाकमान मौन साधे हुए था। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मैसूरु दौरे के दौरान दो टूक कहा था कि पार्टी का जनार्दन रेड्डी से कोई संबंध नहीं है। हालांकि, रेड्डी बंधुओं के करीबी सांसद बी. श्रीरामुलू यह दावा दोहराते रहे कि जनार्दन रेड्डी अब भी भाजपा से जुड़े हैं।
राजनीतिक हलकों में शाह के इस बयान को रेड्डी बंधुओं के राजनीतिक भविष्य के अंत के तौर पर देखा जा रहा था और परेशान रेड्डी बंधुओं ने दबाव बढ़ाने के लिए आनन-फानन में बैठक भी की थी। भाजपा से सकारात्मक संकेत नहीं मिलने के बाद रेड्डी खेमे ने अपने कुछ लोगों को कांग्रेस और जद (ध) में भी शामिल कराया ताकि राजनीति में प्रासांगिक बने रह सकें। रेड्डी बंधु एक तरफ भाजपा पर दबाव बढ़ाने में जुटे थे तो दूसरी तरफ उनके विश्वासपात्र माने जाने वाले बल्लारी के सांसद श्रीरामुलू पर्दे के पीछे काम कर रहे थे। बताया जाता है कि श्रीरामुलू ने ही भाजपा आलाकमान को रेड्डी बंधुओं को एक और मौका देने के लिए राजी किया। हालांकि, रेड्डी बंधुओं की ताकत और वैभव में आई गिरावट के साथ ही बल्लारी जिले पर उनकी पकड़ भी ढीली पड़ चुकी है फिर भी वे बल्लारी और आसपास के क्षेत्रों की राजनीति को प्रभावित करने की स्थिति में हैं।
अवैध खनन घोटाले में करीब ४ साल तक हैदराबाद और बेंगलूरु की जेल में रहने के बाद जनार्दन रेड्डी सार्वजनिक जीवन से दूर रहे हैं। शीर्ष अदालत ने उनके बल्लारी जाने पर रोक लगा रखी है।
पिछले चुनाव में भाजपा ने रेड्डी परिवार या उनके किसी करीबी को टिकट नहीं दिया था। श्रीरामुलू को छोड़कर रेड्डी के करीबी में से अभी कोई भी राजनीति में नहीं था और इस कारण पिछले पांच-छह सालों में उनके विरोधी फिर से मजबूत हो चुके हैं।
जमानत पर रिहा होने के बाद से जनार्दन ने राजनीति में सक्रिय होने की कोशिश की लेकिन पार्टी आलाकमान ने उन्हें ज्यादा महत्व नहीं दिया। हालांकि, पार्टी ने रेड्डी के दो भाइयों-करुणाकर और सोमशेखर को उनसे से दूरी बनाए रखने के लिए कहा ताकि वे दागी छवि की परछाई से बाहर आ सकें। हालांकि, रेड्डी और भाजपा की निकटता २०१६ में बढ़ती दिखी जब रेड्डी की बेटी शादी हुई थी। भाजपा के अधिकांश बड़े नेता उसमें शामिल हुए थे लेकिन बड़े भाई करुणाकर को जनार्दन ने नहीं बुलाया। इस साल येड्डियूरप्पा की परिवर्तन यात्रा के दौरान चित्रदुर्गा जिले की हरप्पनहल्ली की रैली में दोनों भाई पहुंचे तो लेकिन एक-दूसरे से दूर ही बने रहे। हरप्पनहल्ली से करुणाकर भी इस बार टिकट के दावेदार थे लेकिन भाजपा ने अभी यहां से उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं। चर्चा है कि भाजपा करुणाकर को भी मौका दे सकती है।
रेड्डी बंधुओं का राजनीतिक भविष्य अधर में था लेकिन पिछले एक पखवाड़े में तेजी से बदले घटनाक्रम ने उन्हें फिर से सियासी केंद्र बिंदु में ला दिया है। रेड्डी बंधुओं में से सबसे छोटे सोमशेखर के अलावा पार्टी ने परिवार के करीबी टी ए सुरेश बाबू और सण्ण फकीरप्पा को भी टिकट दिया है। सोमेशखर बल्लारी शहर से मौजूदा विधायक अनिल लाड के खिलाफ मैदान में होंगे। लाड को सोमशेखर ने २००८ के चुनाव में करीब एक हजार मतों से हराया था। छोटे भाई और दो करीबियों को टिकट मिलने से जनार्दन खुश बताए जाते हैं। बताया जाता है कि उन्होंने टिकट की घोषणा के बाद अपने समर्थकों से कहा कि अब उनके परिवार के राजनीतिक जीवन का दूसरा दौर शुरु हो गया है और यह काफी अच्छा रहेगा। भाजपा और रेड्डी, दोनों ही चुनावी कुरुक्षेत्र में अपना रण बचाने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा को रेड्डी के राजनीतिक प्रभाव पर भरोसा है लेकिन यह दांव किस करवट बैठेगा यह तो बाद में ही पता चलेगा।

सत्ता मिलने और जाने का कारक भी
