उन्होंने कहा कि यदि मनुष्य का आचरण सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, त्याग एवं संयम आदि पर आधारित होगा तो वह अपने धंधे में किसी प्रकार की बुराई नहीं करेगा और न जीवन में विसंगतियों की घुसपैठ नहीं होने देगा।
जीवन की शुद्धता कर्म की शुद्धता की आधारशिला है। धर्म मनुष्य के भीतर की गंदगी को दूर करता है और जिसके भीतर निर्मलता होगी, उसके हाथ कभी दूषित कर्म नहीं करेंगे। मन को निर्मल बनाने के लिये कृतज्ञ होना जरूरी है। कृतज्ञता तब जन्म लेती है, जब हम नकारने की बजाय स्वीकार्यता या सराहना का दृष्टिकोण अपनाकर जीवन से नया रिश्ता कायम करते हैं।