scriptआत्म सम्मान विकृत हो जाए तो अहंकार में बदल जाता है | If self-respect is distorted, it turns into ego | Patrika News

आत्म सम्मान विकृत हो जाए तो अहंकार में बदल जाता है

locationबैंगलोरPublished: Jul 08, 2020 03:59:06 pm

धर्मसभा का आयोजन

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बेंगलूरु. आत्मसम्मान और अहंकार की विभाजन रेखा महीन और धुंधली है। आत्मसम्मान का भाव विकृत हो जाए तो यह शुद्ध अहंकार में तब्दील हो जाता है। ऐसा व्यक्ति स्वयं को प्रत्येक स्थिति में समझदार तथा सामने वाले को हर मायने में स्वयं से कमतर आंकता है।
यह बात राजाजीनगर के सलोत जैन आराधना भवन में आचार्य देवेंद्र सागर ने कही। उन्होंने कहा कि विरासत में मिला या आपने स्वयं अर्जित किया, जो भी आपका है, उस पर अभिमान न तो अस्वाभाविक है और न अनुचित। इस अभिमान का अर्थ है आत्मसम्मान, जो व्यक्ति के होने को अर्थ देता है, उसकी प्रगति को विस्तार देता है, उसे अपने चित्त और शरीर को स्वस्थ, सुंदर रखने के लिए आगाह करता है। सकारात्मक दृष्टि लिए ऐसा व्यक्ति आशा और स्फूर्ति से सराबोर रहेगा।
उत्साही और प्रफुल्लित मुद्रा में रहने के लिए आत्मसम्मान के भाव को निरंतर पुष्ट और सिंचित करना आवश्यक है।
दिल में यह बैठ जाए कि घर, कार्यस्थल या समाज में अपनी कोई सार्थक भूमिका नहीं है तो जीवन बोझिल, अंधकारमय व नैराश्यपूर्ण हो जाएगा। आत्मसम्मान घटने से अपनी नैसर्गिक प्रतिभा में निखार लाकर जीवन को परिमार्जित करना तो दूर अपनी क्षमताओं की पहचान भी नहीं होगी। कालांतर में ऐसे व्यक्ति की सोच और कृत्य जीवनविरोधी हो जाएंगे।
आचार्य ने कहा कि आत्मसम्मान के भाव से अभिप्रेरित व्यक्ति जानता है कि प्रत्येक व्यक्ति में कुछ खूबियां होती हैं और उनका निरादर नहीं करना है। यह सोच उसे सन्मार्ग की ओर प्रशस्त रखती है। दूसरी ओर, अहंकारी व्यक्ति अपनी जय-जयकार और वर्चस्व सुदढ़ करने की चेष्टा में रहता है। कड़वे सच के एवज में वह झूठी प्रशंसा सुनना चाहता है और यही उसका स्वभाव बन जाता है।
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