मौत के क्षण अनेक हैं। जन्म का क्षण तो वही था, जब जन्म हुआ था। उसके बाद तो लगातार मौत जारी है। जन्मदिन हकीकत में जन्मदिन नहीं, वह तो मौत की खबर करने वाला सचेतक है।
साध्वी ने कहा कि सच तो यह है कि जन्म दिन न रोने का दिन है, न हंसने का दिन है। यह तो चिंतन की गहराई में उतरने का दिन है। सोचना है अपने बारे में कि क्या किया मैंने साल भर।
चिंतन के बाद निर्णय करना है कि अब भी जाग गया तो सूरज की रोशनी मेरे आंगन में उतर सकती है।
अपने भविष्य को संवारने और पूर्ण करने के लिये अपने वर्तमान को पूर्णता देना है। यही जन्मदिन का चिंतन है और यही हर क्षण का चिंतन है।
अपने भविष्य को संवारने और पूर्ण करने के लिये अपने वर्तमान को पूर्णता देना है। यही जन्मदिन का चिंतन है और यही हर क्षण का चिंतन है।