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कर्नाटक के 17 विधायकों की अयोग्यता पर आज आएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला

locationबैंगलोरPublished: Nov 13, 2019 12:37:19 am

Submitted by:

Jeevendra Jha

सुलझेगी कई पहेली : अदालत के फैसले से साफ होगी स्थिति

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बेंगलूरु. 17 विधायकों को अयोग्य ठहराने के मामले में शीर्ष अदालत का फैसला काफी महत्वपूर्ण होगा। कानून और संसदीय मामलों के जानकारों कहना है कि इस मामले में राजनीतिक अस्थिरता के दौर मेंं विधायकों के त्याग-पत्र देने और संविधान की दसवीं अनुसूची के प्रावधानों से जुड़े कई पहलुओं पर स्थिति काफी साफ होगी। जानकारों का कहना है कि तीन पहलुओं पर अदालत का फैसला निर्णायक होगा।
पहला, किसी पार्टी के टिकट पर निर्वाचित सदस्य अगर सरकार को गिराने के इरादे और पद के प्रलोभन में आकर सदन की सदस्यता से इस्तीफा देता है तो वह दल-बदल कानून के दायरे में आएगा या नहीं।
दूसरा, क्या दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित व्यक्ति उपचुनाव लड़ सकता है या नहीं।
तीसरा, किसी सदस्य के इस्तीफा की वास्तविकता और स्वैच्छिकता तय करने के मामले में अध्यक्ष की सीमाएं क्या होंगी। अगर अदालत तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के.आर. रमेश कुमार के इन विधायकों को अयोग्य ठहराने के फैसले को पूरी तरह खारिज कर देती है तो वे विधायक सदन के सदस्य बने रहेंगे और नए विधानसभा अध्यक्ष को पूर्व में दिए गए उनके इस्तीफे के बारे में निर्णय करना होगा। इससे अयोग्य ठहराए गए विधायकों के उपचुनाव लडऩे का रास्ता साफ हो सकता है। ऐसे स्थिति में उपचुनाव की मौजूदा प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।

अदालत में हुई बहस के दौरान अयोग्य घोषित विधायकों ने दलील दी थी कि सदन की सदस्यता से इस्तीफा देना उनका अधिकार है और अध्यक्ष ने बदले की भावना से उन्हें अयोग्य ठहरा दिया। इन विधायकों की दलील थी कि अध्यक्ष को सिर्फ यह देखना चाहिए कि त्याग-पत्र वास्तविक और स्वैच्छिक है या नहीं, उसके पीछे के राजनीतिक घटनाक्रम पर नहीं जाना चाहिए। हालांकि, कांग्रेस और जद-एस की दलील थी कि इन विधायकों ने प्रलोभन में आकर दल-बदल के इरादे से इस्तीफा दिया। कांग्रेस और जद-एस ने विधायकों के पद के प्रलोभन में इस्तीफा देने के लिए उनके मुंबई जाने और वहां लंबे समय तक होटल में रहने का भी हवाला दिया। कांग्रेस की दलील थी कि अध्यक्ष सदन के प्रमुख हैं और उनके फैसले पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
जानकारों का कहना है कि जिस तरह सरकारों की बर्खास्तगी के मामले में कर्नाटक से जुड़े बोम्मई मामले में शीर्ष अदालत का फैसला नजीर बना था, उसी तरह विधायकों के दल-बदल और अयोग्यता मामले में अध्यक्षों के फैसले को लेकर भी शीर्ष अदालत का मामला महत्वपूर्ण हो सकता है।
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