अदालत में हुई बहस के दौरान अयोग्य घोषित विधायकों ने दलील दी थी कि सदन की सदस्यता से इस्तीफा देना उनका अधिकार है और अध्यक्ष ने बदले की भावना से उन्हें अयोग्य ठहरा दिया। इन विधायकों की दलील थी कि अध्यक्ष को सिर्फ यह देखना चाहिए कि त्याग-पत्र वास्तविक और स्वैच्छिक है या नहीं, उसके पीछे के राजनीतिक घटनाक्रम पर नहीं जाना चाहिए। हालांकि, कांग्रेस और जद-एस की दलील थी कि इन विधायकों ने प्रलोभन में आकर दल-बदल के इरादे से इस्तीफा दिया। कांग्रेस और जद-एस ने विधायकों के पद के प्रलोभन में इस्तीफा देने के लिए उनके मुंबई जाने और वहां लंबे समय तक होटल में रहने का भी हवाला दिया। कांग्रेस की दलील थी कि अध्यक्ष सदन के प्रमुख हैं और उनके फैसले पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
जानकारों का कहना है कि जिस तरह सरकारों की बर्खास्तगी के मामले में कर्नाटक से जुड़े बोम्मई मामले में शीर्ष अदालत का फैसला नजीर बना था, उसी तरह विधायकों के दल-बदल और अयोग्यता मामले में अध्यक्षों के फैसले को लेकर भी शीर्ष अदालत का मामला महत्वपूर्ण हो सकता है।
जानकारों का कहना है कि जिस तरह सरकारों की बर्खास्तगी के मामले में कर्नाटक से जुड़े बोम्मई मामले में शीर्ष अदालत का फैसला नजीर बना था, उसी तरह विधायकों के दल-बदल और अयोग्यता मामले में अध्यक्षों के फैसले को लेकर भी शीर्ष अदालत का मामला महत्वपूर्ण हो सकता है।