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चुनावी परिदृश्य: हिंदुत्व फिर मुखर, मुद्दे गौण

locationबैंगलोरPublished: Apr 03, 2018 05:59:14 am

सूखा और किसानों की आत्महत्या जैसे प्रमुख मुद्दों से भटकने के बाद राज्य विधानसभा चुनाव में इस बार हिंदुत्व का एजेंडा मुखर है

चुनावी परिदृश्य: हिंदुत्व फिर मुखर, मुद्दे गौण


राजीव मिश्रा
बेंगलूरु. सूखा और किसानों की आत्महत्या जैसे प्रमुख मुद्दों से भटकने के बाद राज्य विधानसभा चुनाव में इस बार हिंदुत्व का एजेंडा मुखर है। विपक्षी भाजपा शुरू से ही आक्रामक हिंदुत्व की रणनीति पर चल रही है तो कांग्रेस भी पीछे नहीं है। अहिंदा (अल्पसंख्यक, पिछड़ा और दलित) समीकरण के पैरोकार मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या इस बार भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने या उसमें विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं तो भाजपा बहुसंख्यक समुदाय पर हुए कथित अत्याचार के बहाने हिंदुत्व एजेंडे को हवा दे रही है।

जैसे-जैसे चुनावी अभियान जोर पड़ेगा दोनों ही पार्टियां अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए अपने-अपने तरीके से बहुसंख्यक मतदाताओं को धार्मिक और भावनात्मक रूप से छूने की कोशिश करेगी। भाजपा ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े के सहारे हिंदुत्व के एजेंडें पर जोर दिया तो मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या भी खुद को हिंदू बताने में पीछे नहीं रहे। अपने नाम में सिद्ध और राम का हवाला भी दिया। चुनावी समीकरणों की मजबूरी ही है कि राजनीतिक हलकों में सिद्धरामय्या की छवि भले नास्तिक की रही हो लेकिन आजकल वे मंदिरों में जाने और प्रसाद ग्रहण से परहेज नहीं कर रहे। राहुल और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह हर दौरे में मंदिर और मठ जा रहे हैं।


राजनीतिक विश्लेषक संदीप शास्त्री कहते हैं ‘भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों को लग रहा है कि हिंदू समाज का वोट काफी महत्वपूर्ण है। भाजपा का हिंदुत्व एजेंडा हम वर्षों से देख रहे हैं। अब कांग्रेस को भी लग रहा है कि उसने इस बड़े मतदाता वर्ग पर ठीक से ध्यान नहीं दिया। कांग्रेस की छवि एक अल्पसंख्यक समर्थक पार्टी के रूप में बन गई है और वह इस छवि से बाहर आने की कोशिश कर रही है। गुजरात चुनावों में यह स्पष्ट रूप से नजर आया और अब राज्य के चुनावों में भी हम यह देख रहे हैं।’


कांग्रेस का हिंदुत्व एजेंडा सिर्फ राहुल गांधी के मंदिर-मंदिर भ्रमण तक ही सीमित नहीं है। खुद को धर्मनिरपेक्ष पार्टी कहने वाली कांग्रेस दावा करती रही है कि वह सभी धर्मों व समाज के हर वर्ग के हितों का ख्याल रखती है। लेकिन, पिछले लोकसभा चुनावों में मिली शिकस्त और उसके बाद राज्य विधानसभा चुनावों में मिली हार से उसकी रणनीति में यह स्पष्ट बदलाव गुजरात चुनावों में दृष्टिगोचर हुआ। राहुल गांधी का मंदिर दौरा इस बात का संकेत है कि वे बहुसंख्यक समुदाय का समर्थन हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस बहुसंख्यक समुदाय में जो असंतुष्ट हैं, उन्हें मनाने की कोशिश में है ताकि यह संदेश जाए कि वह बहुसंख्यक हिंदुओं की भावनाओं के खिलाफ नहीं है।


हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता एस.प्रकाश कहते हैं कि मंदिरों और मठों में जाने से कांग्रेस की अल्पसंख्यक हितैषी और बहुसंख्यक को नजरअंदाज करने वाली छवि नहीं बदलने वाली। पिछले पांच सालों में सिद्धरामय्या सरकार के दौरान जिस पैमाने पर बहुसंख्यक समुदाय के निर्दोष लोगों की हत्या हुई उसने कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति को ही उजागर किया है। सरकार के इरादे साफ नजर आते हैं। मंदिर जाने से कोई फायदा नहीं मिलने वाला। उन्होंने मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या पर आरोप लगाया कि जिस शख्स ने गौहत्या का समर्थन किया और हिंदू समर्थक होने का ड्रामा किया उसका कोई असर भाजपा पर नहीं होगा।


दरअसल, सबका साथ-सबका विकास की बात करने वाली भाजपा का यह नारा राज्य विधानसभा चुनाव में बेदम नजर आ रहा है। आम जनता इस बात पर चर्चा कर रही है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह से इस नारे को बुलंद किया उसे लागू भी किया?


