व्यक्तित्व विकास के लिए सहना और तपना जरूरी-देवेंद्रसागर
बैंगलोरPublished: Oct 20, 2020 11:59:06 am
धर्मचर्चा
व्यक्तित्व विकास के लिए सहना और तपना जरूरी-देवेंद्रसागर
बेंगलूरु. जिंदगी को हर कोई अनूठा रचना चाहता है एवं तरक्की के शिखर देना चाहता है। इसी भांति जिन्दगी के मायने भी सबके लिए भिन्न-भिन्न हंै। किसी के लिए जिन्दगी कर्म है, तो किसी के लिए रास्ता। ऐसे भी कई मिल जाएंगे, जिन्होंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं। जिंदगी को कुछ लोग प्रकृति तो कुछ भगवान भी मानते हैं। एक तरफ गहरा सत्य है जिंदगी, तो दूसरी तरफ रहस्यों से भरपूर भी। पता ही नहीं होता कि अगले क्षण क्या होने वाला है। यह बात आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने कही। उन्होंने कहा कि यह एक सार्वभौम नियम है। कुछ सही हालात का इंतजार करते रह जाते हैं तो कुछ कैसे भी हालात में अपने मन का सुकृन बनाए रखने में कामयाब रहते हैं। कुछ लोग कठिनाइयों के कांटों से घबराकर मार्ग बदलते रहते हैं, पर वे अपने जीवन में कभी भी शांति और सफलता के दर्शन नहीं कर सकते।
जिन्दगी में किसी प्रकार की कठिनाई और समस्या नहीं हो, इस प्रकार के जीवन की कल्पना एक दिवास्वप्न है, जो कभी भी सफल और सार्थक नहीं हो सकता। हर किसी को अपना दुख बड़ा और दूसरे का मामूली लगता है। हम दूसरों के सुख तो देख पाते हैं, उनके संघर्ष नहीं। हम दुख को पकड़े रहते हैं और दुख हमें। हमारी भीतरी आवाजें हमें लाचार ही बनाए रखती हैं। अगर आपकी भीतरी आवाज कहती है कि आप पेंटिंग नहीं कर सकते, तो किसी भी सूरत में आप पेंट करें, आप पाएंगे कि वो आवाजें खुद ब खुद चुप हो रही हैं।’ जिनकी मनोवृत्ति सुविधावादी हो जाती है उनके लिए छोटी-सी प्रतिकूलता को सहना कठिन हो जाता है, नया रचना असंभव हो जाता है।