ये है खासियत
इस उपग्रह में 40 उच्च क्षमता वाले ‘के एÓ और ‘के यूÓ बैंड ट्रांसपोंडर और मल्टी बिम्स हैं। इसके प्रत्येक सौर पैनल चार मीटर से भी अधिक बड़े हैं और यह 11 किलोवाट ऊर्जा उत्पादित करेंगे। यह उपग्रह 36 मेगाहटर््ज के 220 उपग्रहों की क्षमता के बराबर कार्य करेगा। इसका विकास 500 करोड़ रुपए की लागत से किया गया है और यह इसरो द्वारा तैयार किया गया अब तक का सबसे वजनी उपग्रह है।
क्षमता बढ़ाने का प्रयास कर रहा इसरो
इसरो अध्यक्ष एएस किरण कुमार के अनुसार इसरो देश को नई क्षमता प्रदान करने का प्रयास कर रहा है। यह उपग्रह आधारित इंटरनेट सेवाओं के लिए बेहद उपयोगी होगा। डिजिटल इंडिया के दृष्टिकोण से पंचायतों और तालुकों को जोडऩे के अलावा सुरक्षा बलों के भी काम आएगा। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने जीसैट-11 परियोजना को वर्ष 2009 में मंजूरी दी थी। इसरो इस उपग्रह की लांचिंग के लिए एरियन-5 की सेवाएं लेगा क्योंकि अभी भारतीय रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 की अधिकतम प्रक्षेपण क्षमता 4 टन है।
इस उपग्रह में 40 उच्च क्षमता वाले ‘के एÓ और ‘के यूÓ बैंड ट्रांसपोंडर और मल्टी बिम्स हैं। इसके प्रत्येक सौर पैनल चार मीटर से भी अधिक बड़े हैं और यह 11 किलोवाट ऊर्जा उत्पादित करेंगे। यह उपग्रह 36 मेगाहटर््ज के 220 उपग्रहों की क्षमता के बराबर कार्य करेगा। इसका विकास 500 करोड़ रुपए की लागत से किया गया है और यह इसरो द्वारा तैयार किया गया अब तक का सबसे वजनी उपग्रह है।
क्षमता बढ़ाने का प्रयास कर रहा इसरो
इसरो अध्यक्ष एएस किरण कुमार के अनुसार इसरो देश को नई क्षमता प्रदान करने का प्रयास कर रहा है। यह उपग्रह आधारित इंटरनेट सेवाओं के लिए बेहद उपयोगी होगा। डिजिटल इंडिया के दृष्टिकोण से पंचायतों और तालुकों को जोडऩे के अलावा सुरक्षा बलों के भी काम आएगा। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने जीसैट-11 परियोजना को वर्ष 2009 में मंजूरी दी थी। इसरो इस उपग्रह की लांचिंग के लिए एरियन-5 की सेवाएं लेगा क्योंकि अभी भारतीय रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 की अधिकतम प्रक्षेपण क्षमता 4 टन है।