द्वितीय अतिरिक्त जिला व सत्र अदालत ने सिद्धामय्या व अन्य के खिलाफ जयलक्ष्मीपुरम पुलिस को भारतीय दंड संहिता की धारा १२०-बी (आपराधिक साजिश), १९७ (जाली प्रमाण जारी करने और उस पर हस्ताक्षर करने), १६६ (लोकसेवक के कानून का पालन नहीं करने), १६७ (लोकसेवक के असत्य दस्तावेज पेश करने), १६९ (लोकसेवक के अवैध तरीके से संपत्ति खरीदने या बोली लगाने), २०० (जान बूझकर असत्य उद्घोषणा करना), ४१७ (धोखाधड़ी), ४०९ (लोक सेवक द्वारा अमानत में खयानत), ४२० (धोखाधड़ी व बेईमानी) ४६८ (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी) के तहत मामला दर्ज करने के आदेश दिए।
सिद्धरामय्या के अलावा मैसूरु शहर विकास प्राधिकरण (मुडा) के पूर्व अध्यक्ष सी. बसव गौड़ा, मौजूदा अध्यक्ष धु्रव कुमार और प्राधिकरण के आयुक्त पी. एस. कांतराजू के खिलाफ अदालत ने आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए कहा। अधिवक्ता एन गंगराजू ने सिद्धरामय्या के खिलाफ अदालत में परिवाद दायर किया था। गंगराजू ने कुछ महीने पहले इस मामले को ेलेकर राज्यपाल से भी शिकायत की थी। अवैध तरीके से प्राधिकरण के भूखंड आवंटित करने के कारण अदालत ने सिद्धरामय्या व अन्य के खिलाफ मामला दर्ज करने के आदेश दिए।
क्या है मामला
प्राधिकरण ने १९८८ में विजयनगर द्वितीय स्टेज के विकास के लिए हिनकल ग्राम पंचायत क्षेत्र में ५३५ एकड़ भूमि अवाप्त की थी। करीब एक दशक बाद १९९७ में जब प्राधिकरण ने आवेदकों के बीच भूखंड आवंटन का काम पूरा कर लिया तब ग्राम पंचायत अध्यक्ष के अलावा उसके कुछ रिश्तेदारों ने अपने ३० गुंटा अवाप्त भूमि को गैर अधिसूचित करने के लिए प्राधिकरण को आवेदन दिया। प्राधिकरण ने भूमि को गैर अधिसूचित कर दिया। उस वक्त बसव गौड़ा प्राधिकरण के अध्यक्ष थे।
परिवादी का आरोप है कि सर्वे संख्या ७०/4ए को वर्ष १९९७ में कृषि से गैर कृषि भूमि में जिलाधिकारी के आदेश पर परिवर्तित किया गया। इसके बाद प्राधिकरण ने साकम्मा को आवासीय भवन बनाने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र भी जारी कर दिया। आरोप है कि नियमों की अवेहलना कर प्रमाण पत्र हासिल किया और बिना मकान निर्मित किए ही उसे बेच दिया। तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने साकम्मा से १० गुंटा भूमि खरीद ली और उस पर मकान बना लिया। प्राधिकरण ने अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने के साथ ही १९९८ में मकान के नक्शे को भी अनुमोदित कर दिया। वर्ष २०१३ में सिद्धरामय्या ने मकान बेच दिया।
आरोप है कि सिद्धरामय्या ने कम मूल्य में भूमि बेची और मकान भी अवैध तरीके से निर्मित किया था। कथित तौर पर सिद्धरामय्या ने अपनी संपत्ति के साथ ही मुडा की संपत्ति भी बेच दी जो करीब ९६०० वर्ग फीट का था। शिकायत के मुताबिक २०१३ में मुडा ने इस संaपत्ति को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया जबकि बाकी संपत्ति को इस दायरे से बाहर रखा गया। आरोप है कि सिद्धरामय्या ने अपने पद का दुरुपयोग कर गलत तरीके से भूखंड आवंटन कराया।
यह मामला पिछले साल फिर से तब उठा जब साकम्मा ने प्राधिकरण में आवेदन देकर अपने लिए ६० गुणा ४० का भूखंड आवंटित करने की मांग की क्योंकि उसके ३० गुंटा भूखंड के एक हिस्से में मकान निर्मित कर लिया।