रविवार को सविता के पिता अंदनप्पा यलगी ने कहा कि यह न सिर्फ मेरे दामाद प्रवीण और उनके परिवार की जीत है, जिन्होंने आयरलैंड में गर्भपात नियमों में संशोधन को लेकर लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी है, बल्कि उन सभी गर्भवती मलिहाओं की जीत है जो गर्भावस्था की जटिलताओं की पीड़ा को झेल चुकी हैं या उससे जूझ रही हैं। उन्होंने कहा कि जब सविता की मौत हुई तब उनके दामाद प्रवीण ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और आयरलैंड के मौजूदा कानून को चुनौती दी। कैथोलिक नियमों के नाम पर किसी गर्भवती महिला की जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले कानून के विरोध में प्रवीण की लड़ाई में आयरलैंड के स्थानीय नागरिकों ने भी जोरदार समर्थन किया और गर्भपात के समर्थन में आवाज बुलंद की गई।
उन्होंने कहा कि आयरलैंड का नया कानून आपातकालीन परिस्थितियों में गर्भपात कराने में मददगार साबित होगा जिससे हर वर्ष कई ऐसी गर्भवती महिलाओं की जान बच सकेगी जो गर्भवस्था की जटिलताओं के कारण सविता जैसी स्थिति में पहुंचने को मजबूर थीं। उन्होंने इसे महिलाओं के सम्मान और उसके जीवन जीने के अधिकार के निर्णय की जीत करार दिया। उन्होंने कहा कि सविता की भले की मौत हो गई, लेकिन अब आयरलैंड में कई अन्य सविता की जान बचेगी और यही सविता को सच्ची श्रद्धांजलि है।
कैथोलिक नियमों के कारण हुई थी सविता की मौत
अक्टूबर-2012 में सत्रह सप्ताह की गर्भवती सविता विविध प्रकार की गर्भावस्था की जटिलताओं से जूझ रही थी। पेशे से दंत चिकित्सक 31 वर्षीय सविता ने गर्भपात कराने का निर्णय लिया था, जिससे उनकी जान बच सकती थी। हालांकि आयरलैंड सरकार ने कैथोलिक नियमों का हवाला देकर गर्भपात की अनुमति देने से मना कर दिया। अंतत: 28 अक्टूबर 2012 को सविता की मौत हो गई जिसका कारण कैथोलिक नियम रहा। बाद में प्रवीण ने इस नियम को वहां के कोर्ट में चुनौती दी और करीब छह साल के बाद आयरलैंड एक ऐसे कानून से मुक्त हुआ है, जिससे अब महिलाओं को जटिल परिस्थितियों में गर्भपात कराने की आजादी मिली है।
अक्टूबर-2012 में सत्रह सप्ताह की गर्भवती सविता विविध प्रकार की गर्भावस्था की जटिलताओं से जूझ रही थी। पेशे से दंत चिकित्सक 31 वर्षीय सविता ने गर्भपात कराने का निर्णय लिया था, जिससे उनकी जान बच सकती थी। हालांकि आयरलैंड सरकार ने कैथोलिक नियमों का हवाला देकर गर्भपात की अनुमति देने से मना कर दिया। अंतत: 28 अक्टूबर 2012 को सविता की मौत हो गई जिसका कारण कैथोलिक नियम रहा। बाद में प्रवीण ने इस नियम को वहां के कोर्ट में चुनौती दी और करीब छह साल के बाद आयरलैंड एक ऐसे कानून से मुक्त हुआ है, जिससे अब महिलाओं को जटिल परिस्थितियों में गर्भपात कराने की आजादी मिली है।