scriptविदुराश्वत्थ : कर्नाटक का महाभारत काल से जुड़ा वह गांव, जिसे कहा जाता है दक्षिण का जलियांवाला बाग | In karnataka village related to Mahabharata Period called Jallianwala | Patrika News

विदुराश्वत्थ : कर्नाटक का महाभारत काल से जुड़ा वह गांव, जिसे कहा जाता है दक्षिण का जलियांवाला बाग

locationबैंगलोरPublished: Aug 16, 2022 12:08:03 am

Submitted by:

Sanjay Kumar Kareer

25 अप्रेल 1938 की सुबह पुलिस की गोलीबारी में 32 लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हो गए

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संजय करीर

बेंगलूरु. आजादी की लड़ाई में हर वर्ग और हर राज्य के और हर उम्र के लोगों ने भाग लिया था। दुर्भाग्य से हम आज उनमें से अधिकांश के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। राज्य का एक गांव भी उस लड़ाई का साक्षी है। लेकिन, दशकों बाद यह गांव अब देश के स्वतंत्रता संग्राम इतिहास का एक भूला हुआ अध्याय बन चुका है। ब्रिटिश शासन के दौरान साल 1938 में चिकबल्लापुर जिले के गौरीबिदनूर तालुक के विदुराश्वत्थ गांव में एक नरसंहार हुआ था। इसे दक्षिण का जलियांवाला बाग नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है।
साल 1938 का नरसंहार
1930 के दशक की शुरूआत में स्वतंत्रता संग्राम चरम पर पहुंच रहा था। देश के अन्य हिस्सों की तरह कर्नाटक भी स्वतंत्रता की मांग कर रहा था। लेकिन, आजादी मिलने से कुछ साल पहले विदुराश्वत्थ के लोगों को इसकी एक भयानक कीमत चुकानी पड़ गई।
झंडा फहराने की कोशिश में गई जान
साल 1938 में 22 से 25 अप्रेल के बीच विदुराश्वत्थ में एक वार्षिक मेले का आयोजन करने की योजना बनी। इसमें हजारों लोगों के एकत्र होने की उम्मीद थी। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने गांव में राष्ट्रीय ध्वज फहराने की योजना बनाई थी।
96 राउंड फायरिंग, 32 ने दिया बलिदान
25 अप्रेल 1938 की सुबह करीब 10:30 बजे कांग्रेस नेताओं के नेतृत्व में आसपास के कई गांवों से आए लोगों का एक समूह निषेधाज्ञा की अवहेलना करते हुए राष्ट्रीय ध्वज फहराने एक खुले मैदान में एकत्र हुआ। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने पहले लाठीचार्ज किया और फिर गोलियां चलाई। नेताओं की योजना थी कि पुलिस ने लाठीचार्ज किया तो वे नदी पार कर दूसरी ओर चले जाएंगे। नदी के उस पार निजाम का हैदराबाद राज्य था और वहां पुलिस का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था। लेकिन, यह योजना के अनुसार नहीं हुआ। पुलिस की गोलीबारी में 32 लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हो गए। कहा जाता है कि पुलिस ने भीड़ पर कम से कम 96 राउंड गोलियां दागी थी। यह घटना 13 अप्रेल 1919 को हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग हत्याकांड से मिलती-जुलती थी। हालांकि, वह इससे कई गुणा बड़ा नरसंहार था। लेकिन, प्रकृति समान होने के कारण विदुराश्वत्थ नरसंहार को बाद में दक्षिण के जलियांवाला बाग के रूप में जाना जाने लगा।
सरकार के खिलाफ भड़का जनाक्रोश
महात्मा गांधी ने इस फायरिंग के बारे में 29 अप्रेल को एक बयान जारी किया, जिसमें लिखा था कि अहिंसा के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करने के प्रयास में विदुराश्वत्थ में मारे गए 32 लोगों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। हालांकि, फायरिंग में शामिल पुलिसवालों को क्लीन चिट मिल गई और सरकार ने दावा किया कि घटना में केवल 10 लोगों की जान गई। लेकिन, इसके बाद पूरे तत्कालीन मैसूर राज्य में व्यापक आंदोलन शुरू हो गया और लोगों में भारी आक्रोश भड़क चुका था। यह देखते हुए महात्मा गांधी ने सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी को स्थिति का जायजा लेने के लिए मैसूर भेजने का निर्णय किया। कांग्रेस नेताओं ने सरकार के खिलाफ जनता के इस गुस्से का इस्तेमाल मैसूर प्रशासन के तौर-तरीके में बदलाव लाने के लिए किया। उन्होंने मांग की कि उनके नेताओं को शासन में भागीदारी मिलनी चाहिए।
जनाक्रोश से बनी सरकार में जनभागीदारी
इसी घटना के परिणामस्वरूप 1939 का मिर्जा-पटेल समझौता हुआ। यह मैसूर के तत्कालीन दीवान मिर्जा इस्माइल और सरदार वल्लभ भाई पटेल के बीच हुआ और पहली बार मैसूर में लोगों की भागीदारी के साथ एक सरकार बनाई गई। राष्ट्रीय ध्वज फहराने पर लगे सभी प्रतिबंध हटा दिए गए। कांग्रेस के सात सदस्यों को शासन के नए मानदंडों का सुझाव देने के लिए सुधार समिति में शामिल किया गया और नेताओं को विधानसभा की बैठक में भाग लेने की अनुमति दी गई।

