उन्होंने आयंबिल तप साधना व नवकार महामंत्र की आराधना करते हुए परम पद मुक्ति को प्राप्त किया। संकल्प से ही जीवन में सिद्धि मिलती है। जीवन में छोटे-छोटे संकल्प हो या कोई बड़ा लक्ष्य हो। बिना दृढ़ संकल्प के उनको सिद्ध नहीं किया जा सकता।
साध्वी महाप्रज्ञा ने तृतीय आचार्य पद की महिमा बताते हुए कहा कि पांच आचारों की शुद्धि तथा क्रोध आदि कषायों पर विजय प्राप्त करने वाले भाव आचार्य के रूप में स्थापित होते हैं। आचार्य के गुण 36 होते हैं।
जैसे नक्षत्रों में चंद्रमा, फूलों में कमल, वृक्ष में चंदन और प्रजा में राजा सुशोभित होता है वैसे ही चतुर्विध संघ में आचार्य सुशोभित व शोभायमान होते हैं। आचार्य खुद भी प्रकाशित हैं औरों को भी खुद की कान्ति से प्रकाशित करते हैं। उन्होंने कहा कि आचार्य का जिनशासन में बहुत बड़ा महत्व होता है। आचार्य शब्द परिपक्वता का प्रतीक हैं। आचार्य का कार्य जिनशासन की प्रभावना कराना और जैन श्रीसंघों की रक्षा करना होता है। अपने ज्ञान के आचरण से वे जिनशासन में ज्ञान का पौषण करते हैं। आचार्य के हाथों में सृजनता की शक्ति हुआ करती है। साध्वी राजकीर्ति ने नवपद आयंबिल ओली के पांचवे दिन सभी आयंबिल आराधकों को विधिवत आराधना सम्पन्न करवाई। गुरुवार का जाप अनुष्ठान सुबह 8.30 बजे से होगा।
चित्तौढ़ से आए विनोद मेहता का सम्मान समिति के नथमल मूथा एवं गुलाबचंद पगारिया ने किया। जय जिनेंद्र प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। धर्मसभा का संचालन राजेश गोलेछा ने किया। सभी का आभार अशोक रांका ने जताया।