बेंगलूरु. स्वदेशी स्पेस शटल के विकास में जुटा
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एक अहम परीक्षण की तैयारी कर रहा है। इसरो ने पहले पुन: उपयोगी प्रक्षेपण यान यानी आरएलवी के प्रदर्शन मॉडल (आरएलवी-टीडी) का हाइपर सोनिक उड़ान परीक्षण (एचईएक्स) किया था और अब अंतरिक्ष में पहुंचकर पुन: धरती की कक्षा में प्रवेश करने (री-एंट्री) की तैयारी है। इसके साथ ही यान के लैंडिंग परीक्षण (एलईएक्स) की गतिविधियां भी चल रही हैं।
इसरो ने कहा है कि रन-वे पर आरएलवी के स्वचालित लैंडिंग परीक्षण की गतिविधियां प्रगति पर है। यह आरएलवी का उन्नत मॉडल यानी तकनीकी विकास वाहन (टीडीवी) होगा जिसे पहले हेलीकॉप्टर से ड्रॉप कर रन-वे पर स्वचालित तरीके से लैंड कराया जाएगा। अभी तक ङ्क्षवड टनल परीक्षण के बाद आरएलवी का लैंडिंग गियर के साथ विंड टनल मॉडल तैयार किया जा चुका है। इसके अलावा लो-सबसोनिक परीक्षण भी पूरे हो चुके है। अब आरएलवी के उन्नत संस्करण की डिजाइनिंग और विकास की प्रक्रिया चल रही है ताकि पुन: कक्षा प्रवेश (री-एंट्री) परीक्षण किया जा सके। इसरो ने कहा है कि लैंडिंग साइट चिन्हित किया जा चुका है जहां रन-वे बनाया जाएगा। मानव रहित यानों के लैंङ्क्षडग के लिए आवश्यक नेविगेशनल एवं अन्य प्रणालियां क्या होंगी इसे तय करना है।
हालांकि, आरएलवी विकास की गतिविधियां चल रही हैं लेकिन ये अहम परीक्षण अगले वर्ष तक होने की उम्मीद है। इसरो के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक फिलहाल चंद्रयान-2 मिशन पर
ध्यान केंद्रीत है। साथ ही इस साल के अन्य मिशनों को प्राथमिकता दी जाएगी।
दरअसल, आरएलवी परियोजना का अंतिम लक्ष्य एक एक ऐसे यान विकसित करना है जो उपग्रहों को धरती की निचली कक्षा में छोड़कर पुन: धरती पर लौट आए और उसका दोबारा उपयोग हो सके। इससे उपग्रहों की लांचिंग के लिए रॉकेटों पर आने वाले भारी खर्च में भारी कटौती होगी। रॉकेट एक मिशन पर सिर्फ एक बार उड़ान भर सकते हैं लेकिन आरएलवी का उपयोग कई बार हो सकेगा। हालांकि, इस परियोजना के पूर्ण विकास में कम से कम दस साल का समय लग जाएगा।