सत्ता मिलने और जाने का कारक भी
विंध्य के दक्षिण में पहली बार 2008 में भाजपा अपने बलबूते सत्ता में आई थी और इसमें रेड्डी बंधुओं की भूमिका सबसे अह्म थी। रेड्डी बंधुओं को इसका लाभ भी मिला। बड़े भाई करुणाकर और जनार्दन रेड्डी को बी एस येड्डियूरप्पा सरकार में काबीना मंत्री का पद मिला तो छोटे भाई सोमशेखर कर्नाटक दुग्ध महासंघ के अध्यक्ष बने। २००८-१३ के दौरान भाजपा के शासनकाल में राजनीतिक तौर पर प्रभावी रेड्डी बंधुओं की खनन घोटाले में संलिप्तता के आरोपों ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। बल्लारी जिले की नौ सीटें संख्या के लिहाज से भले कम हों लेकिन इसका राजनीतिक प्रभाव बेंगलूरु की २८ या बेलगावी के १८ सीटों से कम नहीं है। बल्लारी की बदौलत ही सिद्धरामय्या के नेतृत्व में कांग्रेस की बहुमत के साथ वापसी का रास्ता खुला था क्योंकि अवैध खनन पर लोकायुक्त जस्टिस एन संतोष हेगड़े की रिपोर्ट ने मुख्यमंत्री बी एस येड्डियूरप्पा को पद छोडऩे पर विवश कर दिया तो जर्नादन रेड्डी को जेल जाना पड़ा। 2009 में मंत्री रहते हुए रेड्डी ने येड्डियूरप्पा को सत्ता से हटाने की कोशिश की थी और करीब चार दर्जन विधायकों को लेकर हैदराबाद चले गए थे।
कालांतर में रेड्डी बंधु राजनीतिक तौर पर हाशिए पर चलेे गए। बल्लारी के खनन विवाद से उपजे राजनीतिक तूफान के कारण ही येड्डियूरप्पा और बी. श्रीरामुलू ने भाजपा से अलग होकर अपनी पार्टियां बना ली थी। भाजपा को भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से उपजे सत्ता विरोधी लहर और मतों के विभाजन के कारण करारी हार का सामना करना पड़ा था।
राजनीतिक मजबूरी
राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि मिशन 150 के साथ सत्ता में वापसी का लक्ष्य लेकर चल रही भाजपा के लिए रेड्डी बंधुओं को साथ लेना मजबूरी थी। पार्टी ने आज के लिए रेड्डी को अतीत को भुलाने का जोखिम लिया है। मोदी सरकार से तेलुगूदेशम पार्टी के अलग होने के बाद आंध्र प्रदेश से सटे इलाकों में रेड्डी बंधुओं का सहारा भाजपा के लिए विवशता थी। पार्टी नेताओं का दावा है कि चुनाव से पहले ही जनार्दन रेड्डी को रेड्डी समुदाय के मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में करने के लिए कहा गया था। बल्लारी के अलावा कोप्पल और कोलार जिले में रेड्डी समुदाय के मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि श्रीरामुलू को एक मजबूत आदिवासी नेता माना जाता है और आंध्र प्रदेश से सटे बल्लारी, रायचूर और चित्रदुर्गा में श्रीरामुलू का अच्छा प्रभाव है। भाजपा रेड्डी बंधुओं को हाशिए पर रखकर चुनाव में कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी। सिद्धरामय्या के अहिंदा वोट बैंक के अनुसूचित जनजाति समूह में सेंध लगाने के लिए भाजपा श्रीरामुलू पर काफी भरोसा कर रही है। इसी कारण श्रीरामुलू को भाजपा ने सांसद होने के बावजूद चित्रदुर्गा के मोलकालमुरु से उतारा है। भाजपा को उम्मीद है कि श्रीरामुलू के सहारे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सभी सीटों पर उसे फायदा मिलेगा।
आनंद और नागेंद्र अब कांग्रेस में
कभी रेड्डी बंधुओं के करीबी रहे विधायक- आनंद सिंह और बी. नागेंद्र भी अब कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं। चुनाव की घोषणा से कुछ समय पहले ही कांग्रेस में शामिल होने के बावजूद दोनों को पार्टी ने टिकट भी दिया है। हालांकि, कांग्रेस ने भी रेड्डी की वापसी को लेकर भाजपा पर निशाना साधा है और पार्टी के भ्रष्टाचार मुक्त कर्नाटक नारे पर तंज कसा है। रेड्डी बंधुओं के खनन घोटाले के खिलाफ सिद्धरामय्या ने वर्ष 2010 में बेंगलूरु से बल्लारी तक 320 किलोमीटर की पदयात्रा की थी। उस वक्त सिद्धरामय्या विपक्ष के नेता थे और विधानसभा में बल्लारी खनन घोटाले पर चर्चा के दौरान सुरेश बाबू के साथ सिंह भी सिद्धरामय्या को बल्लारी आने की चुनौती देने वाले नेताओं में शामिल थे। बल्लारी जिले की ९ में से पांच सीटें अनुसूचित जनजाति और 2 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने बल्लारी की पांच सीटें जीती थी जबकि भाजपा, जद ध, बीएसआर कांग्रेस और निर्दलीय को 1-1 सीट मिली थी।
