चिकित्सकों के अनुसार ये सभी मरीज नॉन इंवेसिव वेंटिलेटर पर दो से तीन सप्ताह तक नॉन इंवेसिव (एनआइवी) मास्क के साथ उपचाराधीन थे। घाव इसी का नतीजा है। कोविड के गंभीर मरीजों को बचाने की जद्दोजहद में ऐसे घाव आम हैं। कुछ सप्ताह में इससे छुटकारा संभव है। हालांकि, कुछ चिकित्सकों ने समस्या को खराब नर्सिंग देखभाल का नतीजा बताया है। ज्यादातर मरीजों के नाक, गाल या माथे पर घाव या दाग है।
डॉ. जगदीश हिरेमठ के अनुसार उपचार के दौरान नियमित रूप से मास्क बदला जाए तो इस समस्या से मरीजों को बचाया जा सकता है। चिकित्सकों व नर्सेस को इस पर ध्यान देने की जरूरत है। लंबे समय तक एनआइवी मास्क पहनने से चेहरे के संबंधित हिस्से तक रक्त की आपूर्ति बाधित होती है। जिसके कारण घाव या दाग होते है। बीच-बीच में एनआइवी मास्क को साधारण मास्क से बदलते रहने की आवश्यकता है। प्रदेश के अस्पतालों के आइसीयू में 942 मरीज उपचाराधीन हैं।