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मन को मंदिर बनाना अत्यंत जरूरी

locationबैंगलोरPublished: Nov 10, 2018 04:41:07 pm

Submitted by:

Ram Naresh Gautam

साधु जीवन में ब्रह्मचर्य के पालन के लिए नौ विशेष नियम बताए गए हैं।

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मन को मंदिर बनाना अत्यंत जरूरी

मैसूरु. महावीर जिनालय, सिद्धलिंपुरा में आचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि भगवान महावीर की अंतिम देशना रूप उत्तराध्ययन सूत्र के 16वें ब्रह्मचर्य अध्ययन में मोक्षार्थी को ब्रह्मचर्य के पालन की आज्ञा की है।

अन्य व्रत नियमों में हुई स्खलना को प्रायश्चित के माध्यम से शुद्ध किया जा सकता है, जबकि ब्रह्मचर्य का भंग, साधु की साधुता को भ्रष्ट कर देता है।
ब्रह्मचर्य के पालन की अत्यधिक महत्ता है। सुवर्ण के मंदिर बनाना तथा रत्न की प्रतिमा बनाना भी आसान है, जबकि ब्रह्मचर्य का विशुद्ध पालन करना कठिन है।

साधु जीवन में ब्रह्मचर्य के पालन के लिए नौ विशेष नियम बताए गए हैं। जिसमें आंखों पर लगाम एवं रसप्रद भोजन के त्याग पर जोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि पाप का प्रवेश द्वार आंख है।
आंख से हम जो देखते हें, तुरंत ही मन उससे प्रभावित हो जाता है। आंख का मुख्य विषय है रूप। सुंदर रूप को देखते ही आंख ललचा जाती हे। जहां एक बार आंख चली गई वहां मन उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता है।
मन में भगवान को लाना हो तो मन को मंदिर बनाना अत्यंत जरूरी है। जिसने मन को मंदिर बनाया है, उसी में परमात्मा का प्रवेश हुआ है।

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