लोग भूल चुके नरसंहार
आजकल लोग विदुराश्वत्थ नरसंहार के बारे में बात तक नहीं करते हैं। लेकिन, सेवानिवृत्त प्रोफेसर गंगाधर मूर्ति की पुस्तक दक्षिण के भूले हुए जलियांवाला बाग इस घटना पर पर्याप्त प्रकाश डालती है। नरसंहार वाले स्थान पर अब एक स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति में स्मारक है,जहां कभी-कभी आगंतुक पहुंचते हैं।
किंवदंती, अंजीर का पेड़ और विदुर
विदुराश्वत्थ के नामकरण को लेकर भी दिलचस्प कहानी है। लोककथाओं के अनुसार इसमें एक पेड़ और एक पौराणिक चरित्र शामिल है। कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान धृतराष्ट्र और पांडवों के सौतेले भाई विदुर यानि पांडवों और कौरवों के चाचा खूनी नरसंहार से भयभीत हो गए। उनका हृदय पश्चाताप से भर गया। वे अपने हृदय में अपराधबोध के साथ भगवान कृष्ण के पास पहुंचे और मोक्ष मांगा। कृष्ण ने उन्हें तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए कहा और विदुर पूरे भारत की यात्रा करने लगे। कई स्थानों का भ्रमण करने के बाद विदुर इस गांव में पहुंचे। वहां वे महर्षि मैत्रेय के आश्रम में रहे। एक बार, जब वे उत्तरा पिनाकिनी नदी के तट पर शाम की प्रार्थना कर रहे थे, तो उन्हें नदी में तैरता अश्वत्थ पेड़ (अंजीर) का एक पौधा मिला। महर्षि मैत्रेय ने उन्हें मोक्ष प्राप्ति के लिए उस पौधे की पूजा करने को कहा। विदुर ने अत्यंत भक्तिपूर्वक ऐसा ही किया। इससे तीनों भगवान ब्रह्म, विष्णु और शिव प्रसन्न होकर विदुर के सामने प्रकट हुए। इस प्रकार स्थान का नाम विदुराश्वत्थ हो गया। विदुर ने पौधा लगाया और अश्वत्थ वृक्ष के प्रति उनकी भक्ति ने गांव को विदुराश्वत्थ नाम दिया। साल 2001 की शुरुआत में वह प्राचीन अश्वत्थ का पेड़ धराशायी हो गया।
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