scriptअल्जाइमर : नहीं हो पाती 90 फीसदी मरीजों की पहचान | Karnataka : 90 percent patients remain unidentified | Patrika News

अल्जाइमर : नहीं हो पाती 90 फीसदी मरीजों की पहचान

locationबैंगलोरPublished: Sep 22, 2021 11:44:14 am

Submitted by:

Nikhil Kumar

– विश्व अल्जाइमर दिवस (World Alzheimer’s Day)

World Alzheimer's Day

World Alzheimer’s Day

– समाज से काटने नहीं जोडऩे की जरूरत
– 40 फीसदी मामले जीवनशैली से जुड़े
– वायु प्रदूषण भी बड़ा कारण

बेंगलूरु. जागरूकता की कमी और सीमित स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण देश में डिमेंशिया (Demensia) और अल्जाइमर यानी याददाश्त कम होने की बीमारी (Alzheimer) के 90 फीसदी मरीजों की पहचान नहीं हो पाती है। अल्जाइमर एंड रिलेटेड डिस्ऑर्डर सोसाइटी ऑफ इंडिया (एआरडीएसआइ) के आंकड़ों के अनुसार भारत में 5.29 मिलियन लोग डिमेंशिया के साथ जीवन जी रहे हैं। वर्ष 2030 तक इनकी संख्या 7.61 मिलियन तक बढऩे की आशंका है। हाल के ही वैज्ञानिक शोधों के अनुसार डिमेंशिया के 40 फीसदी मामले जीवनशैली से जुड़े हैं।

राष्ट्रीय मानसिक आरोग्य व स्नायु विज्ञान संस्थान (निम्हांस) की निदेशक डॉ. प्रतिमा मूर्ति ने बताया कि मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, शारीरिक निष्क्रियता, प्रारंभिक जीवन में खराब शिक्षा, मध्य जीवन में अत्यधिक शराब का सेवन, धूम्रपान, सामाजिक अलगाव, अवसाद, मध्य जीवन में सिर में चोट, मध्य जीवन में श्रवण हानि और बाद में वायु प्रदूषण के संपर्क में आना डिमेंशिया के कुछ प्रमुख कारण हैं।

मरीजों की समय रहते पहचान और उपचार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से निम्हांस कई जागरूकता अभियान और कार्यक्रम चला रहा है। इनमें से एक ‘एडवांस अप्रोच टू डिमेंशिया एसोसिएटेड रिसर्च (एएडीएआर) डिमेंशिया साइंस प्रोग्राम’ के तहत सामुदायिक स्तर पर काम हो रहा है। बेंगलूरु शहरी जिले में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ डिमेंशिया के प्रसार और जोखिम कारकों की पहचान पर जोर है। उम्र बढऩे के साथ डिमेंशिया सहित अन्य मानसिक बीमारियों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए भी निम्हांस (The National Institute of Mental Health and Neurosciences – NIMHANS) एक विशेष अभियान के तहत काम कर रहा है। मरीजों की देखभाल करने वाले लोगों को भी राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षण दिया जा रहा है। डिमेंशिया के मरीजों की आवासीय देखभाल के लिए निम्हांस 40 बिस्तरों वाले डिमेंशिया देशभाल केंद्र शुरू करेगा।

कुछ चिकित्सकों का कहना है कि वायु प्रदूषण महिलाएं ही नहीं बल्कि बच्चों, युवाओं और पुरुषों के मस्तिष्क स्वास्थ्य को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। भारत 40 लाख से ज्यादा डिमेंशिया पीडि़तों का गढ़ है जबकि 15 लाख से ज्यादा लोग अल्जाइमर से जूझ रहे हैं।

10-15 वर्ष पहले अल्जाइमर को भांपना संभव
ब्रेन्स अस्पताल के संस्थापक व वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ. एनके वेंकटरमन ने बताया कि अल्जाइमर के प्रमुख कारणों में से एक मस्तिष्क में न्यूरॉन्स के आसपास समूहों में एमाइलॉइड-बीटा (एबी) नामक एक प्रोटीन का संचय है, जो उनकी गतिविधि को बाधित करता है। दरअसल एबी एक बड़ा पेप्टाइड है जिसमें 39 और 43 अमीनो एसिड होते हैं। मस्तिष्क के न्यूरॉन्स एबी प्लेग (पट्टिका) से भरे होते हैं। इसके उत्पन्न होने के बाद अल्जाइमर के लक्षण प्रकट होने में 10-15 वर्ष लग जाते हैं। जबकि उन्नत एमआरआइ से समय रहते इसकी पहचान संभव है।

लैगिंक अंतर नैदानिक अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र
डॉ. एन. के. वेंकटरमन के अनुसार शोधों ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वायु प्रदूषण सीधे अल्जाइमर का कारण है। पार्किंन्सन का खतरा भी है। मस्तिष्क की उम्र जल्दी बढ़ती है। लंबे समय से मस्तिष्क के लिए विषाक्त पदार्थों पर ध्यान केंद्रित है। लेकिन वायु प्रदूषण हमेशा फेफड़ों की बीमारी से संबंधित रहा है। अब साफ है कि वायु प्रदूषण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा रहा है। वायु प्रदूषण न्यूरोनल पतन का कारण है। अल्जाइमर के मरीजों में दो-तिहाई महिलाएं हैं। अल्जाइमर रोग में लैगिंक अंतर नैदानिक अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।

महिलाओं पर पहले से ही खतरा अधिक
अल्जाइमर्स एसोसिएशन के मुताबिक 60 साल से अधिक उम्र की हर छह में से एक महिला अल्जाइमर पीडि़त है जबकि इस रोग से हर 11 में से एक पुरुष पीडि़त होता है। स्ट्रेस हार्मोन मस्तिष्क के स्वास्थ्य में लैगिंक आधार पर अलग-अलग भूमिका निभाते हैं और महिलाओं में पुरुषों की तुलना में अल्जाइमर रोग अधिक होने का यह कारण हो सकता है। अध्ययनों के मुताबिक तनाव के दौरान शरीर में रासायनिक हार्मोन कोर्टिकोस्टेरॉयड का स्राव होता है जो कि अल्जाइमर के मरीजों में उन मरीजों की तुलना में दो से तीन गुणा अधिक पाया जाता है जो इस रोग से पीडि़त नहीं होते। महिलाओं और पुरुषों के मस्तिष्क के कार्य करने की क्षमता और संरचना तक में अंतर है। इससे संज्ञानात्मक विकास प्रभावित हो सकता है। महिलों का मस्तिष्क पुरुषों के मुकाबले औसतन छोटा होता है और यह अंतर भी महिलाओं में अल्जाइमर का कारण हो सकता है।

बच्चों जैसे हो जाते हैं मरीज
अल्जाइमर एक प्रगतिशील विकार है, जिसमें किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में न्यूरॉन्स और उनके बीच संबंध धीरे-धीरे बिगड़ जाते हैं। जिससे गंभीर रूप से याददाश्त खोना, बौद्धिक कमियां और कौशल व संचार में गिरावट होती हैं। भूलना या याददाश्त खोना आदि अल्जाइमर के शुरूआती लक्षण हो सकते हंै। अल्जाइमर के मरीज बच्चों जैसे होते हैं। इन्हें समाज से काटने नहीं जोडऩे की जरूरत है।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो