कोई कितना भी चाह ले, फिर भी किसी की अपेक्षाओं को पूरा करना किसी के बस की बात नहीं है। पत्नी चाहती है कि पति उसका जीवन सुख-सुविधाओं से भर दे। पति चाहता है कि पत्नी हमेशा उसके प्रति समर्पित रहे। माता-पिता चाहते हैं कि संतान उनकी सेवा करे, आदेश माने। जब अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं, तब हमारे सारे संबंध संघर्ष में बदल जाते हैं।
सोचने वाली बात है कि अगर इंसान अपेक्षाओं को संबंध का आधार न बनाए, तो क्या यह जीवन सुख और शांति से नहीं भर जाएगा?
अपेक्षा, आशा और उम्मीद ऐसी चीजें हैं जिनकी वजह से रिश्ते बनते-बिगड़ते रहे हैं। हम चाहते हैं कि यह दुनिया बदल जाए, सामने वाला हमारे हिसाब से चले। अगर सामने वाला ऐसा नहीं करता है तो हम सोचते हैं कि अगर वह अपने में ऐसा बदलाव करेगा तो वह सुधर जाएगा। उसे ऐसे नहीं, वैसे करना चाहिए था।
अपेक्षा, आशा और उम्मीद ऐसी चीजें हैं जिनकी वजह से रिश्ते बनते-बिगड़ते रहे हैं। हम चाहते हैं कि यह दुनिया बदल जाए, सामने वाला हमारे हिसाब से चले। अगर सामने वाला ऐसा नहीं करता है तो हम सोचते हैं कि अगर वह अपने में ऐसा बदलाव करेगा तो वह सुधर जाएगा। उसे ऐसे नहीं, वैसे करना चाहिए था।
वह मेरी बात कहां मानता है, वह तो अपने ही हिसाब से चलता है। अधिकतर लोग दूसरों के व्यवहार व विचारों की वजह से परेशान और क्रोधित होते रहते हैं। इस तरह वे न सिर्फ अपना समय बर्बाद करते हैं, बल्कि अपनी ऊर्जा भी खर्च करते हैं। अंत में उनके हाथ खीझ और झुंझलाहट ही लगती है।
आचार्य ने कहा कि हममें से हर किसी ने इस बात का अनुभव कभी न कभी जरूर किया होगा कि जब सोच सही होती है, तब दुनिया बदली हुई और अपने हिसाब की भी लगती हैं।