श्रीमंत पाटिल ने पिछले चुनाव में राजू कागे को 32 हजार मतों के अंतर से मात दी थी और इस बार 18 हजार 557 मतों से हराया। यहां राजनेताओं के दलबदल ने जनता और विशेषकर इन दोनों के समर्थकों को उधेड़बुन में डाल दिया था, लेकिन अंतत: मतदाताओं का विश्वास पाटिल ने ही जीता।
प्रचार के दौरान दल बदलने के सवाल पर जहां पाटिल दावा कर रहे थे कि उन्होंने कागवाड़ के बेहतर भविष्य के लिए इतनी बड़ी राजनीतिक चुनौती ली, वहीं कागे का कहना था कि पाटिल को सिर्फ मंत्री बनने की फिक्र है।
प्रचार के दौरान मराठा मूल के श्रीमंत पाटिल को कई जगहों पर मतदाताओं के ऐसे सवालों से दो-चार भी होना पड़ा था। जिन गांवों में बाढ़ ने तबाही मचाई थी, वहां के लोग भी पूछ रहे थे कि बाढ़ के समय आप कहां थे।
हालांकि ऐसा नहीं है कि ऐसे सवालों से कांग्रेस के राजू कागे का सामना नहीं हुआ, मतदाताओं का सवाल उनसे भी हुआ कि आखिर वे किन कारणों से कांग्रेस में गए। कागे की परेशानी यह भी रही कि उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार बनाया जाना कई पुराने कांग्रेसियों को नहीं भाया। यही कारण है कि चुनाव प्रचार में भी स्थानीय नेताओं का एक धड़ा दूर रहा। इन सबका खामियाजा कागे को भुगतना पड़ा।