कई कंपनियां शहरों में सामनों की आपूर्ति के लिए ड्रोन के उपयोग की तैयारी कर रही हैं। सरकार अगले दशक में देश को ड्रोन का बड़ा वैश्विक हब बनाना चाहती है। मगर, इसमें चुनौतियां कम नहीं हैं। वैश्विक ड्रोन उद्योग में देश की हिस्सेदारी 5 प्रतिशत भी नहीं है। देश में ड्रोन का उत्पादन अभी शैशवास्था में ही है।
व्यवसायिक उपयोग बढऩे के साथ घरेलू उत्पादन बढऩे की संभावना है। ड्रोन उद्योग की निगाहें अब ड्रोन और कल-पुर्जों के आयात को लेकर जारी होने वाली नीति पर टिकी है। देश में 240 से अधिक ड्रोन स्टार्टअप हैं। लेकिन, इनके लिए पूंजी का इंतजाम बड़ी चुनौती है। उदार नियमों के बाद निवेश बढ़ा है मगर अभी भी यह पर्याप्त नहीं है।
ड्रोन स्टार्टअप फंडिंग हासिल करने के मामले में पांचवें स्थान पर हैं। हालांकि, नियमों में बदलाव के बाद वर्ष 2021 में इस क्षेत्र में दुगुना निवेश हुआ। मार्केट इंटेलीजेंस प्लेटफार्म ट्रैक्सन के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2021 में ड्रोन स्टार्टअप में 15 मिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश हुआ जबकि 2020 में यह सिर्फ 7 मिलियन डालर था।
इससे पहले 2016 और 2017 में भी दो अंकों में निवेश हुआ था मगर ड्रोन संबंधी नीतियों की जटिलताओं के कारण वर्ष 2018 और 2019 में निवेश काफी कम रहा। दरअसल, वर्ष 2018 तक ड्रोन उद्योग को लेकर कोई नीति नहीं थी। इसके बाद बनी नीति में काफी शर्तें और पाबंदियां थी। कठोर नियमन के कारण इस क्षेत्र को अपेक्षित गति नहीं मिल सकी।
हालांकि, पिछले साल अगस्त-सितम्बर में हुए नीतिगत बदलावों के बाद ड्रोन उद्योग को नई गति मिली है। लेकिन, निवेशकों की हिचक अभी खत्म नहीं हुई है। देश में ड्रोन का कारोबार अभी मुख्यत: सरकारी क्षेत्रों से जुड़ा रहा है।
चीन की चुनौती
ड्रोन निर्माण में चीनी कंपिनयोंं का वर्चस्व हैं और भारतीय उद्यमों के लिए ड्रैगन के एकाधिकार को चुनौती देना आसान नहीं हैं। अधिकांश भारतीय स्टार्टअप अभी सेवा प्रदाता ही हैं। देश में ड्रोन का उत्पादन काफी कम है। केंद्र सरकार की उत्पादन आधारित लाभ (पीएलआई) योजना से मेक इन इंडिया की अवधारणा को गति मिली है और ड्रोन कंपनियां विस्तार में जुटी है।
नई नीति के बाद पिछले कुछ महीनों के दौरान इस्पात, खनन, पेट्रोलियम क्षेत्र में ड्रोन की मांग बढ़ी है। सशस्त्र सेनाओं ने 500 करोड़ के आर्डर ड्रोन कंपनियों को दिए हैं। लेकिन, आम उपभोक्ताओं के लिए यह सिर्फ एरियल फोटोग्राफी तक ही सीमित है।
डिलीवरी सेगमेंट पर टिकी उम्मीदें
घरेलू सामानों, भोजन अथवा दवाओं की आपूर्ति ड्रोन उद्योग के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है। दो साल पहले एक फूड एग्रीगेटर ने ड्रोन से खाने की डिलीवरी का परीक्षण किया था मगर बाद में नियमन संबंधी जटिलताओं के कारण बात आगे नहीं बढ़ पाई। नए नियमों के बाद फूड और दवाओं की डिलीवरी का परीक्षण कर्नाटक, तेलंगाना, मेघालय सहित कई राज्यों में किया जा चुका है। कई फूड और डिलीवरी एग्रीगेटरों ने डिलीवरी के लिए ड्रोन के आर्डर दिए हैं।
जनसुविधाओं के लिए भी उपयोग
सरकारी क्षेत्र ड्रोन का उपयोग जनसुविधाओं के लिए कर रहा है। केंद्र सरकार की स्वामित्व योजना में देहाती इलाकों में ड्रोन से ही जमीनों का सर्वेक्षण का भू-अभिलेख तैयार करने का काम चल रहा है। इसके अलावा सरकार देहाती इलाकों में डाक सामग्री की आपूर्ति के लिए भी ड्रोन के उपयोग की संभावनाएं तलाश रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगले कुछ वर्षों में ड्रोन की मांग बढ़ेगी। देश में अभी ड्रोन उद्योग का आकार करीब 200 करोड़ रुपए का है जिसमें से करीब 70 प्रतिशत हिस्सा सेवा क्षेत्र का है। ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया के मुताबिक 2026 तक ड्रोन विनिर्माण और सेवा बाजार का घेरलू बाजार 50 हजार करोड़ तक हो जाएगा।
हालांकि, सरकार का अनुमान है कि अगले तीन साल में ड्रोन सेवा उद्योग 30 हजार करोड़ रुपए का हो जाएगा और इससे रोजगार के पांच लाख अवसर सृजित होंगे। किफायती उत्पादन के सहारे सरकार वर्ष 2030 तक देश को ड्रोन का वैश्विक हब बनाना चाहती है। वर्ष 2025 तक भारत दुनिया का तीसरा बड़ा ड्रोन बाजार होगा।