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जीवन में कभी भ्रूण हत्या जैसा पाप न करें : डॉ. समकित मुनि

locationबैंगलोरPublished: Sep 20, 2020 10:18:44 pm

शूले स्थानक मेंं प्रवचन

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बेंगलूरु. अशोकनगर शूले जैन स्थानक में समकित की यात्रा के अंतर्गत श्रमण संघीय डॉ. समकित मुनि ने उत्तराध्ययन सूत्र के 23वें अध्ययन पर प्रवचन माला प्रारंभ करते हुए कहा कि यह अध्ययन बताता है कि जिज्ञासा से अमृत जन्मता है। अर्जुन ने जिज्ञासा की, गीता का जन्म हुआ,गौतम स्वामी ने जिज्ञासा की तो आगमों का जन्म हुआ,केशी श्रमण ने जिज्ञासा की तो 23 वें अध्ययन के रूप में नया अमृत प्रकट हुआ।
मुनि ने कहा कि इस 23वें अध्ययन में सद्भावना के अक्षर हैं एवं मैत्री के अमर हस्ताक्षर हैं। यह अध्ययन हमें अपनों के साथ खुश रहना,दूसरों को अपना कैसे बनाना इसकी कला सिखाता है।
लोकोपचार विनय
यह विनय का सातवां (अंतिम) भेद है। लोकोपचार विनय के द्वारा कैसे इतिहास रचा जाता है, इसका उदाहरण यह 23 वां अध्ययन है। लोकोपचार विनय के द्वारा मैत्री को प्रगाढ़ किया जा सकता है । परायों को अपना बनाया जा सकता है। जब तक लोकोपचार विनय की साधना नहीं होती तब तक व्यक्ति अपनों के साथ रहकर भी खुश नहीं रहता।
चेलना की कथा सुनाते हुए मुनि ने कहा कि अपने जीवन में कभी भ्रूण हत्या जैसा घिनौना पाप न करें क्योंकि ऐसे पाप का कोई प्रायश्चित नहीं होता। कोई जीव हमारी शरण में आया है तो उसे मारकर कर्म बंध मत करो।
प्रेम कुमार कोठारी ने बताया कि संचालन संघ के मंत्री मनोहर लाल ने किया। इस मौके पर चेन्नई पेरंबूर से रिखबचंद मुथा ,संजय मेहता, मालती बाई कुंकुलोल परिवार सहित संघ लेकर उपस्थित थे।

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