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जिनशासन की परंपरा सुशासन की : डॉ. समकित मुनि

locationबैंगलोरPublished: Sep 23, 2020 02:42:27 pm

शूले स्थानक में प्रवचन

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बेंगलूरु. अशोकनगर शूले जैन स्थानक में डॉ. समकित मुनि ने केशी श्रमण गौतम स्वामी के अध्ययन पर प्रवचन में कहा कि केशी श्रमण और गौतम स्वामी एक ही नगरी के अलग-अलग उद्यानो में अपने अपने शिष्यों के साथ ठहरे। गौतम स्वामी चार ज्ञान चौदह पूर्वों के ज्ञाता हैं।
केशी श्रमण और गौतम स्वामी के शिष्य कई तरह के संयम का पालन करते थे। एक संयम है- मन संयम। मन में किसी प्रकार भी, किसी के भी प्रति दुर्भावना ना लाना ही मन संयम है। मन का संयम रखने वाले के जीवन में वचन का संयम स्वयं घटित हो जाता है। जिनका मन संयम में रमन करता है उनके मुंह से किसी की निंदा नहीं निकलती।
मुनि ने कहा कि केशीश्रमण और गौतम स्वामी दोनों ही एक ही धर्म का पालन करते हुए भी उनके नियम, व्यवहार, समाचारी आदि अलग-अलग थे। समाचा री- नियम एक न होने पर भी केशी- गौतम एक ही नगरी में रहने पर भी एक दूसरे के प्रति निंदा के भाव नहीं लाते।
मुनि ने कहा कि इस घटना से एक बात साबित होती है कि समाचारी अलग-अलग होते हुए भी शांति के साथ रहा जा सकता है। जिनकी दृष्टि मिथ्या (दुर्योधन की) होती है उसे स्वयं के अलावा कोई अच्छा नजर नहीं आता, सम्यक दृष्टि को कोई बुरा नहीं दिखता।
जिनशासन की परंपरा दुशासन की नहीं सुशासन की है। जहां पर स्यादवाद और अनेकांतवाद जैसे दर्शन मिलते हैं। प्रचार- प्रसार मंत्री प्रेम कुमार कोठारी ने बताया कि संचालन मनोहर लाल बंब ने किया।

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