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कर्म निर्जरा का बहुत बड़ा साधन है तप : कंचनप्रभा

locationबैंगलोरPublished: Sep 26, 2018 11:56:43 pm

Submitted by:

arun Kumar

तपस्वी उपशान्त कषाय तथा अन्तर्मुखी बनता है

Karma is a great tool for Nirjara

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बेंगलूरु. तेरापंथ सभा गांधीनगर में साध्वी कंचनप्रभा ने कहा कि मोक्ष मार्ग के आराधक साधु-साध्वी एवं श्रावक-श्राविकाएं तपस्या की महत्ता को समझते हैं। वे यथाशक्ति तप की आराधना में दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ स्वयं को समर्पित करते हैं। तपस्वी केवल आहार-त्याग ही नहीं करता बल्कि सामायिक, स्वाध्याय, जप-ध्यान आदि वैराग्य जागृति के साथ संवर तथा निर्जरा धर्म की आराधना करता है। टीना माण्डोत को 26 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान कराते हुए साध्वी ने कहा टीना सौभाग्यशाली है जिसने मजबूत मनोबल के साथ तपस्या का कीर्तिमान बनाया है।
साध्वी मंजुरेखा ने कहा कि इन्द्रिय विजेता ही तपस्या कर सकता है। तपस्वी उपशान्त कषाय तथा अन्तर्मुखी बनता है। कर्म निर्जरा का बहुत बड़ा साधन है तप। साध्वी मंजुरेखा, साध्वी उदित प्रभा, साध्वी निर्भयप्रभा, साध्वी चेलनाश्री ने तप अनुमोदना में गीत पेश किया। तेरापंथ सभा बेंगलोर के सहमंत्री संजय बांठिया, तेरापंथ महिला मंडल मंत्री सीमा श्रीमाल एवं सुनीता भटेवरा ने शुभकामनाएं दीं। संचालन तेरापंथ सभा सहमंत्री संजय बांठिया ने किया।
गृहस्थ धर्म तिरने का साधन है

जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में श्रावक के १२ व्रत के शिविर के अन्तर्गत जय परिसर महावीर धर्मशाला में मुनि जय धुरंधर ने दो धर्मों का पालन करते हुए गृहस्थ धर्म को तिरने
का साधन बताया। आत्म रक्षा के लिए प्रत्याख्यान का परकोटा बनाना आवश्यक है। व्रत ग्रहण करने से पहाड़ जितने पाप राई जितने रह जाते हैं। श्रावक के पहले व्रत का वर्णन करते हुए कहा कि किसी भी निरपराध प्राणी को जान बूझकर, योजना बनाकर, क्रूरता पूर्वक नहीं मारना चाहिए। मात्र कायिक हिंसा ही नहीं अपितु मानसिक एवं राचिक हिंसा से भी बचना चाहिए। आज हिंसा का जो तांडव मच रहा है, उसका समाधान व्रत है। संचालन रविन्द्र कुमार चौरडिय़ा ने किया।
मनुष्य का एकमात्र लक्ष्य मोक्ष है

साध्वी मणिप्रभा ने कहा है कि इस संसार में अनेक धर्म, पंथ और मान्यताएं हैं। बुद्ध को मानने वाले बौद्ध कहलाए। महावीर को मानने वाले जैन कहलाए। सनातन धर्म को मानने वाले सनातनी कहलाए परन्तु सभी का लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है। उन्होंने कहा कि संसार में प्रत्येक वस्तु का अपना धर्म होता है। हर वस्तु का हर प्राणी का हर मनुष्य का अपना धर्म है। डंक मारना बिच्छु का धर्म है लेकिन उसके प्राण बचाना मनुष्य का धर्म है। हमारा जो धर्म है उसका हम पालन करें। यह हमारा कर्तव्य है। वैसे भी धर्म का अर्थ कर्तव्य का पालन करना होता है।
धर्म का क्षेत्र मक्खन से भी मुलायम

साध्वी प्रियरंजनाश्री ने कहा कि धर्म का क्षेत्र मक्खन से भी मुलायम है। इसमें प्रवेश करने के लिए कम से कम शिष्ट होना चाहिए। लज्जावान व्यक्ति लोक विरुद्ध पाप अत्याचारों से लगभग दूर रहता है, फिर भी पूर्व कर्म के कारण मन में पाप विचार आ जाए तो उसे वह धर्म प्रवृत्ति से दूर कर देता है। उन्होंने कहा कि लज्जा के गुण को आत्मसात करना सरल नहीं है क्योंकि लज्जा पालन से जो लाभ होता है वह तत्काल नहीं मिलता है। लज्जा रहित व्यक्ति बंदर की तरह होता है। उसे सच्ची व हितकारी सलाह भी अच्छी नहीं लगती है। लज्जावान व्यक्ति की बात ही अलग होती है। सामान्यतया वह पाप करता ही नहीं है। कदाचित परिस्थितिवश या निमित्तवश वह पाप कर देता है तो प्रायशिचित्त कर पाप से निवृत्त होने में देरी भी नहीं लगती है।
संतों से लिया आशीर्वाद

बेंगलूरु. हैदराबाद में संत सुमतिप्रकाश, उपाध्याय प्रवर विशालमुनि, उप प्रवर्तक नरेशमुनि, पंकजमुनि, आचार्य सुदर्शनलाल, चंपक गुरु शिष्य पारसमुनि, महासाध्वी प्रतिभाश्री, साध्वी विरक्ताश्री के दर्शन प्रवचन श्रवण किए। इस अवसर पर राजाजीनगर से मिश्रीमल कटारिया, महावीरचंद धोका, नेमीचंद दलाल, प्रकाशचंद चाणोदिया, समरथमल कोठारी व अन्य सदस्य उपस्थित थे।
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