उन्होंने कहा कि ऐसी भावनाओं के लिए हमें भी अपना बर्ताव शुद्ध, सात्विक, निराभिमानी बनाना जरूरी है। दूसरों के गुणों को परखें तथा उनकी प्रशंसा करें। गुणों की प्रशंसा करने से, वह व्यक्ति निश्चित ही हमारा अपनत्व समझेगा, और उससे हमारे संबंध प्रगाढ़ होंगे।
साथ ही एक सद्भावना पनपेगी। आज इस स्नेह के अभाव से ही घरों में, कार्यालयों में समाज में सौहार्द का वातावरण समाप्त हो रहा है।
घर में माता-पिता, बच्चे, सास-बहू यदि आपस में इन भावनाओं के साथ समझदारी से रहने का प्रयत्न करें तो आनंद से रह सकेंगे।
घर में माता-पिता, बच्चे, सास-बहू यदि आपस में इन भावनाओं के साथ समझदारी से रहने का प्रयत्न करें तो आनंद से रह सकेंगे।