लेजर प्रणोदन समेत कई तकनीक विकसित कर रहा एलपीएससी, अंतरिक्ष कार्यक्रमों को नई ऊंचाई तक पहुंचाने की कवायद उन्नत और सेमी क्रायोजेनिक इंजन से और ताकतवर
बेंगलूरु. वैश्विक स्तर पर विकसित किए जा रहे नए अंतरिक्ष तकनीकों से कदमताल मिलाने व अंतरिक्ष कार्यक्रमों में देश को नई ऊंचाई तक पहुंचाने के लिए
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) कई नई प्रौद्योगिकियों के विकास में जुटा है। विशेष रूप से इसरो का द्रव नोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) ऐसे कई तकनीक विकसित कर रहा है जो भविष्य के अंतरिक्ष उड़ानों को न सिर्फ किफायती एवं प्रदूषण रहित बल्कि प्रभावकारी भी बनाएगा।
दरअसल, एलपीएससी अंतरग्रहीय मिशनों के लिए अधिकतम थ्रस्ट और हल्के पे-लोड वाले कम वजनी अंतरिक्षयान के अलावा उन्नत क्रायोजेनिक इंजन, सेमी क्रायोजेनिक इंजन और हरित व प्रदूषण रहित प्रणोदक के साथ-साथ कई तकनीकों के विकास की धुरी बना हुआ है। इस केंद्र ने चंद्रयान-2 मिशन के लिए 800 न्यूटन थ्रस्ट वाले प्रमुख तरल इंजन का भी विकास कर रहा है जिससे अंतरिक्षयान को चांद की धरती पर उतारा जा सकेगा। इसरो अध्यक्ष के. सिवन ने कहा कि अंतरग्रहीय मिशनों के लिए लेजर प्रणोदन वाले हल्के यान विकसित करने का लक्ष्य है। बेहद उच्च गति वाले लेजर प्रणोदन के उपयोग से बहुत कम समय में
मंगल ग्रह तक पहुंचा जा सकेगा। एलपीएससी को इसके विकास में अग्रणी भूमिका निभानी होगी। इसके साथ ही महत्वपूर्ण उपकरणों जैसे एयर ब्रीथिंग प्रणोदन प्रणाली (एबीपीएस), कंट्रोल प्रणाली, तरल पदार्थों के लिए उपकरण और कई अन्य प्रौद्योगिकी इनोवेशन एलपीएसएसी में हो रहे हैं जो पुन: उपयोगी प्रक्षेपण यान (आरएलवी) के विकास में काम आएंगे। उन्नत क्रायोजेनिक इंजन के अलावा अगले 30 महीने के भीतर सेमी क्रायोजेनिक इंजन का भी विकास किया जाएगा जिसका उपयोग उन्नत जीएसएलवी मार्क-3 में होगा। उन्नत जीएसएलवी मार्क-3 की क्षमता 5.5 टन वजनी उपग्रहों को भू-स्थैतिक अंतरण कक्षा (जीटीओ) में पहुंचाने की होगी।
इसरो का नव विकसित भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 चार टन वजनी उपग्रहों को जीटीओ में पहुंचाने की क्षमता रखता है। सिवन ने कहा कि इस रॉकेट में मुख्य तरल इंजन एल-110 के साथ शक्तिशाली क्रायोजेनिक इंजन सी-25 का उपयोग होता है लेकिन आगे चलकर एल-110 की जगह सेमी क्रायोजेनिक इंजन ले लेगा। इससे हरित प्रणोदक का उपयोग होगा और जहरीले प्रणोदक का उपयोग बंद होगा। इसके अलावा चंद्रयान-2 के लिए 800 न्यूटन थ्रस्ट वाला इंजन विकसित किया जा रहा है जो यान को चांद की धरती पर उतारने में मददगार होगा। इस महात्वाकांक्षी मिशन के तहत इसरो एक यान, एक लैंडर और एक रोवर भेजेगा। चांद की 100 किमी कक्षा में यान के स्थापित होने के बाद लैंडर यान से अलग होकर चांद की धरती पर उतरेगा। इसके बाद लैंडर से रोवर अलग होगा और चांद की धरती पर चहलकदमी करते हुए कई प्रयोगों को अंजाम देगा।