सर्वेक्षण में कहा गया है कि इसरो की वाणिज्यिक इकाई अंतरिक्ष कॉरपोरेशन लिमिटेड को उम्मीद है कि धरती की निचली कक्षाओं (एलईओ) में उपग्रह भेजने के लिए वैश्विक एजेंसियां धु्रवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी), भू-स्थैतिक प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) और जीएसएलवी मार्क-३ रॉकेट का उपयोग करेंगी।
अब तक २८८ उपग्रह लांच किए
आर्थिक सर्वे में कह गया है कि मार्च 2017 तक पीएसएलवी ने सफलतापूर्वक 254 उपग्रह लांच किए। हालांकि, अब यह आंकड़ा 288 तक पहुंच चुका है जिसमें 2३7 विदेशी और 51 भारतीय उपग्रह हैं। पिछले दो वर्षों के दौरान उपग्रह लांच सेवाओं से होने वाली आय लगभग दो गुनी हो गई है।
सर्वेक्षण के मुताबिक वर्ष 2014-15 में उपग्रह लांच सेवाओं से देश को 149 करोड़ रुपए की आय हुई थी जो वर्ष 2015-16 में बढक़र ३94 करोड़ हो गई। वर्ष 2016 -17 के दौरान लांच सेवाओं से 275 करोड़ रुपए की आय हुई। गौरतलब है कि इसरो भविष्य में अपने संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए भी अपने ही रॉकेट का उपयोग करेगा। सिर्फ एक और उपग्रह जीसैट-11 का प्रक्षेपण एरियन-5 रॉकेट से होना है।
स्वदेशी रॉकेट से प्रक्षेपण भी काफी किफायती साबित होता है और इससे विदेशी मुद्रा की बचत होती है। इसरो अधिकारियों के मुताबिक अंतरिक्ष को लांच सेवाओं के अलावा भी अन्य कई सेवाओं से आय होती है।
निजी कंपनियों को उत्पादन के लिए तकनीक हस्तांतरित करेगा इसरो
नौवहन उपकरणों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) गोपनीयता की शर्त पर निजी उद्योगों को तकनीक देनेे को तैयार है। भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली ‘नाविक’ के अनुप्रयोगों के लिए स्मार्ट फोन सहित अन्य कई तरह के उपकरण तैयार किए जाने हैं जिसकी तकनीक इसरो ने विकसित की है।
दरअसल, नौवहन उपग्रह प्रणाली नाविक के लिए इसरो ने सात उपग्रहों को धरती की कक्षा में स्थापित किया है जिससे अमरीकी नौवहन प्रणाली जीपीएस से भी बेहतर सेवाएं मिलेंगी। सामरिक उपयोग को छोडक़र बाकी क्षेत्रों के लिए इस प्रणाली के जरिए 5 मीटर शुद्धता तक की सेवाएं मिलेंगी।