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अब इसरो के आदित्य एल-1 पर टिकी निगाहें

locationबैंगलोरPublished: Aug 27, 2018 06:26:02 pm

वर्ष 2019-20 तक प्रक्षेपण की योजना: सूर्य के विभिन्न पहलुओं का व्यापक अध्ययन करेगा भारतीय अंतरिक्षयान

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अब इसरो के आदित्य एल-1 पर टिकी निगाहें

राजीव मिश्रा
बेंगलूरु. सूर्य के अध्ययन के लिए अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा ‘पार्कर सोलर प्रोबÓ मिशन भेजे जाने के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का सूर्य मिशन भी उड़ान भरने के लिए तैयार हो रहा है। हालांकि, सूर्य पर पहुंचने की योजना पहले इसरो ने बनाई थी लेकिन नासा का अंतरिक्षयान पहले पहुंचेगा जबकि भारतीय मिशन वर्ष 2019-20 तक छोड़ा जाएगा।
१५ लाख किमी दूर कक्षा में होगा स्थापित
अमरीकी मिशन सूर्य सतह से महज 40 लाख किमी की दूरी से गुजरते हुए उससे निकलने वाली ऊर्जा, गर्मी, उसके परिमंडल और आसपास के असामान्य वातावरण का अध्ययन करेगा, जो इतिहास में आज तक नहीं हुआ जबकि भारतीय मिशन सूर्य के कॅरोना, बाह्य प्रभामंडल, परिमंडल, उसे चारों ओर से घेरे गैस के लाल मंडल (वर्ण मंडल), सौर लपटें, सूर्य के चुम्बकीय क्षेत्र और उसके प्रभाव आदि का विशेष उपकरणों से अध्ययन करेगा। हालांकि, इसरो ने वर्ष 2012-13 के दौरान ही सूर्य पर आदित्य-1 मिशन भेजने की योजना तैयार की थी जिसका उद्देश्य सिर्फ सूर्य कॅरोना का अध्ययन करना था।
इस मिशन के तहत सिर्फ एक पे-लोड वाला लगभग 400 किलोग्राम वजनी अंतरिक्षयान (आदित्य-1) धरती से 800 किमी ऊंचाई पर हैलो आर्बिट में स्थापित किया जाना था। लेकिन, मिशन की समीक्षा के बाद इसे पूरी तरह बदल दिया गया और आदित्य-1 मिशन को आदित्य एल-1 मिशन कर दिया गया। अब इसरो का अंतरिक्षयान आदित्य एल-1 धरती से 15 लाख किलोमीटर की ऊंचाई वाली हैलो आर्बिट में लग्रांज-1 (एल-1) बिंदु के आसपास स्थापित होगा।
सौर लपटों को समझाएगा मिशन
इसरो का कहना है कि इतने सारे उपकरणों को शामिल किए जाने के बाद आदित्य एल-1 मिशन के जरिए सूर्य का व्यापक अध्ययन हो सकेगा। यह मिशन देशभर की विभिन्न संस्थाओं को साथ मिलकर अध्ययन करने का एक अवसर भी प्रदान करेगा। भारतीय मिशन सौर कॅरोना के अत्यधिक गर्म होने, सौर हवाओं की गति बढऩे तथा कॅरोनाल मास इंजेक्शंस (सीएमईएस) से जुड़ी भौतिक प्रक्रियाओं को समझने में मददगार होगा। यह सौर लपटों के कारण धरती के मौसम पर पडऩे वाले प्रभावों और इलेक्ट्रोनिक संचार में उत्पन्न होने वाली बाधाओं का भी अध्ययन करेगा। इसरो अध्यक्ष के. शिवन ने कहा कि फिलहाल दिसम्बर 2019 को ध्यान में रखकर सूर्य पर भेजे जाने वाले आदित्य एल-1 मिशन की तैयारियां चल रही हैं।
‘आदित्यÓ से ओझल नहीं होगा सूर्य
