बैंगलोर

आयोडीन की कमी से बच्चों का मानसिक विकास बाधित : चिकित्सक

– गर्भस्थ शिशु भी चेपट में- कर्नाटक : रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होने से कोरोना संक्रमण की संभावना अधिक

बैंगलोरSep 20, 2021 / 07:26 pm

Nikhil Kumar

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बेंगलूरु. बच्चों में आयोडीन की कमी एक बड़ी समस्या बन कर सामने आई है। कई शिशु गर्भ में होने के दौरान ही इसकी चपेट में आ जा रहा है। बाल रोग विशेषज्ञों का कहना है कि बीते कुछ वर्षों में ऐसे शिशुओं की संख्या बढ़ी है। स्तनपान कराने चाली महिलाओं के लिए 250 से 290 माइक्रोग्राम प्रतिदिन जरूरी है। कोरोना महामारी के दौरान यह समझना जरूरी है कि आयोडीन की कमी भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करती है। इसकी व्यापतकता को समझने के लिए जिला स्तर हर पांच वर्ष के अंतरात में आयोडीन युक्त नमक के प्रभाव पर सर्वेक्षण हो।

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील एम. ने बताया कि मां में आयोडीन की कमी (Iodine deficiency) से पैदा होने वाले बच्चे का शारीरिक विकास भी पूरा नहीं हो पाता है। भ्रूण के समुचित विकास के लिए आयोडीन एक जरूरी पोषक तत्व है। आयोडीन शिशु के दिमाग के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बौद्धिक क्षमता भी कम रह जाती है। गर्भ में पल रहे बच्चे के मस्तिष्क सेल के विकास में बाधा पहुंचती है। जिसके कारण घेंघा रोग, मंदबुद्धि, अपंगता, बौनापन, बहरापन, गूंगापन, भैंगापन, बार-बार गर्भपात और मृत शिशु पैदा होने जैसी समस्याएं पैदा होती हैं।

उन्होंने बताया कि आयोडीन की कमी से रक्त में कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ता है। आयोडीन के इस्तमाल के प्रति लोगों को जागरूक करना जरूरी है। स्कूल, कॉलेज, जिला अस्पताल, तालुक अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र आदि जगहों पर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है।

डॉ. सुनील के अनुसार नमक में आयोडीन कम से कम 15 पीपीएम (पाट्र्स पर मिलियन) होना चाहिए। फैक्ट्रियों में तैयार नमक में आयोडीन 30 पीपीएम होना चाहिए, ताकि आम उपभोक्ता तक पहुंचते तक 15 पीपीएम आयोडीन मौजूद रहे। भोजन में हमेशा आयोडीन नमक का ही प्रयोग करना चाहिए। नमक को हमेशा किसी चीज से ढक कर रखें, ताकि आयोडीन के तत्व नष्ट ना हो सकें।

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