चामराजनगर. गुंडलपेट स्थानक में साध्वी साक्षी ज्योति ने कहा कि इंसान की सोच निर्मल और पवित्र हो, विशाल एवं उदार हो। इंसान की सोच जितनी ऊंची होती है, बड़ी होती है वो व्यक्ति अपने जीवन में बहुत बड़ा काम करता है। उन्होंने कहा कि सब कुछ हमारी सोच पर निर्भर है। कुछ लोगों की सोच साइकिल जितनी छोटी होती है। उनके लिए सिर्फ वे स्वयं ही सर्वेसर्वा होते हैं। साइकिल जैसी सोच वाला व्यक्ति जीवन में विशेष तरक्की नहीं कर पाता है। कई लोगों की सोच मारुति कार जैसी होती है। यदि हमारी सोच विराट हो जाती है तो हमारा जीवन फूलों की क्यारी की तरह सुंदर, सुरभित एवं मनोरम बन जाता है। यदि हम फूलों की क्यारी की बजाय कांटों की झाड़ी बने रहेंगे तो हमारे स्वभाव के कांटे हमें भी चुभेंगे और दूसरों को भी। उच्च सोच के धनी ही उच्च चरित्र के धनी होते हैं।
मैत्री हृदय वाला करता है सच्ची क्षमापना
मैसूरु. महावीर भवन में जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि पर्वाधिराज महापर्व में करणीय 8 कर्तव्यों में सबसे पहला कर्तव्य अमारि प्रवर्तन है। अमारि प्रवर्तन अर्थात नगर में चारों ओर अहिंसा की उद्घोषणा करना। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार आद्र्र भूमि में ही बीज का वपन हो सकता प्रकार जिसका हृदय करुणाद्र्र बना हो, वही व्यक्ति सद्धर्म की सच्ची आराधना कर सकता है। जिसके हृदय में दया नहीं है, करुणा नहीं है, ऐसा निर्दय व कठोर व्यक्ति सद्धर्म की आराधना करने में कभी समर्थ नहीं हो सकता। सच्ची क्षमापना वही कर सकता है जिसका हृदय मैत्री व करुणा की भावना से सरोवर हो।