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16 माह से मांग रहे हक, सरकार के दखल के बाद भी नहीं सुलझा मसला

locationबैंगलोरPublished: Jul 07, 2020 11:17:26 pm

Submitted by:

Nikhil Kumar

हड़ताल ने राजनीतिक रंग लेना भी शुरू कर दिया है।

16 माह से मांग रहे हक, सरकार के दखल के बाद भी नहीं सुलझा मसला

16 माह से मांग रहे हक, सरकार के दखल के बाद भी नहीं सुलझा मसला

बेंगलूरु.

कोरोना महामारी के बीच एक ओर ज्यादातर अस्पताल चिकित्सकों व नर्सों की कमी से जूझ रहे हैं तो दूसरी ओर स्टाइपेंड (वृत्तिका) की मांग को लेकर दावणगेरे जेजेएम मेडिकल कॉलेज (JJM Medical College) के रेजिडेंट चिकित्सकों की भूख हड़ताल करीब एक सप्ताह से (Resident doctors at JJM Medical College in Karnataka’s Davanagere continue to stage indefinite strike against non-payment of stipend for over lasy 16 months) जारी है। आसपास के चार जिलों के लोग उपचार के लिए इसी अस्पताल पर निर्भर हैं। सरकार रास्ता निकालने में विफल रही है। भारतीय चिकित्सा संघ, दावणगेरे शाखा ने हड़ताल का समर्थन किया है लेकिन चिकित्सकों से हर हाल में सेवा पर बने रहने की अपील की है।

चिकित्सकों ने सोमवार को साफ किया कि 16 माह से उन्हें स्टाइपेंड (Stipend) नहीं मिला है और मांगें पूरी होने तक उनकी हड़ताल जारी रहेगी। चिकित्सकों का दावा है कि हड़ताल के कारण सेवाएं प्रभावित नहीं हुई हैं और चिकित्सक साथियों ने पूरी तरह से काम बंद नहीं किया है। जब जो चिकित्सक ड्यूटी पर नहीं होते हैं वे हड़ताल में शामिल होते हैं। हड़ताल ने राजनीतिक रंग लेना भी शुरू कर दिया है।

आर्थिक संकट, वजीफा ही उम्मीद

चिकित्सकों का कहना है कि उन्होंने अपने कॉलेज की फीस के रूप में पांच से सात लाख रुपए का भुगतान किया है और कोरोना महामारी से उत्पन्न अर्थिक कठिनाइयों से बचने की एकमात्र उम्मीद उनके हक का मासिक वजीफा है।

सरकार ने मदद से खींचे हाथ

कर्नाटक सरकार ने वर्ष 2018 में स्टाइपेंड देने से मना कर दिया था क्योंकि जेजेएमएमसी चिगतेरी जनरल अस्पताल के अंतर्गत है। जिसके बाद राजस्व की कमी का हवाला देते हुए जनरल अस्पताल ने भी स्टाइपेंड के भुगतान से मना कर दिया।

चिकित्सा शिक्षा विभाग ने स्टाइपेंड देने की जिम्मेदारी वापस जेजेएमएमसी प्रशासन के सिर मढ़ दी। जेजेएमएमसी ने भी फंड की कमी के कारण असमर्थता जता दी।

सारे आश्वासन खोखले

जेजेएमएमसी की पी रेजीडेंट चिकित्सक डॉ. हीता ने बताया कि 16 माह से चिकित्सक बिना स्टाइपेंड के काम कर रहे हैं। सरकार के सारे आश्वासन खोखले निकले। चिकित्सक अब हर कीमत पर अपना हक चाहते हैं। अस्पताल में हजार से ज्यादा बिस्तर हैं। सरकारी अस्पतालों में काम करने के लिए जेजेएमएमसी 300 से ज्यादा चिकित्सकों को नियुक्त करता है लेकिन फिलहाल ऐसे 32 चिकित्सक ही हैं। जेजेएमएमसी के रेजिडेंट चिकित्सक सरकार के लिए काम करते हैं इसलिए स्टाइपेंड की जिम्मेदारी सरकार की है। सरकारी कोटे पर मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला। सरकार ने अनिवार्य ग्रामीण सेवा के लिए तीन वर्ष के बॉन्ड पर हस्ताक्षर भी करवाए हैं। अब सरकार कहती है कि स्टाइपेंड उनकी जिम्मेदारी नहीं है। चिकित्सकों की लड़ाई जेजेएमएमसी प्रबंधन के नहीं सरकार के खिलाफ है। जेजेएमएमसी किसी अन्य निजी मेडिकल कॉलेज की तरह नहीं है। जेजेएमएमसी सरकारी जिला अस्पताल के अंतर्गत आता है। एक अन्य रेजिडेंट चिकित्सक ने दावणगेरे जिला प्रशासन पर हड़ताल वापस लेने के लिए अनावश्यक दबाव व धमकी का आरोप लगाया है।

230 रेजिडेंट चिकित्सक हड़ताल पर हैं

रेजिडेंट चिकित्सक डॉ. निधि ने कहा कि आर्थिक संकट की इस घड़ी में वे परिवार तो क्या खुद की मदद नहीं कर पा रही हैं। खर्च के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश भर में स्टाइपेंड राशि बढ़ी है। लेकिन 16 माह से चिकित्सक जेजेएमएमसी और सरकार के बीच फंसे हुए हैं। कुल 230 रेजिडेंट चिकित्सक हड़ताल पर हैं।

राजनीतिक रंग

पीजी रेजीडेंट चिकित्सक डॉ. हरीश ने बताया कि चिकित्सकों पर कोई भाजपा तो कोई कांग्रेस के उकसावे पर हड़ताल करने का आरोप लगा रहा है। चिकित्सकों का किसी राजनीतिक पार्टी से कोई लेना देना नहीं है। हक की लड़ाई को रातों-रात राजनीतिक रंग देने की कोशिश की जा रही है। कॉलेज कांग्रेस के एक विधायक का है। 50 वर्षों से सरकार स्टाइपेंड दे रही थी। लेकिन मुख्यमंत्री बीएस येडियूरप्पा की भाजपा सरकार ने वर्ष 2018 से स्टाइपेंड बंद कर दिया। जेजेएमएमसी प्रबंधन और सरकार की बैठकें गुपचुप होती है। प्रभावित चिकित्सकों को कभी बैठक के लिए बुलाया तक नहीं गया है। मांगें पूरी होने तक हड़ताल जारी रहेगी।

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