प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष दिनेश गुंडुराव कहते हैं ‘भाजपा के पास कोई मुद्दा नहीं है इसलिए वे हिंदुत्व का मुद्दा उठा रहे हैं। केंद्र सरकार ने कोई काम नहीं किया। आज पेट्रोल के भाव आसमान छू रहे हैं लेकिन उस पर कोई बात नहीं करेंगे। किसानों का मुद्दा है लेकिन उससे भाग रहे हैं। भ्रष्टाचार की बात की और आज खुद उसपर घिरे हुए हैं। इसलिए भाजपा फिर एक बार हिंदुत्व का एजेंडा सामने ला रही है। लेकिन, इस बार वे कारगर नहीं होंगे। राम मंदिर पर सिर्फ चुनाव के दौरान बात करते हैं। यहां भी गोहत्या का मुद्दा उठा रहे हैं। अगर गो-हत्या नहीं होनी चाहिए तो उसे प्रतिबंधित क्यों नहीं किया जा रहा। भाजपा के शासनकाल में भारत बीफ निर्यात में दूसरे स्थान पर आ चुका है। हमारे देश में बीफ खाने वाले काफी कम हैं। केरल, गोवा और उत्तर -पूर्व में जाते हैं तो कहते हैं कि बीफ चाहिए लेकिन कर्नाटक में नहीं चाहिए। यह सब ढोंग है।’


दरअसल, सत्ता संघर्ष में हिंदुत्व एजेंडे को हवा दे रही दोनों पार्टियों की रणनीति अलग है। कांग्रेस हिंदुओं को सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से देखने का प्रयास कर रही है तो भाजपा भावनात्मक मुद्दों को भी हवा दे रही है। राजनीतिक विश्लेषक शास्त्री कहते हैं ‘हिंदू समाज का एक बड़ा तबका विकास की दौड़ में पीछे छूट गया और उसने अन्याय झेला।

सिद्धरामय्या की कोशिश है कि अगर वे उन्हें प्रभावित कर पाए तो एक बड़ा मतदाता वर्ग उनके साथ होगा। वहीं राहुल मंदिरों में जाकर यह साबित करना चाहते हैं कि वे हिंदू विरोधी नहीं हैं। दूसरी ओर भाजपा के हिंदुत्व पैकेज में गौ-रक्षा, बाबा-बुडनगिरी, टीपू सुल्तान जयंती और आतंकवाद जैसे मुद्दे हैं, जिसका उपयोग वे समय और परिस्थिति के हिसाब से करते हैं। हिंदुत्व की टोकरी से कब-कहां-कौन सा मुद्दा उठाना है वह बेहतर जानते हैं।’

धुव्रीकरण की कोशिश : मतदाताओं को लुभाने की कवायद
सांप्रदायिक तौर पर संवेदनशील माने जाने वाले तटीय कर्नाटक के अलावा चिकमगलूरु, बेलगावी और बेंगलूरु नगर में धार्मिक आधार पर धु्रवीकरण कारगर साबित हो सकता है। जहां तटीय कर्नाटक में 19 सीटें हैं वहीं बेलगावी में 18 , चिकमगलूरु में 5 और बेंगलूरु शहर में 28 सीटें हैं। कुल मिलाकर इन 70 सीटों का समीकरण सत्ता की राह आसान कर सकती है। दिनेश ने दावा किया कि सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में कांग्रेस की स्थिति भाजपा के मुकाबले बेहतर है। उनका यह दावा सिद्धरामय्या सरकार के गरीब हितैषी कार्यक्रमों के आधार पर है।

दिनेश कहते हैं ‘हमने अन्न भाग्य योजना और इंदिरा कैंटीन शुरू की जो गरीबों के लिए है। क्या गरीब हिंदू नहीं हैं। क्या उन्हें इन योजनाओं का लाभ नहीं मिला। हमारी भाग्य योजनाएं गरीब तबके तक पहुंची हैं जिनमें अधिकांश हिंदू ही हैं।’ वहीं, भाजपा के एस. प्रकाश कहते हैं कि भाजपा कोई भी योजना वोट को ध्यान में रखकर नहीं शुरू करती। उसकी कोशिश समाज सुधार पर है। तीन-तलाक या अल्पसंख्यक समुदाय की बच्चियों की शिक्षा के लिए केंद्र द्वारा उठाए गए कदम इसी संदर्भ में हैं। भाजपा यह सब वोट हासिल करने के लिए नहीं करती। लेकिन, कांग्रेस ने हमेशा समाज और धर्म को बांटने का ही प्रयास किया है।


दरअसल, प्रकाश का इशारा सिद्धरामय्या सरकार द्वारा लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने की ओर है। लेकिन, भाजपा को भी इस बहाने हिंदुत्व का मुद्दा उठाकर कांग्रेस पर वार करने का एक विकल्प मिल गया है। हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का बयान ‘सिद्धरामय्या अहिंदा नहीं, अहिंदू हैं’ को इस परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
राजनीतिक विश्लेषक शास्त्री कहते हैं कि ‘नि: संदेह दोनों ही पार्टियां हिंदुत्व के एजेंडे को अपनी-अपनी रणनीति के तहत जोर-शोर से उठाएंगी। लेकिन चुनावी अभियान में कौन सी रणनीति प्रभावी होगी, यह देखना दिलचस्प होगा।’

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