विंध्य के दक्षिण में पहली बार 2008 में भाजपा अपने बलबूते सत्ता में आई थी और इसमें रेड्डी बंधुओं की भूमिका सबसे अह्म थी। रेड्डी बंधुओं को इसका लाभ भी मिला। बड़े भाई करुणाकर और जनार्दन रेड्डी को बी एस येड्डियूरप्पा सरकार में काबीना मंत्री का पद मिला तो छोटे भाई सोमशेखर कर्नाटक दुग्ध महासंघ के अध्यक्ष बने। २००८-१३ के दौरान भाजपा के शासनकाल में राजनीतिक तौर पर प्रभावी रेड्डी बंधुओं की खनन घोटाले में संलिप्तता के आरोपों ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। बल्लारी जिले की नौ सीटें संख्या के लिहाज से भले कम हों लेकिन इसका राजनीतिक प्रभाव बेंगलूरु की २८ या बेलगावी के १८ सीटों से कम नहीं है। बल्लारी की बदौलत ही सिद्धरामय्या के नेतृत्व में कांग्रेस की बहुमत के साथ वापसी का रास्ता खुला था क्योंकि अवैध खनन पर लोकायुक्त जस्टिस एन संतोष हेगड़े की रिपोर्ट ने मुख्यमंत्री बी एस येड्डियूरप्पा को पद छोडऩे पर विवश कर दिया तो जर्नादन रेड्डी को जेल जाना पड़ा। 2009 में मंत्री रहते हुए रेड्डी ने येड्डियूरप्पा को सत्ता से हटाने की कोशिश की थी और करीब चार दर्जन विधायकों को लेकर हैदराबाद चले गए थे।
कालांतर में रेड्डी बंधु राजनीतिक तौर पर हाशिए पर चलेे गए। बल्लारी के खनन विवाद से उपजे राजनीतिक तूफान के कारण ही येड्डियूरप्पा और बी. श्रीरामुलू ने भाजपा से अलग होकर अपनी पार्टियां बना ली थी। भाजपा को भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से उपजे सत्ता विरोधी लहर और मतों के विभाजन के कारण करारी हार का सामना करना पड़ा था।
राजनीतिक मजबूरी
राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि मिशन 150 के साथ सत्ता में वापसी का लक्ष्य लेकर चल रही भाजपा के लिए रेड्डी बंधुओं को साथ लेना मजबूरी थी। पार्टी ने आज के लिए रेड्डी को अतीत को भुलाने का जोखिम लिया है। मोदी सरकार से तेलुगूदेशम पार्टी के अलग होने के बाद आंध्र प्रदेश से सटे इलाकों में रेड्डी बंधुओं का सहारा भाजपा के लिए विवशता थी। पार्टी नेताओं का दावा है कि चुनाव से पहले ही जनार्दन रेड्डी को रेड्डी समुदाय के मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में करने के लिए कहा गया था। बल्लारी के अलावा कोप्पल और कोलार जिले में रेड्डी समुदाय के मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि श्रीरामुलू को एक मजबूत आदिवासी नेता माना जाता है और आंध्र प्रदेश से सटे बल्लारी, रायचूर और चित्रदुर्गा में श्रीरामुलू का अच्छा प्रभाव है। भाजपा रेड्डी बंधुओं को हाशिए पर रखकर चुनाव में कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी। सिद्धरामय्या के अहिंदा वोट बैंक के अनुसूचित जनजाति समूह में सेंध लगाने के लिए भाजपा श्रीरामुलू पर काफी भरोसा कर रही है। इसी कारण श्रीरामुलू को भाजपा ने सांसद होने के बावजूद चित्रदुर्गा के मोलकालमुरु से उतारा है। भाजपा को उम्मीद है कि श्रीरामुलू के सहारे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सभी सीटों पर उसे फायदा मिलेगा।
आनंद और नागेंद्र अब कांग्रेस में
कभी रेड्डी बंधुओं के करीबी रहे विधायक- आनंद सिंह और बी. नागेंद्र भी अब कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं। चुनाव की घोषणा से कुछ समय पहले ही कांग्रेस में शामिल होने के बावजूद दोनों को पार्टी ने टिकट भी दिया है। हालांकि, कांग्रेस ने भी रेड्डी की वापसी को लेकर भाजपा पर निशाना साधा है और पार्टी के भ्रष्टाचार मुक्त कर्नाटक नारे पर तंज कसा है। रेड्डी बंधुओं के खनन घोटाले के खिलाफ सिद्धरामय्या ने वर्ष 2010 में बेंगलूरु से बल्लारी तक 320 किलोमीटर की पदयात्रा की थी। उस वक्त सिद्धरामय्या विपक्ष के नेता थे और विधानसभा में बल्लारी खनन घोटाले पर चर्चा के दौरान सुरेश बाबू के साथ सिंह भी सिद्धरामय्या को बल्लारी आने की चुनौती देने वाले नेताओं में शामिल थे। बल्लारी जिले की ९ में से पांच सीटें अनुसूचित जनजाति और 2 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने बल्लारी की पांच सीटें जीती थी जबकि भाजपा, जद ध, बीएसआर कांग्रेस और निर्दलीय को 1-1 सीट मिली थी।
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