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Janmashtmi 2022 : दक्षिण के इस मंदिर में नवग्रह खिड़की से होते हैं कान्हा के दर्शन

locationबैंगलोरPublished: Aug 18, 2022 12:18:24 pm

तेरहवीं सदी का Udupi Shri Krishna Temple
वैष्णव संत माधवाचार्य ने की थी स्थापना
कृष्ण के बाल रूप की होती है पूजा

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बेंगलूरु. द्रौपदी की टेर हो या भक्तों की पुकार, भगवान श्रीकृष्ण ने हर युग में भक्तों और धर्म की रक्षा के लिए परम्पराओं की परवाह नहीं की और भक्त वत्सल होने का ऐसा प्रमाण दिया कि दुनिया देखती रह गई। भक्तों के प्रति उनकी अहैतुकी कृपा का अनूठा प्रमाण प्रस्तुत करता एक मंदिर है उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर। तेरहवीं सदी में द्वैत दर्शन के प्रतिपादक माधवाचार्य ने इस मंदिर की स्थापना की। दक्षिण में यह माधव का सबसे विख्यात मंदिर है,जहां श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा होती है।
हर दिन आस्था का मेला

मंदिर में प्रतिदिन आस्था का मेला लगता है। प्रतिदिन लगभग 20 हजार लोगों को केले के पत्ते पर प्रसाद वितरण किया जाता है। सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण को नैवेद्य चढ़ाया जाता है। मंदिर से लौटते समय श्रद्धालु प्रसाद के रूप में लड्डू लेना नहीं भूलते और कहा जाता है कि इस लड्डू के स्वाद में भगवान की भक्ति का सुख भी शामिल है।

फिलहाल, यहां पर गुरुवार को मनाए जाने वाले श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं। जन्माष्टमी को यहां ‘लीलोत्सवÓ भी कहा जाता है। कोरोना के कारण दो साल के बाद विशाल पैमाने पर मनाए जा रहे जन्मोत्सव को लेकर उडुपी की नयनाभिराम सजावट श्रद्धालुओं का स्वागत कर रही है। मंदिर को खूबसूरती से सजाया गया है। कलाकार ‘पुलियाटमÓ नामक पारम्परिक नृत्य की तैयारियों में जुटे हुए हैं। जन्मोत्सव के दिन प्रस्तुति देना है और यह मौका रोज-रोज नहीं आता।
परम्परा के विपरीत पश्चिम की ओर मुंह
यहां भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को परम्परा के विपरीत पश्चिम की ओर मुंह करके रखा गया है। सुबह गर्भगृह में पुजारी भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक करते हैं। पहले दूध से अभिषेक होता है बाद में दही से भोग लगाया जाता है। मंत्रोच्चार के बीच शंख से गिरता हुआ दूध कान्हा की प्रतिमा पर पड़ता है। गुड़, केला के भोग के बाद नारियल पानी से अभिषेक होता है। ढोल, नगाड़ों, मंजीरों की खनक के बीच आरती की जाती है। मूर्ति की सजावट के बाद भक्त नौ छिद्रों से पूजा-अर्चना करते हैं। इसे नौ ग्रह खिड़की के नाम से जाना जाता है।

मंदिर में दक्षिणी द्वार पर एक पुष्करिणी है। पूर्व द्वार पर भगवान विष्णु की एक पंचधातु की मूर्ति है। यह द्वार केवल विजयदशमी के दिन खुलता है। ‘देवकी नंदन नंद कुमारा…Ó गीत गूंज उठते हैं और वृंदावन आरती होती है। उषाकाल पूजा से लेकर शयनोत्सव पूजा तक भक्त और भगवान का अलौकिक संबंध लौकिक बनकर श्रद्धा भक्ति के रूप में दिखाई देता है।
स्वर्ण रथ और सांस्कृतिक प्रस्तुति
जन्मोत्सव के दिन उडुपी की सड़कें भगवान श्रीकृष्ण के स्वर्ण रथ की गवाह बनती हैं। यह रथ श्रद्धालु खींचते हैं और स्वयं को धन्य मानते हैं। भक्तों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियां स्वर्ण रथ की यात्रा का अभिन्न अंग बन जाती हैं। जन्माष्टमी पर शेर के रूप में सजे लोग धार्मिक नृत्य करते हैं। दक्षिण भारत के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है।
भक्त की ओर मुड़े भगवान

बताया जाता है कि पहले मूर्ति का मुंह पूर्व की ओर था। कुरुबा परिवार के तिमप्पा नायक भगवान के दर्शन करने पहुंचे तो उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया। तिमप्पा आर्तनाद करते हुए मंदिर के पीछे की ओर भागे और पश्चिम दिशा में एक खिड़की से झांकने की कोशिश करने लगे। तभी भगवान की मूर्ति पश्चिम की ओर घूम गई। बालकृष्ण खुद पश्चिम की ओर मुड़े और कनकदास को देखने लगे। तभी से मंदिर में बालकृष्ण की मूर्ति का मुंह पश्चिम की ओर है।
नवग्रह खिड़की (जिसे कनकन किंडी भी कहा जाता है) से भगवान की पूजा-अर्चना होने लगी। रहा सवाल तिमप्पा का तो उन पर भगवान की ऐसी कृपा हुई कि वे संत कनकदास के रूप में ख्यात हुए और भक्त के साथ ही महान कवि, दार्शनिक व संगीतकार के रूप में कर्नाटक संगीत व साहित्य की पहचान बन गए। उन्होंने दक्षिण भारत में माधवाचार्य के द्वैत दर्शन का प्रचार भी किया।
राज्य के अन्य कृष्णमंदिर
राज्य के अन्य कृष्ण मंदिरों में भी जन्माष्टमी की धूम रहती है। बेंगलूरु स्थित इस्कॉन मंदिर, १२वीं सदी में मैसूरु में स्थापित वेणुगोपाल स्वामी मंदिर, मेंगलूरु स्थित गोपालकृष्णा मंदिर, 15वीं सदी में हम्पी में स्थापित बालकृष्ण मंदिर में ‘जय राधा माधव जय कुंज बिहारी’ के जयकारों के बीच श्रध्दालु पूजा-अर्चना करते हैं।
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