मां के पल्लू की व्याख्या नामुमकिन: डॉ.कुमुदलता
श्रीरंगपट्टण में प्रवचन

बेंगलूरु. श्रीरंगपट्टण में दिवाकर गुरु मिश्री दरबार में आयोजित धर्मसभा में साध्वी डॉ.कुमुदलता ने कहा कि मां के पल्लू की व्याख्या करना नामुमकिन है। मुझे नहीं लगता कि आज के बच्चे यह जानते हों कि पल्लू क्या होता है, इसका कारण यह है कि आजकल की माताएं अब साड़ी नहीं पहनती हैं। मां के पल्लू का सिद्धांत मां को गरिमामयी छवि प्रदान करने के लिए था। लेकिन इसके साथ ही यह गर्म बर्तन को चूल्हा से हटाते समय गर्म बर्तन को पकडऩे के काम भी आता था। साथ ही पल्लू बच्चों का पसीना/आंसू पूछने, गंदे कानों/मुंह की सफाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था।
मां इसको अपना हाथ तौलिया के रूप में भी इस्तेमाल का लेती थी। खाना खाने के बाद पल्लू से मुंह साफ करने का अपना ही आनंद होता था।
उन्होंने कहा कि कभी आंख मे दर्द होने पर मां अपने पल्लू को गोल बनाकर, फूंक मारकर, गरम करके आंख में लगा देती थी, सभी दर्द उसी समय गायब हो जाता था। मां की गोद मे सोने वाले बच्चों के लिए उसकी गोद गद्दा और उसका पल्लू चादर का काम करता था।
जब भी कोई अंजान घर पर आता, तो उसको, मां के पल्लू की ओट लेकर देखते था। जब भी बच्चे को किसी बात पर शर्म आती, वह पल्लू से अपना मुंह ढंक कर छिप जाता था। जब बच्चों को बाहर जाना होता, तब मां का पल्लू एक मार्गदर्शक का काम करता था। जब तक बच्चे ने हाथ में थाम रखा होता, तो सारी कायनात उसकी मु_ी में होती।
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