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तप का अर्थ कषायों को दूर करना

locationबैंगलोरPublished: Sep 10, 2018 08:42:11 pm

Submitted by:

Rajendra Vyas

अंतगड़ सूत्र में तृतीय वर्ग और चतुर्थ वर्ग का वर्णन

pravachan

तप का अर्थ कषायों को दूर करना

बेंगलूरु. वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, फ्रेजर टाउन में साध्वी निधि ज्योति ने कहा कि तप का अर्थ कषायों को दूर करना है। हर संसारी कर्म के रोग से ग्रस्त है। इसको शांत करने का अचूक उपाय है तप। इससे कर्मों की निर्जरा होती। यह सुख का निधान भी है। इससे शुभ कर्मों का बंध होता है। उन्होंने कहा कि क्रोध, मान, माया, मोह, लोभ इत्यादि कषायों को दूर करने, उनकी लालसाओं से परे हटने के लिए तप किया जाता है। जब तक कषाय कम नहीं होते, तप का प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है। सभा में अंतगड़ सूत्र में तृतीय वर्ग और चतुर्थ वर्ग का वर्णन किया गया। सभा में चेयरमैन सुजानमल, कोषाध्यक्ष जयंतीलाल, अध्यक्ष लखमी आछा उपस्थित थे।
लिया भक्ति का लाभ
सीमंधर स्वामी राजेंद्र सूरी जैन श्वेताम्बर मंदिर व सीमंधर स्वामी राजेंद्र सूरी जैन आरती मंडल, मामुलपेट के तत्वावधान में पर्युषण महापर्व के उपलक्ष्य में दादा गुरुदेव की विशेष आरती व भक्ति कार्यक्रम में श्रद्धालुओं ने भक्ति का आनंद लिया। तपस्वियों ने आरती का लाभ लिया। अतिथि सीमंधर राजेंद्र सूरी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष मांगीलाल दुर्गाणी, सचिव नेमीचंद वेदमुथा, पारसमल कांकरिया थे। सुखीदेवी प्रेमचंद बंदा परिवार ने दादा गुरुदेव की आरती की। राजेंद्र सूरी धार्मिक पाठशाला, ऋषभ संस्कार वाटिका के बच्चों ने भी भाग लिया। मंडल अध्यक्ष चंपालाल गादिया, सचिव महावीर मेहता, सुरेश कुमार, दिनेश चौहान उपस्थित थे।
भावना से होता है भवों का नाश
यशवंतपुर जैन स्थानक में साध्वी अमितसुधा ने कहा कि मोक्ष के चौथे द्वार ‘भावÓ भावना से भवों का नाश होता है। भावना भव का, संसार का नाश करने वाली है। उन्होंने कहा कि मोक्ष के चार मार्गों में भावना का अत्यधिक महत्व है। भावों की प्रधानता से ही साधु उच्चता के शिखर पर चढ़ता है। संसार में जितना भी खेल है, भावनाओं का खेल है। भावों से ही उत्थान और पतन है, भावों से ही बंधन और मुक्ति है। भावों से ही विकास और विनाश है। भावना दो प्रकार की शुभ भावना और अशुभ भावना है। अशुभ भावना व्यक्ति को संसार में भड़काती है, रुलाती है और भव भव लड़ाती है और शुद्ध भावना से साधक ऊंचा उठता है। विकास के मार्ग पर बढ़ते-बढ़ते भवों का नाश करके मोक्ष महल का अधिकारी बन जाता है। साध्वी सोम्याश्री ने अंतगड़ सूत्र का वाचन किया। साध्वी वैभवश्री ने गीतिका प्रस्तुत की।

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