सूर्य के केंद्र से पृथ्वी के केंद्र तक अगर एक सीधी सरल रेखा खिंची जाए तो लग्रांज बिंदु इस रेखा पर पडऩे वाली वह बिंदु होती है जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल बराबर होते हैं। सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी की तुलना मेें काफी अधिक होता है इसलिए अगर कोई वस्तु इस रेखा के बीचोंबीच रखी जाए तो वह सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में आकर उसमें समा जाएगी। लग्रांज बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल समान रूप से लगते हंै इसलिए सूर्य और पृथ्वी दोनों का प्रभाव बराबर हो जाता है। इस स्थिति में वस्तु को ना तो सूर्य अपनी ओर खींच पाएगा और ना ही पृथ्वी अपनी ओर खींच सकेगी। लग्रांज बिंदु को एल-1, एल-2, एल-3, एल-4 और एल-5 से निरुपित किया जाता है। इसरो धरती से 15 लाख किलोमीटर ऊपर एल-1 लग्रांज बिंदु के आसपास आदित्य मिशन को स्थापित करना चाहता है। इस कक्षा की एक खासियत यह है कि यहां से उपग्रह लगातार सूर्य की पर नजर रख सकता है। किसी अच्छादन या ग्रहण की घटना के दौरान सूर्य उपग्रह से ओझल नहीं हो पाएगा।
आदित्य के वैज्ञानिक उपकरण
1. विजिबल एमिशन लाइन कॅरोनोग्राफ (वीइएलसी)
यह उपकरण भारतीय ताराभौतिकी संस्थान (आइआइए) बेंगलूरु, तैयार कर रहा है। यह उपकरण सूर्य कॅरोना का विभिन्न मानदंडों पर विश्लेषणात्मक अध्ययन करते हुए उससे होने वाले उत्सर्जन की उत्पत्ति और गतिशीलता का पता लगाएगा साथ ही चुम्बकीय क्षेत्र व उसके प्रभाव को मापेगा।
2. सोलर अल्ट्रवायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (सुइट)
यह सूर्यके बाह्य प्रभामंडल और वर्ण मंडल की करीब से अल्ट्रावायलेट (200-400 एनएम) तस्वीरें उतारेगा और सूर्य के प्रकाश विकिरण की विविधताओं को मापेगा। इस उपकरण को आयुका (आईयूसीएए) तैयार कर रहा है।
3. आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (एसपेक्स)
यह उपकरण सौर हवाओं के गुणों की विविधता का अध्ययन करेगा। साथ ही इसके प्रसार और वर्णक्रमीय विशेषताओं के बारे में जानकारी जुटाएगा। इसे भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) तैयार कर रही है।
4. प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (पापा)
यह उपकरण सौर हवाओं की संरचना को समझेगा और उसके ऊर्जा विस्तार के बारे में जानकारी देगा। इसे विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) की इकाई अंतरिक्ष भौतिक प्रयोगशाला (एसपीएस) तैयार कर रही है।
5. सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (सोलेक्स)
यह सौर कॅरोना को अत्यधिक गर्म करने वाले तंत्र को समझने के लिए एक्स-रे किरणों की निगरानी करेगा। इसे यूआर राव उपग्रह केंद्र द्वारा तैयार किया जा रहा है।
6. हाई एनर्जी एल-1 आर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर
यह पे-लोड सूर्य में होने वाले विस्फोट के दौरान कॅरोना की परिवर्तनशील घटनाओं का अध्ययन करेगा और साथ ही उत्पन्न ऊर्जा के बारे में अध्ययन करेगा। इसका विकास यूआर राव उपग्रह केंद्र, उदयपुर सौर वेधशाला और पीआरएल संयुक्त रूप से कर रहे हैं।
7. मैग्नेटोमीटर
इस उपकरण का उपयोग कर अंतरग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र के परिमाण और प्रकृति को मापा जाएगा। इसका विकास लेबोरेटरी फॉर इलेक्ट्रो ऑप्टिक सिस्टम्स (लिओस) और यू आर राव उपग्रह केदं्र संयुक्त रूप से कर रहे हैं।
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