हिंदी विभाग की सहायक प्रो. डॉ.सिमरजीत कलेर ने स्वागत भाषण सहित संचालन किया। अंटोनी डेविस ने कहा कि जब तक हिंदी भाषा का ज्ञान नहीं होगा तब तक भारत के इतिहास को पूर्ण रूप से नहीं समझा जा सकता। विद्यार्थियों में हिंदी भाषा के ज्ञान को प्राप्त करने की जागरुकता होनी चाहिए। ईश्वरचन्द्र मिश्र ने दीप प्रज्वलन की परंपरा के बारे में कहा कि यह शत्रुबुद्धि का विनाश करती है।
उन्होंने हिंदी में रोजगार की विविध संभावनाओं के बारे में छात्रों को बताया गया और राजभाषा, राष्ट्रभाषा, संपर्कभाषा, विश्वभाषा, जनभाषा आदि के रूप में हिंदी की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।
उन्होंने कहा कि हिंदी के कार्य क्षेत्रों में मीडिया तथा शिक्षण संस्थानों में अनेक स्तरों पर हिंदी का अध्यापन शामिल है। इनके कारण हिंदी की विविधता प्रकट होती है। इसी प्रकार अनुवाद की भाषा के रूप में हिंदी लगातार नई संभावनाओं को लेकर आ रही है।
विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्रों में अनेक शब्दों और अभिव्यक्तियों का विकास इनमें शामिल है। कंप्यूटर और इंटरनेट के प्रयोग ने प्रयोजनमूलक हिंदी को विस्तारित किया है। विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी। डॉ. शर्मिला बिस्सा ने धन्यवाद दिया।
तपस्या आत्मशुद्धि का पवित्र साधन
बेगलूरु. हनुमंतनगर जैन स्थानक में साध्वी सुमित्रा ने तप के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि तपस्या आत्मशुद्धि का पवित्र साधन है। तपस्या आत्मा की ज्योति है। तप भावों से किया जाता है। तपस्या करने से हमारी आत्मा पवित्र, निर्मल, शुद्ध बनती है। तपस्या करने से आधि व्यादि और उपाधि मिटती है। जैसे साबुन-जल से गंदे मेले वस्त्र साफ स्वच्छ होते हैं वैसे ही तपस्या करने से हमारे भवों भवों के कर्म मेल दूर होकर आत्मा की शुद्धि होती है। साध्वी सुप्रिया ने श्रद्धालुओं से पंद्रह मिनट का नवकार महामंत्र का जाप करवाया। साध्वी सुदीप्ति ने मानव जीवन की महत्ता पर प्रकाश डाला। साध्वी साक्षी ने भजन प्रस्तुत किया। इस अवसरपर तपस्वी निकिता खाबिया के ११ उपवास की तपस्या के प्रत्याख्यान लेने पर संघ द्वारा बहुमान किया गया। कमलेश सांखला ने भी विचार रखे। संचालन संजय कुमार कचोलिया ने किया।