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कभी विश्व गुरु था भारत, अब भी कम नहीं

locationबैंगलोरPublished: Nov 11, 2019 08:53:23 pm

Submitted by:

Nikhil Kumar

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और भारतीय प्रबंधन संस्थान सहित देश के 98 शिक्षण संस्थान वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी तैयार कर रहे हैं। बहु-विषयक अवधारणा पर भविष्य टिका है। जिसे उच्चतर शिक्षा प्रणाली में भी शामिल करने की जरूरत है।

कभी विश्व गुरु था भारत, अब भी कम नहीं

कभी विश्व गुरु था भारत, अब भी कम नहीं

-अमरीका में 33 फीसदी चिकित्सक भारतीय
-पीएचडी छात्रों की संख्या नहीं गुणवत्ता जरूरी

बेंगलूरु.

भारत विश्व गुरु था, लेकिन अब हम अपनी जड़ों और शिक्षा की विधियों को भूल गए हैं। फिर अमरीका में 33 फीसदी चिकित्सक भारतीय और माइक्रोसॉफ्ट में 40 फीसदी कर्मचारी भारतीय हैं। ये बातें बेंगलूरु विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केआर वेणुगोपाल ने सोमवार को कही।

वे सेंट्रल कॉलेज के ज्ञान भारती सभागार में बीयू के राजनीति विज्ञान विभाग, मैसूरु विवि के अर्थशास्त्र विभाग और मैसूरु स्थित विकास अनुसंधान के लिए अंतरराष्ट्रीय परिषद की ओर से ‘उच्च शिक्षा में मुद्दे और चुनौतियां’ विषय पर आयोजित 10वें अंतरराष्ट्रीय बहु-विषयक सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और भारतीय प्रबंधन संस्थान सहित देश के 98 शिक्षण संस्थान वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी तैयार कर रहे हैं। बहु-विषयक अवधारणा पर भविष्य टिका है। जिसे उच्चतर शिक्षा प्रणाली में भी शामिल करने की जरूरत है। उच्चतर शिक्षा प्रणाली को बेहतर करने और शोध को बढ़ावा देने की दिशा में केंद्र सरकार भी कार्यरत है। कई योजनाओं को लागू किया गया है। निजीकरण की प्रतियोगिता में भारत अब भी सस्ती दरों पर शिक्षा प्रदान करने में सक्षम है। विश्व के कई देशों की तुलना में भारत में चिकित्सा सस्ती है। बीयू के कुलसचिव प्रो. बीके रवि ने कहा कि उच्च शिक्षा को उद्योग के अनुकूल विकसित करने की जरूरत है। बहु-विषयक पाठ्यक्रमों से शुरुआत हो।

ऑस्ट्रेलिया की मिसल वेट ने कहा कि आर्थिक रूप से पिछड़े विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा प्राप्त हो। उच्च शिक्षा नौकरी और तकनीक आधारित हो। तभी उच्च शिक्षा का लक्ष्य पूरा होगा।

विधान परिषद सदस्य एन. रवि कुमार ने कहा कि विश्वविद्यालयों को शोध पर ध्यान देने की जरूरत है। पीएचडी छात्रों की संख्या नहीं, उनके कार्य में गुणवत्ता जरूरी है। पीएचडी करने वालों की संख्या बढ़ी है, लेकिन शोध की गुणवत्ता में गिरावट आई है।

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