विंध्य के दक्षिण में पहली बार 2008 में भाजपा अपने बलबूते सत्ता में आई थी और इसमें रेड्डी बंधुओं की भूमिका सबसे अह्म थी। रेड्डी बंधुओं को इसका लाभ भी मिला। बड़े भाई करुणाकर और जनार्दन रेड्डी को बी एस येड्डियूरप्पा सरकार में काबीना मंत्री का पद मिला तो छोटे भाई सोमशेखर कर्नाटक दुग्ध महासंघ के अध्यक्ष बने। २००८-१३ के दौरान भाजपा के शासनकाल में राजनीतिक तौर पर प्रभावी रेड्डी बंधुओं की खनन घोटाले में संलिप्तता के आरोपों ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। बल्लारी जिले की नौ सीटें संख्या के लिहाज से भले कम हों लेकिन इसका राजनीतिक प्रभाव बेंगलूरु की २८ या बेलगावी के १८ सीटों से कम नहीं है। बल्लारी की बदौलत ही सिद्धरामय्या के नेतृत्व में कांग्रेस की बहुमत के साथ वापसी का रास्ता खुला था क्योंकि अवैध खनन पर लोकायुक्त जस्टिस एन संतोष हेगड़े की रिपोर्ट ने मुख्यमंत्री बी एस येड्डियूरप्पा को पद छोडऩे पर विवश कर दिया तो जर्नादन रेड्डी को जेल जाना पड़ा। 2009 में मंत्री रहते हुए रेड्डी ने येड्डियूरप्पा को सत्ता से हटाने की कोशिश की थी और करीब चार दर्जन विधायकों को लेकर हैदराबाद चले गए थे।
कालांतर में रेड्डी बंधु राजनीतिक तौर पर हाशिए पर चलेे गए। बल्लारी के खनन विवाद से उपजे राजनीतिक तूफान के कारण ही येड्डियूरप्पा और बी. श्रीरामुलू ने भाजपा से अलग होकर अपनी पार्टियां बना ली थी। भाजपा को भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से उपजे सत्ता विरोधी लहर और मतों के विभाजन के कारण करारी हार का सामना करना पड़ा था।
राजनीतिक मजबूरी
राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि मिशन 150 के साथ सत्ता में वापसी का लक्ष्य लेकर चल रही भाजपा के लिए रेड्डी बंधुओं को साथ लेना मजबूरी थी। पार्टी ने आज के लिए रेड्डी को अतीत को भुलाने का जोखिम लिया है। मोदी सरकार से तेलुगूदेशम पार्टी के अलग होने के बाद आंध्र प्रदेश से सटे इलाकों में रेड्डी बंधुओं का सहारा भाजपा के लिए विवशता थी। पार्टी नेताओं का दावा है कि चुनाव से पहले ही जनार्दन रेड्डी को रेड्डी समुदाय के मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में करने के लिए कहा गया था। बल्लारी के अलावा कोप्पल और कोलार जिले में रेड्डी समुदाय के मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि श्रीरामुलू को एक मजबूत आदिवासी नेता माना जाता है और आंध्र प्रदेश से सटे बल्लारी, रायचूर और चित्रदुर्गा में श्रीरामुलू का अच्छा प्रभाव है। भाजपा रेड्डी बंधुओं को हाशिए पर रखकर चुनाव में कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी। सिद्धरामय्या के अहिंदा वोट बैंक के अनुसूचित जनजाति समूह में सेंध लगाने के लिए भाजपा श्रीरामुलू पर काफी भरोसा कर रही है। इसी कारण श्रीरामुलू को भाजपा ने सांसद होने के बावजूद चित्रदुर्गा के मोलकालमुरु से उतारा है। भाजपा को उम्मीद है कि श्रीरामुलू के सहारे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सभी सीटों पर उसे फायदा मिलेगा।
आनंद और नागेंद्र अब कांग्रेस में
कभी रेड्डी बंधुओं के करीबी रहे विधायक- आनंद सिंह और बी. नागेंद्र भी अब कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं। चुनाव की घोषणा से कुछ समय पहले ही कांग्रेस में शामिल होने के बावजूद दोनों को पार्टी ने टिकट भी दिया है। हालांकि, कांग्रेस ने भी रेड्डी की वापसी को लेकर भाजपा पर निशाना साधा है और पार्टी के भ्रष्टाचार मुक्त कर्नाटक नारे पर तंज कसा है। रेड्डी बंधुओं के खनन घोटाले के खिलाफ सिद्धरामय्या ने वर्ष 2010 में बेंगलूरु से बल्लारी तक 320 किलोमीटर की पदयात्रा की थी। उस वक्त सिद्धरामय्या विपक्ष के नेता थे और विधानसभा में बल्लारी खनन घोटाले पर चर्चा के दौरान सुरेश बाबू के साथ सिंह भी सिद्धरामय्या को बल्लारी आने की चुनौती देने वाले नेताओं में शामिल थे। बल्लारी जिले की ९ में से पांच सीटें अनुसूचित जनजाति और 2 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने बल्लारी की पांच सीटें जीती थी जबकि भाजपा, जद ध, बीएसआर कांग्रेस और निर्दलीय को 1-1 सीट मिली थी।