बैंगलोर

अगले वर्ष इसरो छोड़ेगा एसएसएलवी

छोटे उपग्रहों के लिए कॉम्पैक्ट रॉकेट, ऊंचाई पीएसएलवी की आधी, वजन एक तिहाई

बैंगलोरJan 03, 2018 / 06:10 pm

Rajeev Mishra

isro

बेंगलूरु.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित किए जा रहे लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) की पहली उड़ान अगले साल तक होने की उम्मीद है। हालांकि, इस रॉकेट परियोजना के लिए औपचारिक अनुमति का अभी इंतजार है मगर रॉकेट का विकास करने वाली इसरो की नोडल एजेंसी वीएसएससी थुम्बा, में इसकी डिजाइनिंग एवं विकास पर पहले ही काम शुरू हो चुका है।इसरो के उच्च पदस्थ अधिकारियों का कहना है कि अब वैश्विक ट्रेंड लघु एवं कॉम्पैक्ट उपग्रहों का है। सभी देश छोटे उपग्रह तैयार कर रहे हैं और इसलिए एक छोटा रॉकेट ऐसे उपग्रहों की प्रक्षेपण जरूरतों को पूरी करने के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा। वीएसएससी के निदेशक के.सिवन ने उम्मीद जताई है कि वर्ष 2019 की पहली छमाही में इस रॉकेट की पहली उड़ान हो जाएगी। लांच पैड पर यह रॉकेट इसरो के विश्वसनीय रॉकेट पीएसएलवी की तुलना में एक तिहाई वजन वाला और आधी ऊंचाई वाला होगा। गौरतलब है कि पीएसएलवी का वजन लगभग 320 टन जबकि उसकी ऊंचाई 44 मीटर है। एसएसएलवी की ऊंचाई 20 से 25 मीटर होगी जबकि उसका वजन लगभग 100 टन के ही आसपास होगा। यह रॉकेट 500 से 600 किलोग्राम वजनी उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में 2 हजार किमी ऊंचाई तक पहुंचाने की योग्यता रखेगा।
दरअसल, तकनीकी उन्नति के साथ उपग्रहों का आकार और वजन घटता जा रहा है। फिलहाल जो रॉकेट उपलब्ध हैं (पीएसएलवी या जीएसएलवी) उनमें बड़े उपग्रहों के साथ छोटे उपग्रहों को समयोजित करना पड़ता है। लेकिन, अगर लघु उपग्रहों के लिए छोटे रॉकेट हों तो उनका प्रक्षेपण किफायती दर पर बिना विलंब के हो सकेगा। छोटे उपग्रहों को किसी बड़े उपग्रह के साथ समायोजित होने के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा। इस लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) की प्रक्षेपण लागत भी पीएसएलवी की तुलना में 10 गुणा कम होगी। विश्व की सभी अंतरिक्ष एजेंसियां सस्ते प्रक्षेपण का प्रयास कर रही हैं। सभी की कोशिश है कि कैसे कम लागत में पृथ्वी की कक्षा तक पहुंचा जाए। इसरो का यह प्रयास भी कम लागत में अंतरिक्ष पहुंचने में काफी प्रभावी साबित होगा। इसरो अधिकारियों का कहना है कि इस रॉकेट को पूरी तरह ठोस ईंधन से छोडऩे की योजना है। इसरो अधिकारियों के मुताबिक विश्वभर में बड़े पैमाने पर छोटे उपग्रह ही तैयार किए जा रहे हैं। इसलिए अगर बाजार पर पकड़ बनानी है तो छोटे उपग्रहों की लांचिंग महत्वपूर्ण होगी। अनुमानों के मुताबिक वर्ष 2017 से 2026 के बीच लगभग विश्व भर में 6200 लघु उपग्रह छोड़े जाएंगे और इनका बाजार 8.9 अरब डॉलर से बढ़कर 30 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।
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