पुलिस विभाग ने सरकार को प्रस्ताव भेजा है कि आपराधिक मामलों मेंं गवाहों के बयान लिखित के साथ ही ऑडियो-वीडियो के तौर पर भी दर्ज किए जाएं ताकि अभियोजन पक्ष गवाहों के मुकरने के कारण मामला हारने की स्थिति से बच सके।
जानकारों का कहना है कि अगर राज्य सरकार पुलिस विभाग के प्रस्ताव को स्वीकार कर उस पर आगे बढ़ती है तो गवाहों के ऑडियो-वीडियो बयान दर्ज करने की व्यवस्था करने वाला कर्नाटक देश का पहला राज्य होगा।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि मौजूदा व्यवस्था में गवाहों के बयान दंडाधिकारी के समक्ष लिखित दर्ज कराए जाते हैं लेकिन ट्रायल के दौरान अभियोजन पक्ष को इससे ज्यादा मदद नहीं मिल पाती हैं।
गवाहों के गैरहाजिर होने अथवा बयान से मुकर जाने के कारण मामला अभियोजन पक्ष के विरुद्ध चला जाता है। पुलिस महानिदेशक ने सरकार को भेजे प्रस्ताव में कहा है कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दंडाधिकारी के समक्ष दर्ज कराए जाने वाले बयान को नई प्रक्रिया से दर्ज किए जाने पर अभियोजन पक्ष को इन समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा।
प्रस्ताव में कहा गया है कि लिखित के साथ ही गवाह के ऑडियो व वीडियो बयान दर्ज होने से ट्रायल के दौरान उसके उपस्थित नहीं होने पर भी अभियोजन पक्ष अपनी दलीलें मजबूती से रख सकेगा।
पुलिस विभाग के प्रस्ताव के मुताबिक लिखित बयान की तरह वीडियो बयान भी ट्रायल से पहले अदालत में पेश किया जाएगा और अभियोजन पक्ष गवाहों से जिरह भी करेगा। अगर कोई गवाह सुनवाई के दौरान अदालत में पेश नहीं होता है तो जांच अधिकारी उसकी अनुपस्थिति का कारण भी बताएंगे। इसके बाद उच्च न्यायालय नए प्रवाधान के अनुपालन के बारे में ट्रायल अदालत को दिशा-निर्देश देगा।
शीर्ष अदालत के फैसले से खुलेगी राह
जानकारों का कहना है कि पुलिस विभाग ने सरकार को आपराधिक न्याय प्रक्रिया में नई व्यवस्था को लागू करने का प्रस्ताव उच्चतम न्यायालय के एक आदेश के आधार पर भेजा है।
विभाग का कहना है कि शीर्ष अदालत के डूंगर सिंह व अन्य बनाम राजस्थन राज्य के मामले में दिए गए आदेश के मुताबिक नई व्यवस्था लागू की जा सकती है। इस आदेश में शीर्ष अदालत ने राज्यों को निर्देश दिया था कि गवाहों के बयान ऑडियो-वीडियो के तौर पर इलेक्ट्रानिक तरीके से भी दर्ज किए जाएं।
सूत्रों का कहना है कि अगर सरकार इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है तो इसे लागू करने के लिए गृह विभाग पुलिस आयुक्तों व पुलिस अधीक्षकों को दिशा-निर्देश जारी करेगा।
इसलिए आया ये प्रस्ताव
सूत्रों के मुताबिक राज्य में कम अभियोजन दर का एक बड़ा कारण गवाहों का सुनवाई के दौरान अदालत में पेश नहीं होना अथवा पूर्व में दिए गए बयान से मुकर जाना है।
इसलिए आया ये प्रस्ताव
सूत्रों के मुताबिक राज्य में कम अभियोजन दर का एक बड़ा कारण गवाहों का सुनवाई के दौरान अदालत में पेश नहीं होना अथवा पूर्व में दिए गए बयान से मुकर जाना है।
करीब साढ़े चार साल के दौरान राज्य में अभियोजन पक्ष को 86 हजार से अधिक मामलों में हार का सामना करना पड़ा। सूत्रों के मुताबिक जनवरी 2015 से जून 2019 के बीच 86,187 मामलों में अभियोजन पक्ष का मामला खारिज हो गया। इनमें से अधिकांश मामलों में आरोपी गवाहों की गैरहाजिरी या मुकरने के कारण बरी हो गए।